26 मजेदार अकबर -बीरबल की कहानियाँ-Akbar Birbal Story In Hindi

 दोस्तों अकबर बीरबल को कौन नही जनता है वो दोनों  बहुत famous है और बीरबल को अकबर के नवरत्नों मै से एक माना जाता था | बीरबल बहुत ही बुद्धिमान और ईमानदार व्यक्ति थे | वहीं अकबर और  बीरबल की जुगलबंदी किसी से छुपी नहीं है| 

     अकबर और बीरबल की कहानियाँ हमेशा ही प्रेणादायक रही है जो हमारे जीवन के लिए एक अच्छी सीख डे जाती है |बीरबल ने अपनी चतुराई और बुद्धिमानी से रजा के कई पेचीदा मामलों को सुलझाया  है और साथ ही साथ राजा द्वारा दी गई सारी चुनोतियों को हँसतें- हँसतें स्वीकार कर उनका हल भी निकला है | 

    ये किस्से कहानियाँ सदियों पुरानी है लेकिन इनका महत्व आज भी कायम है | अगर आप अपने बच्चों को मानसिक रूप से  मजबूत और किसी भी समस्या का हल शांत रहकर कैसे निकला जाता है तो आप इन कहानियों को अपने बच्चों को जरुर पढ़ने के लिए कहिएं ताकि वो पढ़कर एक अच्छे और समझदार व्यक्ति बन सकें|

   तो दोस्तों इसी बात को ध्यान रखतें हुए मै आज आप सब के लिए आज मै आपको अकबर और बीरबल से जुड़ी कुछ मजेदार कहानियाँ सुनाऊँगी जो आपको हसाएँगी और साथ ही साथ अच्छी शिक्षा भी दे जायेंगी|

                                       अकबर और बीरबल की कहानियाँ   

26 मजेदार अकबर -बीरबल की कहानियाँ( Akbar Birbal की कहानियाँ हिंदी मै ) 
                    

 1.रेत से चीनी अलग करना |

एक बार बादशाह अकबर, बीरबल और सभी मंत्रीगण दरबार में बैठे हुए थे। सभा की कार्यवाही चल रही थी। एक-एक करके राज्य के लोग अपनी समस्याएं लेकर दरबार में आ रहे थे। इसी बीच वहां एक व्यक्ति दरबार में पहुंचा। उसके हाथ में एक मर्तबान था। सभी उस मर्तबान की ओर देख रहे थे, तभी अकबर ने उस व्यक्ति से पूछा – ‘क्या है इस मर्तबान में?’

   उसने कहा, ‘महाराज इसमें चीनी और रेत का मिश्रण है।’ अकबर ने फिर पूछा ‘किसलिए?’ अब दरबारी ने कहा – ‘गलती माफ हो महाराज, लेकिन मैंने बीरबल की बुद्धिमत्ता के कई किस्से सुने हैं। मैं उनकी परीक्षा लेना चाहता हूं। मैं यह चाहता हूं कि बीरबल इस रेत में से बिना पानी का इस्तेमाल किए, चीनी का एक-एक दाना अलग कर दें।’ अब सभी हैरानी से बीरबल की ओर देखने लगे।

 अब अकबर ने बीरबल की ओर देखा और कहा, ‘देख लो बीरबल, अब तुम कैसे इस व्यक्ति के सामने अपनी बुद्धिमानी का परिचय दोगे।’ बीरबल ने मुस्कुराते हुए कहा, ‘महाराज हो जाएगा, यह तो मेरे बाएं हाथ का काम है।’ अब सभी लोग हैरान थे कि बीरबल ऐसा क्या करेंगे कि रेत से चीनी अलग-अलग हो जाएगी? तभी बीरबल उठे और उस मर्तबान को लेकर महल में मौजूद बगीचे की ओर बढ़ चले। उनके पीछे वह व्यक्ति भी था।

अब बीरबल बगीचे में एक आम के पेड़ के नीचे पहुंचे। अब वह मर्तबान में मौजूद रेत और चीनी के मिश्रण को एक आम के पेड़ के चारों तरफ फैलाने लगे। तभी उस व्यक्ति ने पूछा, ‘अरे यह क्या कर रहे हो?’ इस पर बीरबल ने कहा, ‘ये आपको कल पता चलेगा।’ इसके बाद दोनों महल में वापस आ गए। अब सभी को कल सुबह का इंतजार था। अगली सुबह जब दरबार लगा, तो अकबर और सारे मंत्री एक साथ बगीचे में पहुंचे। साथ में बीरबल और रेत व चीनी का मिश्रण लाने वाला व्यक्ति भी था। सभी आम के पेड़ के पास पहुंच गए।

सभी ने देखा कि अब वहां सिर्फ रेत पड़ी हुई है। दरअसल, रेत में मौजूद चीनी को चीटियों ने निकालकर अपने बिल में इकट्ठा कर लिया था और बची-खुची चीनी को कुछ चीटियां उठाकर अपने बिल में ले जा रही थीं। इस पर उस व्यक्ति ने पूछा, ‘चीनी कहां गई?’ तो बीरबल ने कहा, ‘रेत से चीनी अलग हो गई है।’ सभी जोर-जोर से हंसने लगे। बीरबल की यह चतुराई देख अकबर ने उस व्यक्ति से कहा, ‘अगर अब तुम्हें चीनी चाहिए, तो तुम्हें चीटियों के बिल में घुसना पड़ेगा।’ इस पर सभी ने फिर से ठहाका लगाया और बीरबल की तारीफ करने लगे।

कहानी से सीख:

 हमें कभी भी किसी को नीचा दिखाने का प्रयास  नही करना चाहिए जो आपके लिए हानिकारक हो सकता है।


2 . मुर्गी पहले आई या अंडा?



एक दिन की बात है, बादशाह अकबर की राजसभा में एक ज्ञानी पंडित आया हुआ था। वह कुछ सवालों के जवाब बादशाह से जानना चाहता था, लेकिन बादशाह के लिए उसके सवालों का जवाब देना मुश्किल हो गया। इसलिए, उन्होंने पंडित के सवालों के जवाब देने के लिए बीरबल को आगे कर दिया। बीरबल की चतुराई से सभी वाकिफ थे और सभी को उम्मीद थी कि बीरबल पंडित के हर सवाल का जवाब आसानी से दे सकते हैं।

  पंडित ने बीरबल से कहा, “मैं तुम्हें दो विकल्प देता हूं। एक या तो तुम मुझे मेरे 100 आसान से सवाल के जवाब दो या फिर मेरे एक मुश्किल सवाल का जवाब दो।” बीरबल ने सोच-विचार करने के बाद कहा कि मैं आपके एक मुश्किल सवाल का जवाब देना चाहता हूं।

  फिर पंडित ने बीरबल से पूछा, तो बताओ मुर्गी पहले आई या अंडा। बीरबल ने तुरंत पंडित को जवाब दिया कि मुर्गी पहले आई। फिर पंडित ने उनसे पूछा कि तुम इतनी आसानी से कैसे बोल सकते हो कि मुर्गी पहले आई। इस पर बीरबल ने पंडित से कहा कि यह आपका दूसरा सवाल है और मुझे आपके एक सवाल का ही जवाब देना था।

 ऐसे में पंडित, बीरबल के सामने कुछ बोल नहीं पाया और बिना बोले ही दरबार से चला गया। बीरबल की चतुराई और अक्लमंदी को देखकर अकबर हमेशा की तरह ही इस बार भी बहुत खुश हुए। इससे बीरबल ने साबित कर दिया कि बादशाह अकबर के दरबार में सलाहकार के रूप में बीरबल का रहना कितना जरूरी है।


कहानी से सीख:

अगर आप किसी भी काम मै  सही तरह से दिमाग लगायेंगे और संयम रखंगे  तो आपकी हर सवाल का जवाब और हर समस्या का हल मिल सकता है।


3 .  जब बीरबल बच्चा बना | 

एक बार की बात है, बीरबल को दरबार आने में देरी हो गई। राजा अकबर बेसब्री से बीरबल का इंतजार कर रहे थे। जैसे ही बीरबल दरबार में पहुंचे, अकबर ने उनसे देरी का कारण पूछा। बीरबल कहने लगे कि आज जब वह घर से निकल रहे थे तो उनके छोटे-छोटे बच्चों ने उन्हें रोक दिया और कहीं न जाने की जिद करने लगे। किसी तरह बच्चों को समझा-बुझाकर निकलने में ही देरी हो गई।

  राजा को बीरबल की इन बातों पर बिल्कुल यकीन नहीं हुआ, उन्होंने सोचा कि बीरबल देर से आने का झूठा बहाना कर रहे हैं। उन्होंने बीरबल को कहा कि बच्चों को मनाना इतना भी कठिन काम नहीं है। अगर वे ना मानें तो थोड़ा डांट-डपटकर उन्हें शांत किया जा सकता है।

  वहीं, बीरबल इस बात से परिचित थे कि बच्चों के मासूम सवालों और जिद को पूरा कर पाना बेहद मुश्किल होता है। जब अकबर इस बात से संतुष्ट न हुए तो बीरबल को एक उपाय सूझा। उन्होंने राजा के सामने एक शर्त रखी, उन्होंने कहा कि वह इस बात को सिद्ध कर सकते हैं कि छोटे बच्चों को समझाना बहुत मुश्किल होता है, लेकिन इसके लिए उन्हें एक छोटे बच्चे के जैसे व्यवहार करना होगा व राजा को उन्हें समझाना होगा। राजा इस शर्त के लिए तैयार हो गए।

   अगले ही पल बीरबल एक बच्चे के जैसे चिल्लाने और रोने लगे। राजा ने उन्हें मनाने के लिए उन्हें अपनी गोद में उठा लिया। बीरबल गोद में बैठकर राजा की लंबी मूछों से खेलने लगे। कभी वे बच्चों की तरह मुंह बिगाड़ते तो कभी मूछों को खींचने लगते। अभी तक राजा को कोई आपत्ति नहीं हो रही थी।

जब बीरबल मूछों से खेलकर थक गए तो गन्ना खाने की जिद करने लगे। राजा ने बच्चा बने बीरबल के लिए गन्ना लाने का आदेश दिया। जब गन्ना लाया गया तो बीरबल ने नयी जिद पकड़ ली कि उन्हें छिला हुआ गन्ना चाहिए। एक सेवक द्वारा गन्ने को छिला गया। अब बीरबल जोर से रोने व चीखने लगे।

अकबर ने प्यार से पूछा, “कहो बीरबल। तुम क्यों रो रहे हो?” बीरबल ने जवाब दिया, “मुझे अब छोटा नहीं एक बड़ा गन्ना चाहिए।” अकबर ने उन्हें एक बड़ा गन्ना लाकर दिया, लेकिन बीरबल ने उस बड़े गन्ने को हाथ तक न नहीं लगाया।

अब राजा अकबर का गुस्सा बढ़ रहा था। उन्होंने बीरबल से कहा कि “तुम्हारी जिद के अनुसार तुम्हें बड़ा गन्ना लाकर दिया गया है, तुम इसे न खाकर रो क्यों रहे हो?” बीरबल ने जवाब दिया, “मुझे इन्हीं छोटे-छोटे टुकड़ों को जोड़कर एक बड़ा गन्ना खाना है।” राजा ने बीरबल की इस जिद को सुनकर अपना सिर पकड़ लिया और अपनी जगह जाकर बैठ गए।

उन्हें परेशान देखकर बीरबल ने बच्चा बनने का नाटक खत्म किया और राजा के समक्ष गए। उन्होंने राजा से पूछा, “क्या अब आप इस बात से सहमत हैं कि बच्चों को समझाना यकीनन एक मुश्किल काम है?” राजा ने हां में सिर हिलाया और बीरबल को देख मुस्कुराने लगे।

कहानी से सीख –

इस कहानी से हमें यह जानने को मिलता है की बच्चे बहुत मासूम होते हैं। अक्सर हम उनके नादान सवालों का जवाब नहीं दे पाते हैं, लेकिन फिर भी उन्हें प्यार से समझा कर व अनेक उदाहरण देकर उनकी जिद व जिज्ञासा को शांत किया जा सकता है।


4.सबसे बड़ा मनहूस कौन?

