Top 11 Best Interesting and Funny Stories In Hindi- सर्वश्रेष्ठ रोचक और मजेदार कहानियां हिंदी में

 दोस्तों एक बार फिर मै आप सभी के लिए Top 11 Best Interesting and Funny Stories हिंदी मै लेकर आई हूँ जिसे पढ़ने के बाद आप के बच्चों को बहुत मजा आएगा और साथ ही साथ वो जीवन में सफल कैसे बना जाये और नैतिकता का पाठ सीखेंगे| 

Top 11 Best Interesting and Funny Stories In Hindi- सर्वश्रेष्ठ रोचक और मजेदार कहानियां हिंदी में

 दोस्तो आज के दौर में बच्चों  पर काम का  प्रेशर बहुत बढ़ गया है और बच्चे हँसना ही भूल गए है  तो ये कहानियाँ उनको  खुलकर हंसने का मौका देती हैं। ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं, क्योंकि प्रतिस्पर्धा के इस दौर में बच्चों पर हमेशा आगे रहने का दबाव इस कदर है कि उनका बचपन कहीं खोता जा रहा है। इसके अलावा, इन कहानियों के जरिए आप अपने बच्चों के प्रति अपना प्यार भी व्यक्त कर सकते हैं। इससे बच्चा भी खुश रहेगा और माता-पिता भी खुश रहेंगे | 

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 1. महिलामुख हाथी की रोचक कहानी -

बहुत समय पहले की बात है राजा चन्द्रसेन के अस्तबल में एक हाथी रहता था। उसका नाम था महिला मुख। महिला मुख हाथी बहुत ही समझदार, आज्ञाकारी और दयालु था। उस राज्य के सभी निवासी महिला मुख से बहुत प्रसन्न रहते थे। राजा को भी महिला मुख पर बहुत गर्व था।

कुछ समय बाद महिला मुख के अस्तबल के बाहर चोरों ने अपनी झोपड़ी बना ली। चोर दिनभर लूट-पाट और मार-पीट करते और रात को अपने अड्डे पर आकर अपनी बहादुरी का बखान करते थे। चोर अक्सर अगले दिन की योजना भी बनाते कि किसे और कैसे लूटना है। उनकी बातें सुनकर लगता था कि वो सभी चोर बहुत खतरनाक थे। महिला मुख हाथी उन चोरों की बात सुनता रहता था।

कुछ दिन बाद महिला मुख पर चोरों की बातों का असर होने लगा। महिला मुख को लगने लगा कि दूसरों पर अत्याचार करना ही असली वीरता है। इसलिए, महिला मुख ने फैसला लिया कि अब वो भी चोरों की तरह अत्याचार करेगा। सबसे पहले महिला मुख ने अपने महावत पर वार किया और महावत को पटक-पटक कर मार डाला।

इतने अच्छे हाथी की ऐसी हरकत देखकर सारे लोग परेशान हो गए। महिला मुख किसी के काबू में नहीं आ रहा था। राजा भी महिला मुख का ये रूप देखकर चिंतित हो रहे थे। फिर राजा ने महिला मुख के लिए नए महावत को बुलाया। उस महावत को भी महिला मुख ने मार गिराया। इस तरह बिगड़ैल हाथी ने चार महावत कुचल दिए।

महिला मुख के इस व्यवहार के पीछे क्या कारण था यह किसी को समझ नहीं आ रहा था। जब राजा को कोई रास्ता नहीं सूझा, तो उसने एक बुद्धिमान वैद्य को महिला मुख के इलाज के लिए नियुक्त किया। राजा ने वैद्य जी से आग्रह किया कि जितनी जल्दी हो सके महिला मुख का इलाज करें, ताकि वो राज्य में तबाही का कारण नहीं बन सके।