एक बार की बात है, बादशाह अकबर बिस्तर से ही अपने सेवकों को पानी लाने का आदेश दे रहे थे। उसी समय बादशाह के कमरे के पास से कूड़ा साफ करने वाला सेवक गुजर रहा था। उसने जब देखा कि अकबर को प्यास लगी है, लेकिन उनके आसपास कोई सेवक नहीं है, तो वो खुद ही बादशाह के लिए पानी ले गया। उस कूड़ा उठाने वाले सेवक को पानी लिए अपने कमरे में खड़ा देखकर अकबर चौंक गए, लेकिन उन्हें प्यास बहुत लगी थी। ऐसे में बिना ज्यादा सोचे-समझे अकबर ने उसका लाया हुआ गिलास पकड़ा और पानी पी लिया।

  उसी वक्त अकबर के कुछ खास कार्यकर्ता उनके कमरे में पहुंचे। उन्होंने कूड़ा उठाने वाले सेवक को वहां देखते ही उसे कमरे से तुरंत बाहर जाने के लिए कहा। फिर उन्होंने कुछ देर बादशाह से बात की और वो भी उनके कमरे से चले गए। तभी कुछ देर बाद बादशाह अकबर का पेट खराब होने लगा। जैसे-जैसे दिन ढलता गया, उनकी तबीयत और बिगड़ गई।

बादशाह की ऐसी हालत देखकर बड़े-से-बड़ा हकीम बुलवाया गया, लेकिन दवाई लेने के बाद भी उनकी तबीयत में कोई सुधार नजर नहीं आ रहा था। तभी राज वैद्य ने बादशाह को ज्योतिष बुलवाने का सुझाव देते हुए कहा, “बादशाह! लगता है आप पर मनहूस इंसान का साया पड़ गया है।” राज वैद्य की बात का मान रखते हुए अकबर ने ज्योतिष को बुलाने का आदेश दिया।

तभी अकबर के मन में हुआ किसी मनहूस की परछाई तो मुझपर पड़ी नहीं। बस कूड़ा साफ करने वाले का लाया हुआ पानी मैंने पिया था। यह सोचते ही उन्होंने उस कचरा साफ करने वाले कर्मचारी को सजाए मौत सुना दी। बादशाह का आदेश मिलते ही सिपाहियों ने उस नौकर को जेल में डाल दिया।

कुछ देर बाद बादशाह के इस आदेश के बारे में बीरबल को पता चला। वो तुरंत उस कर्मचारी के पास पहुंचे और कहा कि तुम चिंता मत करना, मैं किसी-न-किसी तरकीब से तुम्हें बचा ही लूंगा। इतना कहकर बीरबल तुरंत बादशाह अकबर के पास पहुंच गए।


बीरबल ने बादशाह से पूछा, “आपको क्या हुआ है? कैसे इतना बीमार पड़ गए?”

जवाब में अकबर बोले, “बीरबल एक मनहूस इंसान की छाया मुझपर पड़ गई और मैं बीमार हो गया।”


बादशाह का जवाब सुनते ही बीरबल उन्हीं के सामने हंसने लगे। यह देखकर अकबर को बहुत खराब लगा। उन्होंने कहा, “ बीरबल तुम मेरी बीमारी का मजाक उड़ा रहा हो।”


बीरबल ने कहा, “नहीं-नहीं बादशाह, मुझे तो बस इतना कहना है कि अगर मैं आपके सामने उस कूड़ा उठाने वाले कर्मचारी से भी बड़ा मनहूस इंसान ले आऊं तो क्या आप नौकर की सजा माफ कर दोगे?

अकबर ने पूछा, “उससे भी बड़ा मनहूस कोई हो सकता है क्या? चलो, तुम किसी बड़े मनहूस को ले आते हो, तो मैं उस व्यक्ति को मुक्त कर दूंगा।”

तभी तपाक से बीरबल बोल पड़े कि महाराज, उससे बड़े मनहूस आप स्वयं ही हैं। उस मामूली नौकर ने तो बस आपकी प्यास बुझाने के लिए आपको पानी दिया, लेकिन आपको लग रहा है कि उसके कारण आपकी तबीयत खराब हो गई है। उस बेचारे नौकर का तो सोचिए जरा, वो तो आपको पानी पिलाने की वजह से जेल में पहुंच गया। सुबह-सुबह आपको देखने की वजह से उसका दिन तो छोड़िए पूरा जीवन बर्बाद हो गया। अब कुछ देर में उसे मौत की सजा मिल जाएगी। अब आप ही बताइए तबीयत खराब होना बड़ी मनहूसियत है या मौत की सजा मिलना।

आगे बीरबल बोले, “अब आप खुद को मौत की सजा मत देना, क्योंकि आप हम सभी के बादशाह हैं और हमें जान से भी ज्यादा प्यारे हैं।”


बीरबल की ऐसी बुद्धिमता वाली बातें सुनकर बीमार अकबर जोर से हंस पड़े। उन्होंने तुरंत ही सिपाहियों को कूड़ा-कचरा उठाने वाले उस नौकर को जेल से रिहा करने का आदेश दिया। साथ-ही-साथ उसकी मौत की सजा भी माफ कर दी।

कहानी से सीख :

किसी की भी बातों पर आकर फैसला नहीं लेना चाहिए और अंधविश्वासी तो बिल्कुल भी नहीं होना चाहिए।


5.बुद्धि से भरा बर्तन |

एक बार की बात है राजा अकबर व उनके प्रिय बीरबल के बीच कुछ मनमुटाव हो गया। इसके चलते राजा ने बीरबल को राज्य से दूर जाने की सजा दे दी। इस परिस्थिति में भी बीरबल ने हार न मानी और उन्होंने अन्य गांव जाकर वेश बदलकर खेती करना शुरू किया। 

  अब वह एक किसान के रूप में अपना जीवन गुजारने लगे।

शुरू में तो राजा अकबर के लिए सब कुछ सामान्य सा था, लेकिन कुछ ही दिन बीते थे कि राजा को अपनी गलती का एहसास होने लगा। वह अपनी दैनिक दिनचर्या में बीरबल को याद करने लगे थे। जब भी उनके समक्ष कोई मुश्किल परेशानी आती तो उन्हें बीरबल की कमी खूब खलती थी

 एक दिन राजा अकबर से रहा न गया। उन्होंने अपने सेनापति को बुलाया और उन्हें बीरबल को ढूंढ लाने का आदेश दिया। राजा की आज्ञा अनुसार हर गांव, हर गली में बीरबल की खोज शुरू की गई। सभी सैनिकों ने हर एक कोना छान मारा, लेकिन वे बीरबल को ढूंढ न सके।


राजा को जब इस बात की जानकारी मिली तो वे बड़े निराश हुए। अब बीरबल से मिलने की उनकी बेचैनी और बढ़ने लगी थी। अचानक राजा के मन में एक उपाय आया। उन्होंने आदेश दिया कि सभी गांव के मुखिया को संदेश भेजा जाए कि उन सभी को एक बर्तन के अंदर बुद्धि डालकर राजा को भेजना होगा। जो भी इस आदेश को पूरा नहीं करेगा, उसे इसके बदले एक बर्तन में हीरे जवाहरात भरकर राजा को भेजना पड़ेगा।


सभी गांववासी राजा के इस अजीबो-गरीब आदेश को सुनकर परेशान थे। सभी यह सोचकर हैरान थे कि बुद्धि को किस तरह एक बर्तन में भरा जाए। बुद्धि तो सभी के पास उपलब्ध थी, लेकिन उसे किस तरह एक बर्तन में डालना है, यह सोचकर सभी परेशानी में थे। ऐसा न कर पाने की अवस्था में उन्हें उसी बर्तन को कीमती हीरे-जेवरों से भरना था, जो कि इससे भी बड़ी समस्या थी।

  वहीं, जिस गांव में बीरबल एक सामान्य किसान का वेश बनाकर रह रहे थे, वहां भी राजा का यह आदेश चर्चा का विषय बना हुआ था। गांव के सभी बड़े-बुज़ुर्ग निराश होकर बैठे हुए थे कि वहां बीरबल आए और उन्होंने कहा कि वह इस समस्या का समाधान निकाल सकते हैं। पहले तो किसी को भी इस बात का यकीन नहीं हुआ, लेकिन उनके पास बीरबल पर विश्वास करने के अलावा और कोई रास्ता नहीं था। इसलिए इस काम की बागडोर बीरबल को सौंपी गई।

उस वक्त गांव में तरबूज़ की फसल उगाने का समय था। बीरबल ने तरबूज के पौधे की एक बेल को एक बर्तन में डाला। धीरे-धीरे उस बेल में तरबूज का फल लगने लगा और समय के साथ ही तरबूज़ ने बर्तन का आकार ले लिया। जैसे ही बर्तन तरबूज़ से पूरा भर गया, बीरबल ने बेल को फल से अलग किया और उस बर्तन को तरबूज़ समेत राजा के दरबार में भिजवा दिया। साथ में यह संदेश भी भेज कि उस बर्तन के अंदर बुद्धि भरी है और राजा को बर्तन को बिना तोड़े ही बुद्धि को निकालना होगा।

जैसे ही राजा ने तरबूज़ से भरा हुआ बर्तन देखा व उसे निकालने की शर्त सुनी तो उन्हें यकीन हो गया कि ऐसा विचार केवल बीरबल का ही हो सकता है। उन्होंने जल्दी से अपना घोड़ा मंगवाया और बीरबल को अपने साथ वापिस लाने के लिए गांव की ओर चल दिए।

कहानी से सीख :

इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हर मुश्किल सवाल का कोई न कोई जवाब जरूर होता है। हमें केवल थोड़ा हटकर सोचने की जरूरत होती है।


6 . अकबर का साला | 

बीरबल की बुद्धि और समस्या को भाप लेने की कला के कारण बादशाह उन्हें खूब पसंद करते थे। इसी कारण से दूसरे लोग बीरबल से उतना ही जलते थे। इन जलने वालों में से एक अकबर का साला भी था। वो हमेशा से ही बीरबल को मिला हुआ खास स्थान लेना चाहता था।

बादशाह जानते थे कि बीरबल जैसा कोई और नहीं हो सकता है। वो अपने साले को भी ये बात समझाने की कोशिश करते थे, लेकिन उनका साला हमेशा कहता था कि वो भी काफी बुद्धिमान है। इन सब बातों के कारण एक बार बादशाह के मन में हुआ कि अब ये ऐसे नहीं मानेगा। इसे कुछ कार्य देकर ही समझाने पड़ेगा।


तभी अकबर ने अपने साले से कहा कि तुम अपने दिमाग और सूझबूझ से इस कोयले की बोरी को सबसे ज्यादा लालची सेठ दमड़ी लाल को बचकर आओ। अगर तुमने ऐसा कर दिया, तो मैं तुम्हें तुरंत बीरबल की जगह दे दूंगा।

यह बात सुनकर अकबर का साला हैरान हुआ, लेकिन उसे बीरबल की जगह चाहिए थी। इसी सोच के साथ वो कोयले की बोरी लेकर सेठ के पास पहुंच गया। सेठ ऐसे ही किसी की भी बातों में आने वाला नहीं था, इसलिए उसने उसे खरीदने से मना कर दिया।

अब अपना उदास चेहरा लेकर अकबर का साला महल लौट आया। उसने कहा कि मैं इसे नहीं बेच पाया।

इतना सुनते ही बादशाह ने बीरबल को अपने पास बुलाया। उन्होंने अपने साले के सामने ही बीरबल से कहा कि तुम्हें सेठ दमड़ी लाल को यह कोयले की बोरी बेचनी है।

बादशाह का आदेश मिलने पर बीरबल ने कहा कि आप एक बोरी बेचने के लिए कह रहे हैं। मैं उस सेठ को एक कोयले का टुकड़ा ही दस हजार में बेच सकता हूं। यह बात सुनकर अकबर का साला दंग रह गया।

अकबर ने कहा कि ठीक है तुम एक ही कोयले का टुकड़ा बेच आओ।

बादशाह का आदेश मिलते ही एक कोयले का टुकड़ा उठाकर बीरबल वहां से चले गए। उन्होंने सबसे पहले एक मलमल के कपड़े का कुर्ता अपने लिए सिलवाया। फिर उसे पहनकर अपने गले में हीरे-मोती की मालाएं डाल लीं और महंगे दिखने वाले जूते भी पहन लिए। इतना सब करने के बाद बीरबल ने उस कोयले के टुकड़े को सुरमा यानी काजल की तरह बारीक पीसकर एक कांच की डिब्बी में डलवा लिया।

इसी भेष में वो महल के मेहमानघर में आ गए। फिर बीरबल ने एक इश्तिहार दिया कि बगदाद में एक जाने माने शेख पहुंचे हैं, जो जादुई सुरमा बेचते हैं। सुरमे की खासियत में बीरबल ने लिखवाया कि इसे लगाने वाला अपने पूर्वजों को देख सकता है। यदि पूर्वजों ने कोई धन छुपाकर रखा है, तो वो उसका पता भी बता देंगे।

इस इश्तिहार के सामने आते ही पूरे नगर में बीरबल के शेख रूप और चमत्कारी सुरमे की ही बात होने लगी। सेठ दमड़ी लाल तक भी यह बात पहुंच गई। उसके मन में हुआ जरूर मेरे पूर्वज ने धन गाड़ रखा होगा। मुझे तुरंत शेख से संपर्क करना चाहिए। इतना सोचकर दमड़ी लाल शेख बने बीरबल के पास पहुंचा।

बीरबल ने जानबूझकर उन्हें पहचाना नहीं। सेठ ने शेख से कहा कि मुझे सुरमे की डिब्बी चाहिए।

शेख ने जवाब दिया, “बिल्कुल लीजिए, लेकिन एक डिब्बी की कीमत दस हजार रुपये है।”