वैद्य जी ने राजा की बात को गंभीरता से लिया और महिलामुख की कड़ी निगरानी शुरू की। जल्द ही वैद्य जी को पता चल गया कि महिला मुख में ये परिवर्तन चोरों के कारण हुआ है। वैद्य जी ने राजा को महिला मुख के व्यवहार में परिवर्तन का कारण बताया और कहा कि चोरों के अड्डे पर लगातार सत्संग का आयोजन कराया जाए, ताकि महिला मुख का व्यवहार पहले की तरह हो सके। राजा ने ऐसा ही किया। अब अस्तबल के बाहर रोज सत्संग का आयोजन होने लगा। धीरे-धीरे महिलामुख की दिमागी हालत सुधरने लगी।

कुछ ही दिनों में महिला मुख हाथी पहले जैसा उदार और दयालु बन गया। अपने पसंदीदा हाथी के ठीक हो जाने पर राजा चंद्रसेन बहुत प्रसन्न हुए। चन्द्रसेन ने वैद्य जी की प्रशंसा अपनी सभा में की और उन्हें बहुत से उपहार भी प्रदान किए।

कहानी से सीख:

संगति का असर बहुत जल्दी और गहरा होता है। इसलिए, हमेशा अच्छे लोगोंं की संगत में रहना चाहिए और सभी के साथ अच्छा व्यवहार करना चाहिए।

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2. दो हंसों की रोचक कहानी -

बहुत पुरानी बात है हिमालय में प्रसिद्ध मानस नाम की झील थी। वहां पर कई पशु-पक्षियों के साथ ही हंसों का एक झुंड भी रहता था। उनमें से दो हंस बहुत आकर्षक थे और दोनों ही देखने में एक जैसे थे, लेकिन उनमें से एक राजा था और दूसरा सेनापती। राजा का नाम था धृतराष्ट्र और सेनापती का नाम सुमुखा था। झील का नजारा बादलों के बीच में स्वर्ग-जैसा प्रतीत होता था।

उन समय झील और उसमें रहने वाले हंसों की प्रसिद्धी वहां आने जाने वाले पर्यटकों के साथ देश-विदेश में फैल गई थी। वहां का गुणगान कई कवियों ने अपनी कविताओं में किया, जिससे प्रभावित होकर वाराणसी के राजा को वह नजारा देखने की इच्छा हुई। राजा ने अपने राज्य में बिल्कुल वैसी ही झील का निर्माण करवाया और वहां पर कई प्रकार के सुंदर और आकर्षक फूलाें के पौधों के साथ ही स्वादिष्ट फलों के पेड़ लगवाए। साथ ही विभिन्न प्रजाती के पशु-पक्षियों की देखभाल और उनकी सुरक्षा की व्यवस्था का आदेश भी दिया।

वाराणसी का यह सरोवर भी स्वर्ग-जैसा सुंदर था, लेकिन राजा के मन में अभी उन दो हंसों को देखने की इच्छा थी, जो मानस सरोवर में रहते थे।

एक दिन मानस सरोवर के अन्य हंसों ने राजा के सामने वाराणसी के सरोवर जाने की इच्छा प्रकट की, लेकिन हंसाें का राजा समझदार था। वह जानता था कि अगर वो वहां गए, तो राज उन्हें पकड़ लेगा। उसने सभी हंसों को वाराणसी जाने से मना किया, लेकिन वो नहीं माने। तब राजा और सेनापती के साथ सभी हंस वाराणसी की ओर उड़ चले।

जैसे ही हंसों का झुंड उस झील में पहुंचा, तो अन्य हंसों को छोड़कर प्रसिद्ध दो हंसों की शोभा देखते ही बनती थी। सोने की तरह चमकती उनकी चोंच, सोने की तरह ही नजर आते उनके पैर और बादलों से भी ज्यादा सफेद उनके पंख हर किसी को अपनी ओर आकर्षित कर रहे थे।

हंसों के पहुंचने की खबर राजा को दी गई। उसने हंसों को पकड़ने की युक्ति सोची और एक रात जब सब सो गए, तो उन हंसों को पकड़ने कि लिए जाल बिछाया गया। अगले दिन जब हंसों का राजा जागा और भ्रमण पर निकला, तो वह जाल में फंस गया। उसने तुरंत ही तेज आवाज में अन्य सभी हंसों को वहां से उड़ने और अपनी जान बचाने का आदेश दिया।