सेठ काफी चालाक था। उसने शेख से कहा कि मैं पहले सुरमा आंखों पर लगाना चाहता हूं। उसके बाद पूर्वजों के दिखने पर ही मैं दस हजार रुपये दूंगा।

शेख बने बीरबल ने कहा कि ठीक है, आपको ऐसा करने की इजाजत है। बस आपको सुरमे की जांच करने के लिए चौराहे पर चलना होगा।


चमत्कारी सुरमे का करिश्मा देखने के लिए वहां लोगों की भीड़ लग गई। तब बीरबल बने शेख जोर-जोर से कहने लगे कि इस चमत्कारी सुरमे को सेठ जी लगाएंगे। अगर ये सेठ अपने माता-पिता की ही औलाद हैं, तो इन्हें सुरमा लगाते ही तुरंत पूर्वज नजर आ जाएंगे। पूर्वज नहीं दिखे, तो मतलब यह होगा कि वो अपने माता-पिता की औलाद नहीं हैं। असली औलादों को ही यह सुरमा लगाने पर अपने पूर्वज नजर आते हैं।

यह सब कहने के बाद शेख ने सेठ के आंखों पर सुरमा लगा दिया और कहा कि आंखें बंद कर लो। सेठ ने आंखें बंद तो की लेकिन उन्हें कोई भी नहीं दिखा। अब सेठ के मन में हुआ कि मैंने कह दिया कि मुझे कोई नहीं दिखा, तो भारी अपमान हो जाएगा। इज्जत को बनाए रखने के लिए सेठ ने आंख खोली और कहा कि हां, मुझे अपने पूर्वज दिख गए। इसके बाद गुस्से में लाल सेठ ने बीरबल के हाथ में 10 हजार रुपये थमा दिए।

अब खुश होते हुए बीरबल महल चले गए। उन्होंने कहा कि लीजिए बादशाह एक कोयले के 10 हजार रुपये और सारा किस्सा सुना दिया। यह देखते ही बादशाह का साला मुंह बनाकर महल से चला गया। उसके बाद से उसने कभी भी बीरबल की जगह लेने की बात अकबर से नहीं की।

कहानी से सीख :

किसी से ईर्ष्या नहीं करनी चाहिए और अपनी काबिलियत को साबित करने के लिए बुद्धि का उपयोग करना जरूरी है।


7 . ऊंट की गर्दन  |

बीरबल की सूझबूझ और हाजिर जवाबी से बादशाह अकबर बहुत रहते थे। बीरबल किसी भी समस्या का हल चुटकियों में निकाल देते थे। एक दिन बीरबल की चतुराई से खुश होकर बादशाह अकबर ने उन्हें इनाम देने की घोषणा कर दी।


काफी समय बीत गया और बादशाह इस घोषणा के बारे में भूल गए। उधर बीरबल इनाम के इंतजार में कब से बैठे थे। बीरबल इस उलझन में थे कि वो बादशाह अकबर को इनाम की बात कैसे याद दिलाएं।

एक शाम बादशाह अकबर यमुना नदी के किनारे सैर का आनंद उठा रहे थे कि उन्हें वहां एक ऊंट घूमता हुआ दिखाई दिया। ऊंट की गर्दन देख राजा ने बीरबल से पूछा, “बीरबल, क्या तुम जानते हो कि ऊंट की गर्दन मुड़ी हुई क्यों होती है?”

बादशाह अकबर का सवाल सुनते ही बीरबल को उन्हें इनाम की बात याद दिलाने का मौका मिल गया। बीरबल से झट से उत्तर दिया, “महाराज, दरअसल यह ऊंट किसी से किया हुआ अपना वादा भूल गया था, तब से इसकी गर्दन ऐसी ही है। बीरबल ने आगे कहा, “लोगों का यह मानना है कि जो भी व्यक्ति अपना किया हुआ वादा भूल जाता है, उसकी गर्दन इसी तरह मुड़ जाती है।”


बीरबल की बात सुनकर बादशाह हैरान हो गए और उन्हें बीरबल से किया हुआ अपना वादा याद आ गया। उन्होंने बीरबल से जल्दी महल चलने को कहा। महल पहुंचते ही बादशाह अकबर ने बीरबल को इनाम दिया और उससे पूछा, “मेरी गर्दन ऊंट की तरह तो नहीं हो जाएगी न?” बीरबल ने मुस्कुराकर जवाब दिया, “नहीं महाराज।” यह सुनकर बादशाह और बीरबल दोनों ठहाके लगाकर हंस दिए।


इस तरह बीरबल ने बादशाह अकबर को नाराज किए बगैर उन्हें अपना किया हुआ वादा याद दिलाया और अपना इनाम लिया।

कहानी से सीख :

इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमें किसी से किया हुआ अपना वादा पूरा जरूर करना चाहिए।


8 . सबसे बड़ा हथियार | 

बादशाह अकबर कामकाज के अलावा भी कई चीजों के बारे में बीरबल से बातचीत किया करते थे। ऐसे ही बैठे-बैठे एक दिन बादशाह ने बीरबल से पूछा कि इस दुनिया में सबसे बड़ा हथियार तुम्हारे हिसाब से कौन-सा होता है?

इस बात के जवाब में बीरबल ने कहा कि संसार में आत्मविश्वास से बड़ा हथियार कुछ और नहीं हो सकता है। यह बात अकबर के समझ में नहीं आई, लेकिन फिर भी उन्होंने कुछ नहीं कहा। उनके मन में हुआ कि समय आने पर इस बात की परख की जाएगी।

कुछ दिनों बाद राज्य में एक हाथी बेकाबू हो गया। पता करने पर समझ आया कि वो पागल हो गया है। उसे कर्मचारियों ने जंजीरों से जकड़ लिया था। इसकी खबर जैसे ही बादशाह को पहुंची, तो उन्होंने सीधे महावत से कहा कि जब भी तुम्हें बीरबल आता दिखे तो हाथी की जंजीरों को खेल देना।

यह सुनकर महावत हैरान हो गया, लेकिन बादशाह का आदेश था, इसलिए सिर झुकाकर चला गया।

अब अकबर ने बीरबल को महावत के पास जाने के लिए कहा। महावत ने भी बादशाह के आदेश का पालन करते हुए बीरबल को आते देख हाथी को जंजीरों से मुक्त कर दिया। बीरबल को इस बात की खबर नहीं थी, इसलिए वो आराम से चल रहे थे। तभी उनकी नजर चिंघाड़ते हुए हाथी पर पड़ी। जैसे ही उन्होंने देखा कि हाथी उनकी ही तरफ आ रहा है। वो कुछ समझ नहीं पाए।

कुछ ही देर में उनके दिमाग में हुआ कि बादशाह ने मेरी आत्मविश्वास वाली बात को परखने के लिए ही इस हाथी को मेरे पीछे छोड़ने का आदेश दिया होगा। अब बीरबल इधर-उधर भागने की सोच रहे थे, लेकिन ऐसा कुछ हो नहीं पाया। सामने से हाथी आ रहा था और अगल-बगल में भागकर जाने की जगह नहीं थी।

इतने में हाथी बीरबल के काफी करीब पहुंच गया। तभी बीरबल ने सामने एक कुत्ते को देखा और उसे टांगों से पकड़कर हाथी की तरफ फेंक दिया। कुत्ते चीखते हुए हाथी से टकराया। उसकी ऐसी चीखें सुनकर हाथी वापस उल्टी दिशा में भागने लगा।


कुछ ही देर में इस बारे में बादशाह अकबर को पता चला, तब जाकर उन्होंने माना कि आत्मविश्वास ही मनुष्य का सबसे बड़ा हथियार है।

कहानी से सीख :

हर किसी की बात पर यूं ही भरोसा नहीं कर लेना चाहिए। बात की जांच और परख करना जरूरी है। दूसरी सीख यह है कि इंसान समय से पहले उम्मीद न छोड़े, तो परेशानी से बाहर निकला जा सकता है।


9 . सारा जग बेईमान |



बादशाह अकबर और बीरबल हमेशा की ही तरह एक दिन बैठकर अपनी प्रजा के बारे में बात कर रहे थे। बातों-ही-बातों में बादशाह ने कहा कि बीरबल तुम्हें पता है हमारी प्रजा बेहद ईमानदार है। इसका जवाब बीरबल ने ये कहते हुए दिया कि बादशाह सलामत, किसी भी राज्य में लोग पूरी तरह से ईमानदार नहीं होते हैं। सारा जग ही बेईमान है।

बादशाह को बीरबल की यह बात पसंद नहीं आई। उन्होंने पूछा, “बीरबल तुम ये कैसी बात कर रहे हो?”

बीरबल ने उत्तर दिया कि मैं एकदम सत्य कह रहा हूं। आप चाहो तो मैं अपनी बात अभी साबित कर सकता हूं।

इतना आत्मविश्वास देखकर बादशाह बोले, “ठीक है! जाओ तुम अपनी बात को सच साबित करके दिखाओ।”

बादशाह अकबर से इजाजत मिलते ही बीरबल पूरी प्रजा की बेईमानी बाहर लाने के लिए तरकीब सोचने लगे। उनके मन में हुआ कि लोग खुलकर बेईमानी नहीं करते हैं, इसलिए कुछ अलग करना होगा।

यह सोचते ही उन्होंने पूरे राज्य में यह एलान कर दिया कि बादशाह एक बड़ा सा भोज करना चाह रहे हैं। उसके लिए वो चाहते हैं कि पूरी जनता अपना योगदान दे। बस आप लोगों को ज्यादा कुछ नहीं एक लोटा दूध पतीले में डालना होगा। इतना ही प्रजा की तरफ से काफी है।

इस बात का एलान करवाने के बाद जगह-जगह पर एक-दो बड़े-बड़े पतीले रखवा दिए गए। इतना बड़ा पतीला और राज्य की जनसंख्या को ध्यान में रखते हुए, उसमें लोगों ने शुद्ध दूध डालने के बजाय पानी मिला हुआ दूध डाला। किसी-किसी ने तो सिर्फ पानी ही डाल दिया। हर किसी के मन में यही होता था कि सामने वाले ने तो दूध ही डाला होगा। अगर मैं पानी या पानी मिला हुआ दूध डाल दूंगा तो क्या ही हो जाएगा।

शाम तक पतीलों में दूध इकट्ठा हो गया। बीरबल अपने साथ बादशाह अकबर और कुछ रसोइयों को उन जगहों पर ले गए जहां पतीले रखे गए थे। बादशाह ने जिस भी पतीले में देखा तो दूध नहीं, सिर्फ सफेद पानी ही दिखा। रसोइयों ने भी कहा कि महाराज ये दूध नहीं है। ये सारा पानी ही है। इसमें मुश्किल से आधे से एक लोटा दूध होगा, जिसकी वजह से इसका रंग हल्का सफेद है। वरना ये पानी से ज्यादा कुछ नहीं।

इन सारी चीजों को देखकर बादशाह अकबर हैरान हो गए। उनके मन में हुआ कि मैं तो सबको ईमानदार समझता था, लेकिन बीरबल की ही बात सच निकली। उन्होंने बीरबल को कहा कि तुम ठीक ही कहते थे। मुझे हकीकत समझ आ गई है। इतना कहते हुए बादशाह, बीरबल और रसोइये वापस महल आ गए।

कहानी से सीख :

किसी पर भी अंधा भरोसा नहीं करना चाहिए। मौका मिलने पर लोग बेईमानी करने से चूकते नहीं हैं।


 10 . बादशाह का सपना |



चतुराई और बुद्धि के सही इस्तेमाल के लिए बीरबल के किस्से खूब मशहूर हैं। बादशाह अकबर के ऊपर आई मुसीबतों को बीरबल हमेशा चुटकियों में सुलझा देते थे। सिर्फ असल जिंदगी की परेशानी ही नहीं, बल्कि बादशाह के सपनों की गुत्थियों का जवाब भी बीरबल के पास होता था। ऐसा ही एक किस्सा है, बादशाह के अजीब सपने का। आइए, आपको सुनाते हैं पूरी कहानी।

  एक बार की बात है, जब बादशाह अकबर गहरी नींद से अचानक उठ गए और फिर रात भर सो नहीं सके। वो बहुत परेशान थे, क्योंकि उन्होंने अजीब-सा सपना देखा था, जिसका मतलब वो समझ नहीं पा रहे थे। उन्होंने देखा कि उनके एक के बाद एक सारे दांत गिरते चले गए और आखिर में सिर्फ एक ही दांत बचा। इस सपने से वह इतने चिंतित हुए कि उन्होंने इसके बारे में सभा में चर्चा करने के बारे में सोचा। 

अगले दिन सभा में पहुंचते ही अकबर ने अपने विश्वसनीय मंत्रियों को सपना सुनाया और सभी से राय मांगी। सभी ने उन्हें सुझाव दिया कि इस बारे में किसी ज्योतिष से बात करके सपने का मतलब समझना चाहिए। बादशाह को भी यह बात सही लगी।


अगले दिन उन्होंने दरबार में विद्वान ज्योतिषों को बुलवाया और अपना सपना सुनाया। इसके बाद सभी ज्योतिषों ने आपस में विचार-विमर्श किया। फिर उन्होंने बादशाह से कहा, “जहांपनाह, इस सपने का एक ही मतलब निकलता है कि आपके सभी रिश्तेदार आपसे पहले ही मर जाएंगे।”


ज्योतिषों की यह बात सुनकर अकबर को बहुत गुस्सा आया और उन्होंने सभी ज्योतिषों को दरबार से जाने का आदेश दिया। उन सभी के जाने के बाद बादशाह अकबर ने बीरबल को बुलाया और कहा, “बीरबल, तुम्हारे अनुसार हमारे सपने का मतलब क्या होगा?”


बीरबल ने कहा, “हुजूर, मेरे हिसाब से आपके सपने का मतलब यह था कि आपके सभी रिश्तेदारों में से आपकी उम्र सबसे ज्यादा होगी और आप उन सभी से ज्यादा समय तक जीते रहेंगे।” इस बात को सुनकर बादशाह अकबर बहुत खुश हो गए।

वहां मौजूद सभी मंत्रियों ने सोचा कि बीरबल ने भी ज्योतिषों की ही बात को दोहराया है। इतने में बीरबल ने उन मंत्रियों से कहा कि देखो, बात वही थी, बस कहने का तरीका अलग था। बात को हमेशा सही तरीके से सामने रखा जाना चाहिए। मंत्रियों को इतना कहकर बीरबल सभा से चले गए।

कहानी से सीख :

किसी भी बात को बोलने का एक सही तरीका होता है। विचलित करने वाली बात को भी सही तरीके से कहा जाए, तो उसका बुरा नहीं लगता। इसी वजह से बात को हमेशा सही तरीका और सलीके से रखा जाना चाहिए। 


11 . आधा इनाम



यह बात तब की है जब शहंशाह अकबर और बीरबल की पहली मुलाकात हुई थी। उस समय सभी बीरबल को महेश दास के नाम से जानते थे। एक दिन शहंशाह अकबर बाजार में महेश दास की होशियार से खुश होकर उसे अपने दरबार में इनाम देने के लिए बुलाते हैं और निशानी के तौर पर अपनी अंगूठी देते हैं।

कुछ समय के बाद महेश दास सुल्तान अकबर से मिलने का विचार बनाकर उनके महल की ओर रवाना हो जाते हैं। वहां पहुंचकर महेश दास देखते हैं कि महल के बाहर बहुत लंबी लाइन लगी हुई है और दरबान हर व्यक्ति से कुछ न कुछ लेकर ही उन्हें अंदर जाने दे रहा है। जब महेश दास का नंबर आया, तो उसने कहा कि महाराज ने मुझे इनाम देने के लिए बुलाया है और उसने सुल्तान की अंगूठी दिखाई। दरबान के मन में लालच आ गया और उसने कहा कि मैं तुम्हें एक ही शर्त पर अंदर जाने दूंगा अगर तुम मुझे इनाम में से आधा हिस्सा दो तो।

  दरबान की बात सुनकर महेश दास ने कुछ सोचा और उसकी बात मानकर महल में चले गए। दरबार में पहुंचकर वह अपना नंबर आने का इंतजार करने लगे। जैसे ही महेश दास की बारी आई और वो सामने आए, तो शहंशाह अकबर उन्हें देखते ही पहचान गए और दरबारियों के सामने उनकी बहुत तारीफ की। बादशाह अकबर ने कहा कि बोलो महेश दास इनाम में क्या चाहिए।


तब महेश दास ने कहा कि महाराज मैं जो कुछ भी मांगूगा क्या आप मुझे इनाम में देंगे? बादशाह अकबर ने कहा कि बिल्कुल, मांगों क्या मांगते हो। तब महेश दास ने कहा कि महाराज मुझे पीठ पर 100 कोड़े मारने का इनाम दें। महेश दास की बात सुनकर सभी को हैरानी हुई और बादशाह अकबर ने पूछा कि तुम ऐसा क्यों चाहते हो।

तब महेश दास ने दरबान के साथ हुई पूरी घटना बताई और अंत में कहा कि मैंने वादा किया है कि इनाम का आधा हिस्सा मैं दरबान को दूंगा। तब अकबर ने गुस्से में आकर दरबान को 100 कोड़े लगवाए और महेश दास की होशियारी देखकर अपने दरबार में मुख्य सलाहकार के रूप में रख लिया। इसके बाद अकबर ने उनका नाम बदलकर महेश दास से बीरबल कर दिया। तब से लेकर आज तक अकबर और बीरबल के कई किस्से मशहूर हुए।


कहानी से सीख:

हमें अपना काम ईमानदारी से और बिना किसी लालच के करना चाहिए। अगर आप कुछ पाने की उम्मीद से कोई काम करते हो, तो हमेशा बुरे परिणाम का सामना करना पड़ता है, जैसे इस कहानी में लालची दरबान के साथ हुआ।


12 . अकबर का तोता



बहुत समय पहले की बात है। एक बार अकबर बाजार में भ्रमण पर निकले थे। वहां उन्होंने एक तोता देखा, जो बहुत ही प्यारा था। उसके मालिक ने उसे बहुत अच्छी बातें सिखाई थीं। अकबर यही देखकर खुश हो गए। उन्होंने उस तोते को खरीदने का फैसला कर लिया। तोते को खरीदने के बदले अकबर ने मालिक को अच्छी कीमत दी। वो उस तोते को राजमहल लेकर आए। यहां पर तोते को लाने के बाद अकबर ने उसे बहुत अच्छे से रखने का फैसला किया।

अब अकबर जब भी उससे कोई बात पूछते, तो वह उस बात का तुरंत जवाब दे देता था। अकबर बहुत खुश हो जाते थे। वह तोता दिनों-दिन उनके लिए जान से भी प्यारा हो गया था। उन्होंने महल में उसके रहने के लिए शाही व्यवस्था करने का आदेश दिया। उन्होंने अपने सेवकों को कहा, ‘इस तोते का खास ख्याल रखा जाए। तोते को किसी भी प्रकार की तकलीफ नहीं होनी चाहिए।’


उन्होंने यह भी कहा, ‘यह तोता किसी भी हालत में मरना तो बिल्कुल भी नहीं चाहिए। अगर किसी ने तोते के मरने की खबर उनको दी, तो वह उसको फांसी दे देंगे।’ महल में तोते के रहने का खास ख्याल रखा जाने लगा। फिर एक दिन अचानक अकबर का प्यारा तोता मर गया।

अब महल के सेवकों में हड़कंप मच गया कि आखिर अकबर को यह बात कौन बताएगा, क्योंकि अकबर ने कहा था कि जो भी तोते की मौत की खबर उन्हें देगा, वह उसकी जान ले लेंगे। अब सेवक परेशान थे। काफी सोच-विचार के बाद उन्होंने फैसला किया कि यह बात बीरबल को बताई जाए। सभी ने बीरबल को सारी बात बताई। यह भी बताया कि बादशाह अकबर मौत की खबर देने वाले को मौत की सजा देंगे। यह सुनकर बीरबल, बादशाह अकबर को यह खबर सुनाने को राजी हो गए। वो महल में अकबर को यह जानकरी देने के लिए चल पड़े।

    बीरबल ने अकबर के पास जाकर कहा, ‘महाराज एक दुखद खबर है।’ अकबर ने पूछा – ‘बताओ क्या हुआ?’ बीरबल ने कहा, ‘महाराज आपका प्यारा तोता, न तो कुछ खा रहा है, न तो कुछ पी रहा है, न तो कुछ बोल रहा है, न आंखें खोल रहा है और न ही कोई हरकत कर रहा है और न ही….।’ अकबर गुस्से में आकर बोले, ‘…न ही क्या? सीधा-सीधा क्यों नहीं बोलते कि वो मर गया है।’ बीरबल ने कहा, ‘हां महाराज, लेकिन ये बात मैंने नहीं आपने कही है। इसलिए, मेरी जान बक्श दीजिए।’ अकबर भी कुछ न बोल सके। इस तरह बीरबल ने बड़ी सूझबूझ से अपनी और अपने सेवकों की जान बचा ली।

कहानी से सीख:

मुश्किल समय में घबराना नहीं चाहिए, बल्कि समझदारी से काम लेना चाहिए। दिमाग का इस्तेमाल करके किसी भी समस्या का हल निकाला जा सकता है।


13 .अकबर-बीरबल और जादुई गधे की कहानी |


एक समय की बात है, बादशाह अकबर ने अपने बेगम के जन्मदिन के लिए बहुत ही खूबसूरत और बेशकीमती हार बनवाया था। जब जन्मदिन आया, तो बादशाह अकबर ने वह हार अपनी बेगम को तोहफे में दे दिया, जो उनकी बेगम को बहुत पसंद आया। अगली रात बेगम साहिबा ने वह हार गले से उतारकर एक संदूक में रख दिया। जब इस बात को कई दिन गुजर गए, तो एक दिन बेगम साहिबा ने हार पहने के लिए संदूक खोला, लेकिन हार कहीं नहीं मिला। इससे वह बहुत उदास हो गईं और इस बारे में बादशाह अकबर को बताया। इस बारे में पता चलते ही बादशाह अकबर ने अपने सैनिकों को हार ढूंढने का आदेश दिया, लेकिन हार कहीं नहीं मिला। इससे अकबर को यकीन हो गया कि बेगम का हार चोरी हो गया है।

फिर अकबर ने बीरबल को महल में आने के लिए बुलावा भेजा। जब बीरबल आया, तो अकबर ने सारी बात बताई और हार को खोज निकालने की जिम्मेदारी उसे सौंप दी। बीरबल ने समय व्यर्थ किए बिना ही राजमहल में काम करने वाले सभी लोगों को दरबार में आने के लिए संदेश भिजवाया। थोड़े ही देर में दरबार लग गया। दरबार में अकबर और बेगम सहित सभी काम करने वाले हाजिर थे, लेकिन बीरबल दरबार में नहीं था। सभी बीरबल का इंतजार कर ही रहे थे कि तभी बीरबल एक गधा लेकर राज दरबार में पहुंच जाता है। देर से दरबार में आने के लिए बीरबल बादशाह अकबर से माफी मांगता है। सभी सोचने लगते हैं कि बीरबल गधे को लेकर राज दरबार में क्यों आया है। फिर बीरबल बताता है कि यह गधा उसका दोस्त है और उसके पास जादुई शक्ति है। यह शाही हार चुराने वाले का नाम बता सकता है।

इसके बाद बीरबल जादुई गधे को सबसे नजदीक वाले कमरे में ले जाकर बांध देता है और कहता है कि सभी एक-एक करके कमरे में जाएं और गधे की पूंछ पकड़कर चिल्लाए “जहांपनाह मैंने चोरी नहीं की है।” साथ ही बीरबल कहता है कि आप सभी की आवाज दरबार तक आनी चाहिए। सभी के पूंछ पकड़कर चिल्लाने के बाद आखिर में गधा बताएगा कि चोरी किसने की है।

इसके बाद सभी कमरे के बाहर एक लाइन में खड़े हो गए और एक-एक करके सभी ने कमरे में जाना शुरू कर दिया। जो भी कमरे के अंदर जाता, तो पूंछ पकड़ कर चिल्लाना शुरू कर देता “जहांपनाह मैंने चोरी नहीं की है।” जब सभी का नंबर आ जाता है, तो अंत में बीरबल कमरे में जाता है और कुछ देर बाद कमरे से बाहर आ जाता है।

फिर बीरबल सभी काम करने वालों के पास जाकर उन्हें दोनों हाथ सामने करने को बोलता है और एक-एक करके सभी के हाथ सूंघने लगता है। बीरबल की इस हरकत को देखकर सभी हैरान हो जाते हैं। ऐसे ही सूंघते-सूंघते एक काम करने वाले का हाथ पकड़कर बीरबल जोर से बोलता है, “जहांपनाह इसने चोरी की है।” ये सुनकर अकबर बीरबल से कहते हैं, “तुम इतने यकीन के साथ कैसे कह सकते हो कि चोरी इस सेवक ने ही की है। क्या तुम्हें जादुई गधे ने इसका नाम बताया है।”


तब बीरबल बोलता है, “जहांपनाह यह गधा जादुई नहीं है। यह बाकी गधों की तरह साधारण ही है। बस मैंने इस गधे की पूंछ पर एक खास तरह का इत्र लगाया है। सभी सेवकों ने गधे की पूंछ को पकड़ा, बस इस चोर को छोड़कर। इसलिए, इसके हाथ से इत्र की खुशबू नहीं आ रही है।”


फिर चोर को पकड़ लिया गया और उससे चोरी के सभी सामान के साथ ही बेगम का हार भी बरामद कर लिया गया। बीरबल की इस अक्लमंदी की सभी ने सराहना की और बेगम ने खुश होकर बादशाह अकबर से उसे उपहार भी दिलवाया।

कहानी से सीख:
इस कहानी से यह सीख मिलती है कि बुरे काम को कितना भी छुपाने की कोशिश करो, एक दिन सबको पता चल ही जाता है। इसलिए, बुरे काम नहीं करने चाहिए।


14.सोने का खेत |

अकबर के महल में कई कीमती सजावट की वस्तुएं थीं, लेकिन एक गुलदस्ते से अकबर को खास लगाव था। इस गुलदस्ते को अकबर हमेशा अपनी पलंग के पास रखवाते थे। एक दिन अचानक महाराज अकबर का कमरा साफ करते हुए उनके सेवक से वह गुलदस्ता टूट गया। सेवक ने घबराकर उस गुलदस्ते को जोड़ने की बहुत कोशिश की, लेकिन नाकाम रहा। हार कर उसने टूटा गुलदस्ता कूड़ेदान में फेंक दिया और दुआ करने लगा कि राजा को इस बारे में कुछ पता न चले।

    कुछ देर बाद महराज अकबर जब महल लौटे, तो उन्होंने देखा कि उनका प्रिय गुलदस्ता अपनी जगह पर नहीं है। राजा ने सेवक से उस गुलदस्ते के बारे में पूछा, तो सेवक डर के मारे कांपने लगा। सेवक को जल्दी में कोई अच्छा बहाना नहीं सूझा, तो उसने कहा कि महाराज उस गुलदस्ते को मैं अपने घर ले गया हूं, ताकि अच्छे से साफ कर सकूं। यह सुनते ही अकबर बोले, “मुझे तुरंत वो गुलदस्ता लाकर दो।”

    अब सेवक के पास बचने का कोई रास्ता नहीं था। सेवक ने महराज अकबर को सच बता दिया कि वो गुलदस्ता टूट चुका है। यह सुनकर राजा आग बबूला हो गए। क्रोध में राजा ने उस सेवक को फांसी की सजा सुना दी। राजा ने कहा, “झूठ मैं बर्दाश्त नहीं करता हूं। जब गुलदस्ता टूट ही गया था, तो झूठ बोलने की क्या जरूरत थी”।


अगले दिन इस घटना के बारे में जब सभा में जिक्र हुआ तो बीरबल ने इस बात का विरोध किया। बीरबल बोले कि झूठ हर व्यक्ति कभी-न-कभी बोलता ही है। किसी के झूठ बोलने से अगर कुछ बुरा या गलत नहीं होता, तो झूठ बोलना गलत नहीं है। बीरबल के मुंह से ऐसे शब्द सुनकर अकबर उसी समय बीरबल पर भड़क गए। उन्होंने सभा में लोगों से पूछा कि कोई ऐसा है यहां जिसने झूठ बोला हो। सबने राजा को कहा कि नहीं वो झूठ नहीं बोलते। यह बात सुनते ही राजा ने बीरबल को राज्य से निकाल दिया।

राज दरबार से निकलने के बाद बीरबल ने ठान ली कि वो इस बात को साबित करके रहेंगे  कि हर व्यक्ति अपने जीवन में कभी-न-कभी झूठ बोलता है। बीरबल के दिमाग में एक तरकीब आई, जिसके बाद बीरबल सीधे सुनार के पास गए। उन्होंने जौहरी से सोने की गेहूं जैसी दिखने वाली बाली बनवाई और उसे लेकर महाराज अकबर की सभा में पहुंच गए।


अकबर ने जैसे ही बीरबल को सभा में देखा, तो पूछा कि अब तुम यहां क्यों आए हो। बीरबल बोले, “जहांपनाह आज ऐसा चमत्कार होगा, जो किसी ने कभी नहीं देखा होगा। बस आपको मेरी पूरी बात सुननी होगी।” राजा अकबर और सभी सभापतियों की जिज्ञासा बढ़ गई और राजा ने बीरबल को अपनी बात कहने की अनुमति दे दी।


बीरबल बोले, “आज मुझे रास्ते में एक सिद्ध पुरुष के दर्शन हुए। उन्होंने मुझे यह सोने से बनी गेहूं की बाली दी है और कहा कि इसे जिस भी खेत में लगाओगे, वहां सोने की फसल उगेगी। अब इसे लगाने के लिए मुझे आपके राज्य में थोड़ी-सी जमीन चाहिए।” राजा ने कहा, “यह तो बहुत अच्छी बात है, चलो हम तुम्हें जमीन दिला देते हैं।” अब बीरबल कहने लगे कि मैं चाहता हूं कि पूरा राज दरबार यह चमत्कार देखे। बीरबल की बात मानते हुए पूरा राज दरबार खेत की ओर चल पड़ा।


“खेत में पहुंचकर बीरबल ने कहा कि इस सोने से बनी गेहूं की बाली से फसल तभी उगेगी, जब इसे ऐसा व्यक्ति लगाए, जिसने जीवन में कभी झूठ न बोला हो। बीरबल की बात सुनकर सभी राजदरबारी खामोश हो गए और कोई भी गेहूं की बाली लगाने के लिए तैयार नहीं हुआ।

राजा अकबर बोले कि क्या राजदरबार में कोई ऐसा व्यक्ति नहीं है जिसने अपने जीवन में कभी झूठ न बोला हो? सभी खामोश थे। बीरबल बोले, “जहांपनाह अब आप ही इस बाली को खेत में रोप दीजिए।” बीरबल की बात सुनकर महाराज का सिर झुक गया। उन्होंने कहा, “बचपन में मैंने भी कई झूठ बोले हैं, तो मैं इसे कैसे लगा सकता हूं।”

 इतना कहते ही बादशाह अकबर को यह बात समझ आ गई कि बीरबल सही कह रहे थे कि इस दुनिया में कभी-न-कभी सभी झूठ बोलते हैं। इस बात का एहसास होते ही अकबर उस सेवक की फांसी की सजा को रोक देते हैं।

कहानी से सीख :

बिना सोचे समझे किसी को बड़ा दण्ड नहीं देना चाहिए। हर काम को सोच-विचार कर ही किया जाना चाहिए। साथ ही एक छोटे से झूठ की वजह से किसी व्यक्ति का आंकलन भी नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि कुछ परिस्थितियां ऐसी होती है कि लोग झूठ बोल देते हैं।


15 . गलत आदत |


एक वक्त की बात है, बादशाह अकबर किसी एक बात को लेकर बहुत परेशान रहने लगे थे। जब दरबारियों ने उनसे पूछा, तो बादशाह बोले, ‘हमारे शहजादे को अंगूठा चूसने की बुरी आदत पड़ गई है, कई कोशिश के बाद भी हम उनकी यह आदत छुड़ा नहीं पा रहे हैं।’


बादशाह अकबर की परेशानी सुनकर किसी दरबारी ने उन्हें एक फकीर के बारे में बताया, जिसके पास हर मर्ज का इलाज था। फिर क्या था, बादशाह ने उस फकीर को दरबार में आने का निमंत्रण दिया।


जब फकीर दरबार में आया, तो बादशाह अकबर ने उन्हें अपनी परेशानी के बारे में बताया। फकीर ने बादशाह की पूरी बात सुनकर परेशानी को दूर करने का वादा किया और एक हफ्ते का समय मांगा।

जब एक हफ्ते के बाद फकीर दरबार में आया, तो उन्होंने शहजादे को अंगूठा चूसने की बुरी आदत के बारे में प्यार से समझाया और उसके नुकसान भी बताए। फकीर की बातों का शहजादे पर बहुत प्रभाव पड़ा और उसने अंगूठा न चूसने का वादा भी किया।


सभी दरबारियों ने यह देखा, तो बादशाह से कहा, ‘जब यह काम इतना आसान था, तो फकीर ने इतना समय क्यों लिया। आखिर उसने क्यों दरबार का और आपका समय खराब किया।’ बादशाह दरबारियों की बातों में आ गए और उन्होंने फकीर को दंड देने की ठान ली।

सभी दरबारी बादशाह का समर्थन कर रहे थे, लेकिन बीरबल चुपचाप था। बीरबल को चुपचाप देख, अकबर ने पूछा, ‘तुम क्यों शांत हो बीरबल?’ बीरबल ने कहा, ‘जहांपनाह गुस्ताखी माफ हो, लेकिन फकीर को सजा देने के स्थान पर उन्हें सम्मानित करना चाहिए और हमें उनसे सीखना चाहिए।’


तब बादशाह ने गुस्से में कहा, ‘तुम हमारे फैसले के खिलाफ जा रहे हो। आखिर तुमने ऐसा सोच भी कैसे लिया, जवाब दो।’

तब बीरबल ने कहा, ‘महाराज पिछली बार जब फकीर दरबार में आए थे, तो उन्हें चूना खाने की बुरी आदत थी। आपकी बातों को सुनकर उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ। उन्होंने पहले अपनी इस गंदी आदत को छोड़ने का फैसला लिया फिर शहजादे की गंदी आदत छुड़ाई।’

बीरबल की बात सुनकर दरबारियों और बादशाह अकबर को अपनी गलती का एहसास हुआ और सभी ने फकीर से क्षमा मांगकर उसे सम्मानित किया।

कहानी से सीख:

हमें दूसरों को सुधारने के पहले खुद सुधरना चाहिए, इसके बाद ही दूसरों को ज्ञान देना चाहिए।


16 . आगरा कौन सा रास्ता जाता है?


बादशाह अकबर को शिकार करना बहुत पसंद था। एक बार की बात है, बादशाह अकबर अपने सैनिकों के साथ शिकार पर निकले। शिकार करते-करते वो इतने आगे चले गए कि वो अपने दल से छूट गए। उनके साथ बस कुछ ही सैनिक रह गए थे। अब शाम होने को थी और सूरज ढलने वाला था। साथ ही अकबर और उनके साथ के सैनिकों को भूख भी सताने लगी थी।
 काफी दूर निकल आने पर बादशाह अकबर को यह एहसास हुआ कि वो रास्ता भटक गए हैं। वहां आस-पास कोई नजर भी नहीं आ रहा था, जिससे रास्ते के बारे में पूछा जा सकता था। थोड़ी दूर और चलने पर उन्हें एक तिराहा नजर आया। बादशाह को यह देख कर थोड़ी खुशी हुई कि चलो इनमें से कोई न कोई रास्ता राजधानी तक तो जाता ही होगा।

लेकिन, सभी इसी उलझन में थे कि किस रास्ते पर चला जाए। तभी सैनिकों की नजर सड़क किनारे खड़े एक छोटे से लड़के पर पड़ी। वह लड़का बड़ी हैरानी से महाराज के घोड़े और सैनिकों के हथियारों को देख रहा था। सैनिकों ने उस बालक को पकड़कर महाराज के सामने पेश किया।
बादशाह अकबर ने लड़के से पूछा, “ऐ लड़के। इनमें से कौन सा रास्ता आगरा जाता है?” यह बात सुनकर वह बच्चा जोर-जोर से हंसने लगा। यह देखकर राजा को बहुत गुस्सा आया। लेकिन, उन्होंने शांत भाव से उससे उसकी हंसी का कारण पूछा। लड़के ने जवाब दिया, “यह रास्ता चल नहीं सकता है, तो यह आगरा कैसे जाएगा। आगरा पहुंचने के लिए तो आपको खुद चलना पड़ेगा।”

महाराज उस लड़के की सूझबूझ को देख कर चकित रह गए। उन्होंने प्रसन्न होकर उस बच्चे का नाम पूछा। लड़के ने जवाब में अपना नाम महेश दास बताया। महाराज ने उसे इनाम में सोने की अंगूठी दी और दरबार में आने का न्योता दिया। इसके बाद बादशाह अकबर ने लड़के से पूछा, “क्या तुम मुझे बता सकते हो कि किस रास्ते पर चलने से मैं आगरा पहुंच पाऊंगा?” लड़के ने बड़ी ही शालीनता से सही रास्ता बताया और महाराज अपने सैनिकों के साथ आगरा की ओर चल पड़े।

यही लड़का बड़ा होकर बीरबल के नाम से प्रसिद्ध हुआ और बादशाह अकबर के नवरत्नों में से एक कहलाया।

कहानी से सीख :

इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि ज्ञान और सूझबूझ का सम्मान करना चाहिए।


17 . बिना काटे लकड़ी का टूकड़ा छोटा कैसे होगा


बादशाह अकबर अक्सर कई समस्याओें पर बीरबल के साथ चर्चा किया करते थे और साथ ही उनकी बुद्धि की परीक्षा भी लिया करते थे। वहीं, बीरबल भी हर समस्या का समाधान बड़े ही रोचक तरीके से करते थे।

एक बार की बात है महाराज अकबर और बीरबल दोनों शाही बगीचे में टहल रहे थे। दोनों के बीच किसी गंभीर मुद्दे पर चर्चा हो रही थी कि तभी अचानक बादशाह अकबर के दिमाग में बीरबल की परीक्षा लेने की सूझी।

बादशाह अकबर ने पास में पड़ी हुई एक लकड़ी की ओर इशारा करते हुए बीरबल से पूछा, “बीरबल एक बात बताओ, ये जो सामने लकड़ी पड़ी हुई है, क्या तुम इसे बिना काटे छोटा कर सकते हो?”

बीरबल, बादशाह अकबर के मन की बात समझ गए और वो लकड़ी बादशाह अकबर के हाथ में देते हुए बोले, “जी महाराज मैं इस लकड़ी को छोटा कर सकता हूं।”
बादशाह अकबर बोले, “वो कैसे भला।” तब बीरबल ने वहीं पास में पड़ी हुई एक बड़ी लकड़ी उठाई और बादशाह अकबर को पकड़ाते हुए पूछा, “महाराज इनमें से छोटी लकड़ी कौन-सी है?”

बादशाह अकबर बीरबल की चतुराई समझ गए और छोटी लकड़ी बीरबल के हाथ में देते हुए बोले, “वाकई बीरबल तुमने बिना काटे लकड़ी को छोटा कर दिया।” इसके बाद दोनों जोर-जोर से हंसने लगे।

कहानी से सीख:

बच्चों, इस कहानी से यह सीख मिलती है कि परिस्थिति चाहे जैसी भी हो, दिमाग से काम लेकर उससे बाहर निकलने का रास्ता खोजा जा सकता है।


18 . उम्र बढ़ाने वाला पेड़


एक समय की बात है जब बादशाह अकबर का परचम पूरे विश्व में फैलने लगा था। उसी दौरान तुर्किस्तान के बादशाह को अकबर की बुद्धिमत्ता की परीक्षा लेने की सूझी। तुर्किस्तान के बादशाह ने अपने दूत को संदेश पत्र देकर कुछ सिपाहियों के साथ दिल्ली रवाना किया। बादशाह ने पत्र में लिखा था ‘मुझे सुनने में आया है कि भारत में ऐसा पेड़ है, जिसके पत्ते को खाकर इंसान की आयु बढ़ाने में मदद मिल सकती है। अगर यह बात सच है, तो मेरे लिए उस पेड़ के कुछ पत्ते जरूर भेंजे।’

जब अकबर ने उस पत्र को पढ़ा, तो वह सोच में पड़ गए। इस चिंता से उबरने के लिए अकबर ने बीरबल का सहारा लिया। बीरबल की सलाह पर बादशाह अकबर ने तुर्किस्तान से आए सिपाहियों और दूत को कैद करने का आदेश दिया। सिपाही और दूत के कैदखाने में कई दिन बीत जाने के बाद अकबर और बीरबल एक दिन उनसे मिलने गए। अकबर और बीरबल को आते देख कर वो सोचने लगे कि उन्हें रिहाई मिल जाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
  बादशाह अकबर जब उनके पास पहुंचे, तो उन्होंने दूत से कहा ‘जब तक इस किले की एक-दो ईंट गिर नहीं जाती, तब तक आप लोगों को आजाद नहीं करेंगे। ऐसा होने तक आप सभी के लिए यहां खाने-पीने का पूरा इंतजाम किया जाएगा।’ इतना कहकर बादशाह अकबर और बीरबल वहां से चले गए। उनके जाने के बाद दूत और सिपाही कैद से निकलने के लिए उपाय सोचने लगे। जब कोई रास्ता नजर नहीं आया, तो भगवान से प्रार्थना करने लगे।

जल्द ही उनकी प्रार्थना रंग लाई और कुछ दिनों बाद अचानक तेज भूकंप आया और भूकंप के कारण किले का एक भाग टूटकर गिर गया। यह घटना के बाद दूत ने अकबर के पास किले की दीवार गिरने की खबर भिजवाई। यह खबर सुनते ही बादशाह अकबर को अपना वादा याद आया और उन्होंने तुर्किस्तान के दूत व सिपाहियों को दरबार में प्रस्तुत होने का आदेश दिया। उनके दरबार में पहुंचते ही बादशाह अकबर बोले ‘अब तो आप सबको अपने बादशाह के द्वारा भेजे गए पत्र का उत्तर मिल गया होगा। अगर अब भी आपको समझ नहीं आया है, तो मैं समझा देता हूं। तुम सिर्फ 100 लोग हो और तुम्हारी आह सुनकर किले का एक हिस्सा गिर गया, तो सोचो जिस देश में हजारों लोगों पर अत्याचार होते हैं, उस देश के बादशाह की आयु कैसे बढ़ेगी। लोगों की आह से उसका पतन तो निश्चित है। हमारे भारत देश में किसी गरीब पर अत्याचार नहीं होता। यही होता है आयुवर्धक वृक्ष।

उसके कुछ दिन बाद बादशाह ने उन सभी को उनके देश भेज दिया है और रास्ते में होने वाले खर्चे के लिऐ कुछ पैसे भी दिए। दूत ने तुर्किस्तान पहुंचकर भारत में घटित सारी बात विस्तार से बादशाह को बताए। अकबर-बीरबल की बुद्धिमत्ता देखकर तुर्किस्तान के बादशाह ने दरबार में उनकी बहुत प्रशंसा की।

कहानी से सीख :
इस कहानी से यह सीख मिलती है कि सभी के साथ प्रेम से रहना चाहिए और कमजोर पर अत्याचार नहीं करना चाहिए। साथ ही वही देश तरक्की करता है, जहां प्रजा सुखी रहती है।


19 . बीरबल की खिचड़ी |

सर्दियों का मौसम था, बादशाह अकबर अपने बागीचे में बीरबल व एक अन्य मंत्री के साथ टहल रहे थे। टहलते हुए बादशाह अकबर ने अपने मंत्री से कहा “इस साल कुछ ज्यादा ही ठंड पड़ रही है। महल से बाहर निकलने में भी ठंड से हालत खराब हो रही है?” मंत्री ने बादशाह की बात का जवाब देते हुए कहा, “जी हुजूर, बिल्कुल सही फरमाया आपने। इस साल तो इतनी ठंड पड़ रही है कि जनता ने घर से बाहर निकलना बहुत कम कर दिया है।”

टहलते-टहलते बादशाह अकबर बगीचे में बने तालाब के किनारे जा पहुंचे। जैसे ही उन्होंने अपना हाथ पानी में डाला, उन्हें अहसास हुआ कि पानी बर्फ जैसा ठंडा है। पानी से हाथ बाहर निकालते हुए अकबर ने कहा “सही कह रहे हैं आप। इतनी ठंड में कौन घर से बाहर निकलेगा।”


बीरबल को चुपचाप देखकर बादशाह ने बीरबल से पूछा, “इस बारे में आपका क्या ख्याल है, बीरबल?” बीरबल ने सिर झुकाते हुए कहा, “माफी चाहता हूं हुजूर, इस बारे में मेरा ख्याल थोड़ा अगल है। मैं आप दोनों की बात से सहमत नहीं हूं।”

अकबर ने आश्चर्यचकित होकर बीरबल से पूछा, “अच्छा, तो हमें भी बताइए, क्या ख्याल है आपका।” बीरबल ने कहा, “हुजूर मेरा मानना है कि एक गरीब व्यक्ति के लिए पैसा सबसे ज्यादा जरूरी है। उसे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि मौसम कितना ठंडा है या गर्म।” अकबर ने हैरान होकर बीरबल से कहा, “तो आप यह कह रहे हैं कि इस कड़ाके की सर्दी में भी एक गरीब आदमी कोई भी ऐसा काम करने को तैयार हो जाएगा, जिससे उसे पैसा मिल सके।” बीरबल ने कहा, “जी हुजूर, मैं यही कह रहा हूं।”

बादशाह अकबर ने बीरबल को चुनौती देते हुए कहा, “तो ठीक है, अगर आपने बर्फ जैसे पानी से भरे इस तालाब में किसी को रात भर खड़ा रखकर इस बात को प्रमाणित कर दिया, तो हम आपके लाए हुए गरीब व्यक्ति को 20 सोने के सिक्के इनाम में देंगे।”

बादशाह की बात से सहमति जताते हुए, बीरबल ने अगले दिन एक गरीब व्यक्ति को पेश करने का वादा किया।

अगले दिन सभा में बादशाह अकबर ने बीरबल ने पूछा कि क्या वो किसी को लाए हैं, जो तालाब में खड़ा रहकर पूरी रात बिता सके। इस पर बीरबल ने गंगाधर नामक एक गरीब व्यक्ति को दरबार में मौजूद किया और कहा कि यह 20 सोने के सिक्कों के लिए तालाब में पूरी रात बिताने को तैयार है। बादशाह अकबर ने सभा समाप्त करते हुए कहा कि ठीक है, दो सिपाही इस व्यक्ति की रातभर निगरानी करेंगे।

अगले दिन फिर से दरबार लगा और बादशाह ने बीरबल से गंगाधर के बारे में पूछा, “बीरबल, कहां है आपका मित्र? कितनी देर टिक पाया वो उस बर्फीले पानी में?” बीरबल ने कहा, महाराज वो यहीं है। मैं उसे दरबार में पेश करने की इजाजत चाहता हूं।” बादशाह की इजाजत मिलते ही बीरबल ने गंगाधर को दरबार में बुलाया।

 बादशाह अकबर ने गंगाधर को शाबाशी देते हुए कहा, “हमें इस बात पर यकीन नहीं हो रहा है कि तुम पूरी रात उस बर्फ जैसे पानी में रहे और आज हमारे सामने सही-सलामत खड़े हो। यह तुमने कैसे किया? पूरी सभा को बताओ।”

गंगाधर ने कहा, “महाराज, शुरुआत में तो यह बहुत मुश्किल था, लेकिन कुछ समय बाद, मुझे महल की एक खिड़की पर एक दीया जलता नजर आया। उस दीये को देखते हुए मैंने सारी रात बिता दी।” बादशाह अकबर ने चौंककर कहा, “यह तो धोखा है, तुमने हमारे महल के जलते दीये की गर्मी से सारी रात बिता ली। फरेबी! तुम्हारे इस धोखे के लिए हम तुम्हें सजा नहीं दे रहे हैं, लेकिन तुम अब इस इनाम के हकदार भी नहीं हो।” यह कहते हुए अकबर ने अपने सिपाहियों से गंगाधर को महल से बाहर ले जाने को कह दिया और सभा समाप्त करके अपने कमरे में चले गए।

    अगले दिन रोज की तरह सभा लगी, जब बादशाह अकबर सभा में आए, तो उन्होंने देखा कि सभी दरबारी अपनी-अपनी जगह पर मौजूद थे, सिवाय बीरबल के। बादशाह ने एक सिपाही से पूछा कि बीरबल कहां है, तो उसने बताया कि वो आज महल नहीं आए हैं। बादशाह ने सिपाही से कहा कि वो तुरंत बीरबल के घर जाए और उन्हें लेकर आए।


कुछ समय बाद, सिपाही अकेले ही दरबार में लौट आया। बादशाह के पूछने पर सिपाही ने बताया, “बीरबल अपने घर में खाना पका रहे हैं और उन्होंने कहा है कि खाना पूरी तरह पक जाने के बाद ही वो दरबार आएंगे।” सिपाही की यह बात सुनकर बादशाह सोच में पड़ गए, क्योंकि आज से पहले कभी भी बीरबल ने महल आने में देर नहीं की थी। अकबर को कुछ संदेह हुआ और उन्होंने बीरबल के घर जाने का निर्णय लिया।


जब बादशाह अकबर, बीरबल के घर पहुंचे, तो उन्होंने देखा कि बीरबल ने एक ऊंची खूंटी पर एक हांडी टांग रखी है और उसके नीचे जमीन पर लकड़ियां जला रखी हैं। बादशाह आश्चर्यचकित हो गए और बीरबल से पूछा कि वह क्या कर रहे हैं। इस पर बीरबल ने जवाब दिया कि वह अपने भोजन के लिए खिचड़ी पका रहे हैं। बादशाह अकबर ने कहा, “क्या तुम पागल हो गए हो? यह खिचड़ी कैसे पक सकती है। तुमने हांडी को इतने ऊपर टांग रखा है और आग नीचे जल रही है। ऐसे में खिचड़ी पकने के लिए हांडी तक गर्मी कैसे पहुंचेगी?”

इस बात पर बीरबल ने बहुत आराम के साथ बादशाह से कहा, “क्यों नहीं पहुंचेगी हुजूर? जब महल की खिड़की पर रखे एक दीये से गंगाधर को गर्मी मिल सकती है, तो मेरी खिचड़ी की हांडी तो फिर भी आग के बहुत नजदीक है।”


बीरबल की बात सुनकर बादशाह हैरान हो गए और मुस्कुराते हुए कहा, “हम तुम्हारी बात अच्छी तरह समझ गए बीरबल।” इसके बाद उन्होंने गंगाधर को महल में बुलवाया और उसे 20 सोने के सिक्कों का इनाम दिया। बीरबल की चतुराई के लिए उन्होंने बीरबल को भी इनाम दिया।


कहानी से सीख :

बच्चों, बीरबल की खिचड़ी की कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि दूसरों की सफलता के पीछे किए गए परिश्रम को जाने बगैर उनके बारे में राय नहीं बनानी चाहिए।


   20.चोर की दाढ़ी में तिनका



बच्चों, अकबर और बीरबल के कई कहानियां प्रसिद्ध हैं। यह कहानियों सभी के दिल में अपनी छाप छोड़ने के साथ-साथ अच्छी शिक्षा देना का भी काम करती हैं। उन्हीं में से एक है, चोर की दाढ़ी में तिनका।

एक बार की बात है, बादशाह अकबर की सबसे प्यारी अंगूठी अचानक गुम हो गई थी। बहुत ढूंढने पर भी वह नहीं मिली। इस कारण बादशाह अकबर चिंतित हो जाते हैं और इस बात का जिक्र बीरबल से करते हैं। इस पर बीरबल, महाराजा अकबर से पूछते हैं, ‘महाराज, आपने अंगूठी कब उतारी थी और उसे कहां रखा था।’ बादशाह अकबर कहते हैं, ‘मैंने नहाने से पहले अपनी अंगूठी को अलमारी में रखा था और जब वापस आया, तो अंगूठी अलमारी में नहीं थी।’


फिर बीरबल, अकबर से कहते हैं, ‘तब तो अंगूठी गुम नहीं चोरी हुई है और यह सब महल में साफ-सफाई करने वाले किसी कर्मचारी ने ही किया होगा।’ यह सुनकर बादशाह ने सभी सेवकों को हाजिर होने को कहा। उनके कमरे में साफ-सफाई करने के लिए कुछ 5 कर्मचारी तैनात थे और पांचों हाजिर हो गए।

सेवकों के हाजिर होने के बाद बीरबल ने उन सभी को कहा, ‘महाराज की अंगूठी चोरी हो गई है, जो अलमारी में रखी थी। अगर आप में से किसी ने उठाई है, तो बता दे, वरना मुझे अलमारी से ही पूछना पड़ेगा।’ फिर बीरबल अलमारी के पास जाकर कुछ फुसफुसाने लगे। इसके बाद मुस्कुराते हुए पांचों सेवकों से कहा, ‘चोर मुझसे बच नहीं सकता है, क्योंकि चोर की दाढ़ी में तिनका है।’ यह बात सुनकर उन पांचों में से एक ने सबसे नजर बचाकर दाढ़ी में हाथ फेरा जैसे कि वह तिनका निकालने की कोशिश कर रहा हो। इसी बीच बीरबल की नजर उस पर पड़ गई और सिपाहियों को तुरंत चोर को गिरफ्तार करने का आदेश दिया।

जब बादशाह अकबर ने उससे सख्ती से पूछा, तो उसने अपना गुनाह काबुल कर लिया और बादशाह की अंगूठी वापस कर दी। बादशाह अकबर अपनी अंगूठी पाकर बेहद प्रसन्न हुए।

 कहानी से सीख:

इस कहानी से यह सीख मिलती है कि ताकत की जगह दिमाग का इस्तेमाल करने से हर समस्या का हल मिल सकता है।


21.  कौवों की गिनती


बीरबल की चतुराई से बादशाह अकबर और सभी दरबार परिचित थे। फिर भी अकबर, बीरबल की चतुराई का परीक्षा लेते रहते थे।


ऐसे ही एक सुबह बादशाह अकबर ने बीरबल को बुलाया और बगीचे में घूमने के लिए चले गए। वहां पर बहुत सारे पक्षी आवाज कर रहे थे। अचानक बादशाह अकबर की नजर एक कौवे पर पड़ी और उनके मन में शरारत सूझी। उन्होंने बीरबल से कहा, “मैं यह जानना चाहता हूं कि हमारे राज्य में कुल कितने कौवे हैं।” यह सवाल थोड़ा अटपटा जरूर था, लेकिन फिर भी बीरबल कहा, “महाराज मैं आपके इस प्रश्न का जवाब दे सकता हूं, लेकिन मुझे थोड़ा समय चाहिए।” अकबर ने मन ही मन मुस्कुराते हुए बीरबल को समय दे दिया।


कुछ दिनों के बाद बीरबल दरबार में आए, तो शहंशाह अकबर से पूछा, “बोलो बीरबल कितने कौवे हैं हमारे राज्य में।” बीरबल बोले, “महाराज हमारे राज्य में करीब 323 कौवे हैं।” यह सुनते ही सभी दरबारी बीरबल को देखने लगे।


फिर बादशाह अकबर बोले, “अगर हमारे राज्य में कौवों की संख्या इससे ज्यादा हुई तो?” बीरबल बोले, “हो सकता है कि महाराज कुछ कौवे हमारे राज्य में अपने रिश्तेदारों के यहां आए हों।”


इस पर बादशाह अकबर ने कहा, “अगर कम हुए तो?” तब बीरबल बाेले, “हो सकता है कि हमारे राज्य के कौवे दूसरे देश अपने रिश्तेदारों के यहां गए हों।”


जैसे ही बीरबल ने यह बात कही पूरा दरबार ठहाकों से गूंज उठा और एक बार फिर बीरबल अपनी बुद्धि के कारण प्रसंशा के पात्र बन गए।


कहानी से सीख:

बच्चों, इस कहानी से यह सीख मिलती है कि अगर दिमाग का इस्तेमाल किया जाए, तो हर समस्या का हल और सवाल का जवाब ढूंढा जा सकता है।


22 . अकबर बीरबल के सवाल-जवाब

बीरबल बेहद कम समय में महाराजा अकबर के चहेते सलाहकार बन गए थे। इस बात से उनके सभा के अन्य मंत्री और महामंत्री बीरबल से जला करते थे। यह जलन उनके साले मानसिंह को भी थी। इसलिए, एक दिन मानसिंह ने बीरबल की परीक्षा लेनी चाही। उन्होंने बीरबल से तीन सवाल पूछने चाहे। महाराज अकबर ने भी बीरबल की परीक्षा लेने की अनुमति दे दी।

  बीरबल बेहद कम समय में महाराजा अकबर के चहेते सलाहकार बन गए थे। इस बात से उनके सभा के अन्य मंत्री और महामंत्री बीरबल से जला करते थे। यह जलन उनके साले मानसिंह को भी थी। इसलिए, एक दिन मानसिंह ने बीरबल की परीक्षा लेनी चाही। उन्होंने बीरबल से तीन सवाल पूछने चाहे। महाराज अकबर ने भी बीरबल की परीक्षा लेने की अनुमति दे दी।बीरबल बेहद कम समय में महाराजा अकबर के चहेते सलाहकार बन गए थे।

    इस बात से उनके सभा के अन्य मंत्री और महामंत्री बीरबल से जला करते थे। यह जलन उनके साले मानसिंह को भी थी। इसलिए, एक दिन मानसिंह ने बीरबल की परीक्षा लेनी चाही। उन्होंने बीरबल से तीन सवाल पूछने चाहे। महाराज अकबर ने भी बीरबल की परीक्षा लेने की अनुमति दे दी।


1.आसमान में कितने तारे हैं?

मानसिंह का पहला सवाल था कि यह पहला सवाल था। यह सवाल सुनकर बीरबल से जलने वाले अन्य दरबारियों को खुशी होने लगी। महाराजा अकबर भी सोचने लगे कि क्या बीरबल इसका जवाब दे पाएंगे।


बीरबल ने मुस्कुराते हुए कहा, ‘इसका जवाब तो बहुत ही आसान है’ और दरबार में एक भेड़ को लाकर कहा, ‘जितने इस भेड़ में बाल हैं, उतने ही आसमान में तारे हैं। अगर मानसिंह जी को अभी भी संदेह है, तो भेड़ के बाल और आसमान के तारे गिनकर तुलना कर सकते हैं।’ बीरबल की चतुराई देखकर बादशाह अकबर मुस्कुराए और कहा, ‘क्यों मानसिंह जी आप गिनकर तुलना करना चाहते हैं?’


2.धरती का केंद्र कहां है?

मानसिंह का अगला सवाल सुनकर बीरबल ने तुरंत जवाब दिया, ‘जहां आप खड़े हैं, वही धरती का केंद्र है।’ महाराजा अकबर और अन्य दरबारी बीरबल के जवाब को समझ नहीं पा रहे थे। फिर जहां मानसिंह खड़े थे, वहां बीरबरल ने एक रेखा खींच कर लोहे की छड़ी गाढ़ दी और कहा, ‘यही धरती का केंद्र है। अगर किसी को मेरी बात पर यकीन न हो, तो वह खुद धरती को माप सकता है।’

बीरबल की चतुराई देखकर मानसिंह सोच में पड़ गए थे। फिर मानसिंह ने एक पहली को सुलझाने के लिए कहा।


3.मानसिंह का तीसरा सवाल


एक परख है सुंदर मूरत, जो देखे वो उसी की सूरत,

फिक्र पहेली पाई न, बोझन लागा आई न।

बीरबल पहेली को दोहराते हुए उसके बारे में गौर से सोचने लगे।

काफी सोचने के बाद बीरबल कहते हैं, ‘यह तो बहुत ही आसान पहेली है मानसिंह जी, इसका उत्तर तो पहेली में ही है। इसका उत्तर आइना है, जिसमें आइने के सामने खड़ा इंसान एक सुन्दर मूरत है। आइने में उसे अपनी सूरत दिखाई देती है।’


बीरबल ने मानसिंह के सभी सवालों का जवाब बड़े चतुराई से दिया, यह देखकर बादशाह अकबर बहुत खुश हुए और मानसिंह से कहा, ‘क्यों मानसिंह जी आपको आपके सवालों का जवाब मिल गया न?’

 कहानी से सीख:

इस कहानी से यह सीख मिलती है कि किसी भी सवाल का जवाब दिया जा सकता है। बस अपने दिमाग पर भरोसा होना चाहिए और संयम से काम लेना चाहिए।


  23. पेड़ एक और मालिक दो 

एक बार की बात है। रोज की ही तरह बादशाह अकबर दरबार में बैठकर अपनी प्रजा की समस्याएं सुन रहे थे। सभी लोग अपनी अपनी समस्याएं लेकर बादशाह के सामने हाजिर हो रहे थे और तभी राघव व केशव नाम के दो पड़ोसी अपनी समस्या लेकर दरबार में आए। इन दोनों की समस्या की जड़ था इन दोनों घर के बीच मौजूद फलों से लबालब भरा आम का पेड़। मामला आम के पेड़ के मालिकाना हक को लेकर था। राघव कह रहा था कि पेड़ उसका है और केशव झूठ बोल रहा है। वहीं, केशव का कहना था कि वह पेड़ का असली मालिक है और राघव झूठा है।


पेड़ एक और मालिक दो का मामला बहुत उलझा हुआ था और दोनों में से कोई भी हार मानने को तैयार नहीं था। दोनों पक्षों की बातें सुनकर और सोच-विचार करने के बाद बादशाह अकबर ने यह मामला अपने नवरत्नों में से एक बीरबल को सौंप दिया। मामले को सुलझाने और सच्चाई का पता लगाने के लिए बीरबल ने एक नाटक रचा।


उस शाम बीरबल ने दो सिपाहियों से कहा कि वे राघव के घर जाएं और कहें कि उसके आम के पेड़ से आम चोरी हो रहे हैं। उन्होंने दो सिपाहियों को केशव के घर जाकर भी यही संदेश देने को कहा। साथ ही बीरबल ने कहा कि यह संदेश देने के बाद वो उनके घर के पीछे छिपकर देखें कि राघव और केशव क्या करते हैं। बीरबल ने यह भी कहा कि राघव और केशव को पता नहीं लगना चाहिए कि तुम उनके घर आम की चोरी की सूचना लेकर जा रहे हो। सिपाहियों ने बिल्कुल वैसा ही किया जैसा बीरबल ने कहा।


दो सिपाही केशव के घर गए और दो राघव के घर। जब वो वहां पहुंचे, तो उन्हें पता चला कि राघव और केशव दोनों ही घर में नहीं थे, तो सिपाहियों ने उनकी पत्नियों को यह संदेश दे दिया। जब केशव घर पहुंचा तो उसकी पत्नी ने उसे आम की चोरी की सूचना दी। यह सुनकर केशव ने कहा, “अरे भाग्यवान, खाना तो खिला दो। आम के चक्कर में अब क्या भूखा बैठा रहूं? और कौन-सा वह पेड़ मेरा अपना है। चोरी हो रही है तो होने दो। सुबह देखेंगे।” यह कह कर वह आराम से बैठकर खाना खाने लगा।


वहीं, जब राघव घर आया और उसकी पत्नी ने यह बात उसे बताई, तो वह उल्टे पैर पेड़ की तरह दौड़ पड़ा। उसकी पत्नी ने पीछे से आवाज लगाई, “अरे, खाना तो खा लीजिए,” जिस पर राघव ने कहा “खाना तो सुबह भी खा सकता हूं, लेकिन अगर आज आम चोरी हो गए, तो मेरे पूरे साल की मेहनत पर पानी फिर जाएगा।” सिपाहियों ने दोनों के घर के बाहर छिपकर यह सारा नजारा देखा और वापस दरबार जाकर बीरबल को बताया।


अगले दिन दोनों फिर से दरबार में हाजिर हुए। उन दोनों के सामने बीरबल ने बादशाह अकबर से कहा, “जहांपनाह, सारी समस्या की जड़ वह पेड़ है। क्यों न हम वो पेड़ ही कटवा दें। न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी।” बादशाह अकबर ने इस बारे में राघव और केशव से पूछा “इस बारे में आप दोनों का क्या ख्याल है?” इस पर केशव ने कहा, “हुजूर आपकी हुकूमत है। आप जैसा कहेंगे मैं उसे चुपचाप स्वीकार कर लूंगा।” वहीं राघव ने कहा “मालिक, मैंने सात वर्ष तक उस पेड़ को सींचा है। आप चाहें तो उसे केशव को दे दीजिए, लेकिन कृपा करके उसे कटवाएं न। मैं आपके आगे हाथ जोड़ता हूं।”


 उन दोनों की बात सुन कर बादशाह अकबर ने बीरबल की तरह देखा और कहा, “अब आपका क्या कहना है, बीरबल?” इसके बाद बीरबल ने बादशाह को बीती रात का किस्सा सुनाया और मुस्कुराते हुए कहा, “हुजूर, पेड़ एक और मालिक दो, ऐसा कैसे हो सकता है? कल रात हुई घटना और आज हुई इस बात के बाद, यह साबित हो चुका है कि राघव ही पेड़ का असली मालिक है और केशव झूठ बोल रहा है।”


यह सुनकर बादशाह ने बीरबल को शाबाशी दी। उन्होंने अपने हक के खातिर लड़ने के लिए राघव को बधाई दी और चोरी करने व झूठ बोलने के लिए केशव को जेल में बंद करने का आदेश दिया।


कहानी से सीख :

एक पेड़ और दो मालिक कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि परिश्रम किए बिना छल से किसी और की चीज चुराने का अंजाम बुरा होता है।


 24.  हरे घोड़े की कहानी |

एक शाम राजा अकबर अपने प्रिय बीरबल के साथ अपने शाही बगीचे की सैर के लिए निकले। वह बगीचा बहुत ही शानदार था। चारों ओर हरियाली ही हरियाली थी और फूलों की भीनी भीनी खुशबू वातावरण को और भी खूबसूरत बना रही थी।

ऐसे में राजा को जाने क्या सूझा कि उन्होंने बीरबल से कहा, “बीरबल! हमारा मन है कि इस हरे भरे बगीचे में हम हरे घोड़े में बैठ कर घूमें। इसलिए मैं तुम्हें आदेश देता हूं कि तुम सात दिनों के अंदर हमारे लिए एक हरे घोड़े का इंतजाम करो। वहीं अगर तुम इस आदेश को पूरा करने में असफल रहते हो, तो तुम कभी भी मुझे अपनी शक्ल न दिखाना।”

इस बात से राजा व बीरबल दोनों वाकिफ थे कि आज तक दुनिया में हरे रंग का घोड़ा नहीं हुआ है। फिर भी राजा चाहते थे कि बीरबल किसी बात में अपनी हार स्वीकार करें। इसी कारण उन्होंने बीरबल को ऐसा आदेश दिया। मगर, बीरबल भी बहुत चालाक थे। वो भली भांति जानते थे कि राजा उनसे क्या चाहते हैं। इसलिए वो भी घोड़ा ढूंढने का बहाना बनाकर सात दिनों तक इधर-उधर घूमते रहे

आठवें दिन बीरबल दरबार में राजा के सामने पहुंचे और बोले, “महाराज! आपकी आज्ञा के अनुसार मैंने आपके लिए हरे घोड़े का इंतजाम कर लिया है। मगर, उसके मालिक की दो शर्तें हैं।”

राजा ने उत्सुकता से दोनों शर्तों के बारे में पूछा। तब बीरबल ने जवाब दिया, “पहली शर्त यह है कि उस हरे घोड़े को लाने के लिए आपको स्वयं जाना होगा।” राजा इस शर्त के लिए तैयार हो गए। 


फिर उन्होंने दूसरी शर्त के बारे में पूछा। तब बीरबल ने कहा, “घोड़े के मालिक की दूसरी शर्त यह है कि आपको घोड़ा लेने जाने के लिए सप्ताह के सातों दिन के अलावा कोई और दिन चुनना होगा।”


यह सुन राजा हैरानी से बीरबल की ओर देखने लगे। तब बीरबल ने बड़ी सहजता से जवाब दिया, “महाराज! घोड़े का मालिक कहता है कि हरे रंग के खास घोड़े को लाने के लिए उसकी यह खास शर्तें तो माननी ही होंगी।”

राजा अकबर बीरबल की यह चतुराई भरी बात सुनकर खुश हो गए और मान गए कि बीरबल से उसकी हार मनवाना वाकई में बहुत मुश्किल काम है।

कहानी से सीख :

यह कहानी हमें यह सिखाती है कि सही सूझबूझ और समझदारी के साथ नामुमकिन लगने वाले काम को भी आसानी से किया जा सकता है।


25.जोरू का गुलाम |

एक बार की बात है, राजा अकबर व बीरबल दरबार में बैठे कुछ अहम मामलों पर चर्चा कर रहे थे। तभी बीरबल ने अकबर से कहा, “मुझे लगता है कि ज्यादातर पुरुष जोरू के गुलाम होते हैं और अपनी पत्नियों से डर कर रहते हैं।” बीरबल की यह बात राजा को बिल्कुल भी पसंद न आई। उन्होंने इस बात का विरोध किया।

इस पर बीरबल भी अपनी बात मनवाने पर अड़ गए। उन्होंने राजा से कहा कि वे अपनी बात को सिद्ध कर सकते हैं। मगर, इसके लिए राजा को प्रजा के बीच एक आदेश जारी करवाना होगा। वह आदेश यह था कि, जिस पुरुष के अपनी पत्नी से डरने की बात सामने आएगी, उसे दरबार में एक मुर्गी जमा करानी होगी। राजा बीरबल की इस बात पर तैयार हो गए।

अगले ही दिन प्रजा के बीच आदेश कराया गया कि अगर यह बात सिद्ध हो जाती है कि कोई पुरुष अपनी पत्नी से डरता है, तो उसे दरबार में आकर बीरबल के पास एक मुर्गी जमा करवानी होगी। फिर क्या था, देखते ही देखते बीरबल के पास ढेरों मुर्गियां इकठ्ठा हो गईं और सैंकड़ों मुर्गियां महल के बगीचे में घूमने लगीं।

अब बीरबल राजा के पास पहुंचे और बोले, “महाराज! महल में इतनी मुर्गियां इकट्ठा हो गई हैं कि आप एक मुर्गीखाना खोल सकते हैं, इसलिए अब आप इस आदेश को वापिस ले सकते हैं।” मगर, महाराज ने इस बात को गंभीरता से नहीं लिया और महल में मुर्गियों की संख्या धीरे-धीरे और भी ज्यादा बढ़ने लगी।

इतनी अधिक मुर्गियां महल में जमा हो जाने के बाद भी जब राजा अकबर बीरबल की बात से सहमत नहीं हुए, तो बीरबल ने अपनी बात सिद्ध करने के लिए एक नया उपाय निकाला। एक दिन बीरबल राजा के पास गए और बोले, “महाराज! मैंने सुना है कि पड़ोस के राज्य में एक बहुत की खूबसूरत राजकुमारी रहती है। अगर आप चाहें, तो क्या मैं आपका रिश्ता वहां पक्का कर आऊं?”

यह सुनते ही राजा चौंक उठे और बोले, “बीरबल! तुम ये कैसी बातें कर रहे हो। महल में पहले से ही दो महारानियां मौजूद हैं। अगर उन्हें इस बात की भनक भी लगी, तो मेरी खैर नहीं होगी।”

यह सुनकर बीरबल ने तपाक से जवाब दिया, “चलिए महाराज, फिर तो आप भी मेरे पास दो मुर्गियां जमा करा ही दीजिए।”

राजा बीरबल का ऐसा जवाब सुनकर शरमा गए और उन्होंने अपना आदेश उसी वक्त वापस ले लिया।

कहानी से सीख :

अकबर बीरबल की इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि बातों की चतुराई से हम किसी भी बात को मनवा सकते हैं। जरूरत है, तो बस बीरबल की तरह चतुराई से अपना पक्ष रखने की।


26. सबसे बड़ी चीज |

एक बार की बात है, बीरबल दरबार में मौजूद नहीं थे। इसी बात का फायदा उठा कर कुछ मंत्रीगण बीरबल के खिलाफ महाराज अकबर के कान भरने लगे। उनमें से एक कहने लगा, “महाराज! आप केवल बीरबल को ही हर जिम्मेदारी देते हैं और हर काम में उन्हीं की सलाह ली जाती है। इसका मतलब यह है कि आप हमें अयोग्य समझते हैं। मगर, ऐसा नहीं हैं, हम भी बीरबल जितने ही योग्य हैं।”

महाराज को बीरबल बहुत प्रिय थे। वह उनके खिलाफ कुछ नहीं सुनना चाहते थे, लेकिन उन्होंने मंत्रीगणों को निराश न करने के लिए एक समाधान निकाला। उन्होंने उनसे कहा, “मैं तुम सभी से एक प्रश्न का जवाब चाहता हूं। मगर, ध्यान रहे कि अगर तुम लोग इसका जवाब न दे पाए, तो तुम सबको फांसी की सजा सुनाई जाएगी।”


दरबारियों ने झिझक कर महाराज से कहा, “ठ.. ठीक है महाराज! हमें आपकी ये शर्त मंजूर है, लेकिन पहले आप प्रश्न तो पूछिए।”

महाराज ने कहा, “दुनिया की सबसे बड़ी चीज़ क्या है?”

यह सवाल सुनकर सभी मंत्रीगण एक दूसरे का मुंह ताकने लगे। महाराज ने उनकी ये स्थिति देख कर कहा, “याद रहे कि इस प्रश्न का उत्तर सटीक होना चाहिए। मुझे कोई भी अटपटा सा जवाब नहीं चाहिए।”

इस पर मंत्रीगणों ने राजा से इस प्रश्न का उत्तर देने के लिए कुछ दिनों की मोहलत मांगी। राजा भी इस बात के लिए तैयार हो गए।

महल से बाहर निकलकर सभी मंत्रीगण इस प्रश्न का उत्तर ढूंढने लगे। पहले ने कहा कि दुनिया की सबसे बड़ी चीज़ भगवान है, तो दूसरा कहने लगा कि दुनिया की सबसे बड़ी चीज भूख है। तीसरे ने दोनों के जवाब को नकार दिया और कहा कि भगवान कोई चीज नहीं है और भूख को भी बर्दाश्त किया जा सकता है। इसलिए राजा के प्रश्न का उत्तर इन दोनों में से कोई नहीं है।


धीरे-धीरे समय बीतता गया और मोहलत में लिए गए सभी दिन भी गुजर गए। फिर भी राजा द्वारा पूछे गए प्रश्न का जवाब न मिलने पर सभी मंत्रीगणों को अपनी जान की फिक्र सताने लगी। कोई अन्य उपाय न मिलने पर वो सभी बीरबल के पास पहुंचे और उन्हें अपनी पूरी कहानी सुनाई। बीरबल पहले से ही इस बात से परिचित थे। उन्होंने उनसे कहा, “मैं तुम्हारी जान बचा सकता हूं, लेकिन तुम्हें वही करना होगा जैसा मैं कहूं।” सभी बीरबल की बात पर राजी हो गए।


अगले ही दिन बीरबल ने एक पालकी का इंतजाम करवाया। उन्होंने दो मंत्रीगणों को पालकी उठाने का काम दिया, तीसरे से अपना हुक्का पकड़वाया और चौथे से अपने जूते उठवाये व स्वयं पालकी में बैठ गए। फिर उन सभी को राजा के महल की ओर चलने का इशारा दिया।

जब सभी बीरबल को लेकर दरबार में पहुंचे, तो महाराज इस मंजर को देख कर हैरान थे। इससे पहले कि वो बीरबल से कुछ पूछते, बीरबल खुद ही राजा से बोले, “महाराज! दुनिया की सबसे बड़ी चीज ‘गरज’ होती है। अपनी गरज के कारण ही ये सब मेरी पालकी को उठा कर यहां तक ले आए हैं।”

यह सुन महाराज मुस्कुराये बिना न रह सके और सभी मंत्रीगण शरम के मारे सिर झुकाए खड़े रहे।

कहानी से सीख :

इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमें कभी भी किसी की योग्यता से जलना नहीं चाहिए, बल्कि उससे सीख लेकर खुद को भी बेहतर बनाने की कोशिश करनी चाहिए।

तो देखा दोस्तों आपने कितनी मजेदार हैना अकबर और बीरबल की कहानियाँ जो हमें हँसातीं और हमाराइसके  मनोरंजन भी करती है  इसके साथ ही साथ हमें अच्छी शिक्षा भी देती है |

     दोस्तों आपको कैसी लगी ये कहानियाँ हमें जरुर बताना और अपने दोस्तों के साथ Share करना मत भूलना |

                                                       धन्यवाद







         

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