अन्य सभी हंस उड़ गए, लेकिन उनका सेनापती सुमुखा अपने स्वामी को फंसा देख कर उसे बचाने के लिए वहीं रुक गया। इस बीच हंस को पकड़ने के लिए सैनिक वहां आ गया। उसने देखा कि हंसों का राजा जाल में फंसा हुआ है और दूसरा राजा को बचाने के लिए वहां खड़ा हुआ है। हंस की स्वामी भक्ति देखकर सैनिक बहुत प्रभावित हुआ और उसने हंसों के राजा को छोड़ दिया।

हंसों का राजा समझदार होने के साथ-साथ दूरदर्शी भी था। उसने सोचा कि अगर राजा को पता चलेगा कि सैनिक ने उसे छोड़ दिया है, तो राजा इसे जरूर प्राणदंड देगा। तब उसने सैनिक से कहा कि आप हमें अपने राजा के पास ले चलें। यह सुनकर सैनिक उन्हें अपने साथ राजदरबार में ले गया। दोनों हंस सैनिक के कंधे पर बैठे थे।

हंसों को सैनिक के कंधे पर बैठा देखकर हर कोई सोच में पड़ गया। जब राजा ने इस बात का रहस्य पूछा, तो सैनिक ने सारी बात सच-सच बता दी। सैनिक की बात सुनकर राजा के साथ ही सारा दरबार उनके साहस और सेनापती की स्वामी भक्ति पर हैरान रह गया और सभी के मन में उनके लिए प्रेम जाग उठा।

राजा ने सैनिक को माफ कर दिया और दोनों हंसों को आदर के साथ कुछ और दिन ठहरने का निवेदन किया। हंस ने राजा का निवेदन स्वीकार किया और कुछ दिन वहां रुक कर वापस मानस झील चले गए।

कहानी से सीख:

किसी भी परिस्थिति में हमें अपनों का साथ नहीं छोड़ना चाहिए।

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3.गजराज और मूषकराज की रोचक कहानी -

एक बार की बात है, किसी नदी के किनारे एक शहर बसा हुआ था। एक बार वहां बहुत बारिश हुई, जिससे नदी ने अपना रास्ता बदल लिया। इससे शहर में पानी की कमी होने लगी, यहां तक कि लोगों के लिए पीने तक का पानी न रहा। धीरे-धीरे लोग उस शहर को छोड़कर जाने लगे और एक वक्त आया जब पूरा शहर खाली हो गया और वहां सिर्फ चूहे ही रह गए। चूहों ने वहां अपना राज्य बसा लिया। एक बार वहां की जमीन से पानी का एक स्रोत फूटा और वहां एक बड़ा सा तालाब बन गया।

दूसरी ओर, उस शहर से कुछ ही दूरी पर एक जंगल था, जहां कई जंगली जानवर रहते थे। उन जानवरों के साथ कई हाथी भी वहां रहते थे, जिनका राजा था गजराज नाम का हाथी। एक बार की बात है, वहां भयानक सूखा पड़ा। सभी जानवर पानी के लिए हाहाकार मचाने लगे। भारी-भरकम हाथियों की भी बुरी हालत हो चुकी थी। हाथियों के बच्चे बिना पानी के परेशान होने लगे थे। इतने में गजराज का दोस्त चील वहां आया और उसने खबर दी कि खंडहर बने शहर में एक पानी का तालाब है। यह सुनते ही हाथी अपने बच्चों और बाकी साथियों को लेकर शहर की तरफ चल पड़ा। कई हाथी उस ओर चल पड़े, रास्ते में चूहों का शहर भी पड़ा, उन विशाल हाथियों के पैरों तले कई चूहे दबकर मर गए। इतना ही नहीं हाथी फिर उसी रास्ते से वापस आए और कई और चूहे फिर मारे गए।

ऐसा कई दिनों तक चलता रहा और इस बात की खबर चूहों के राजा मूषकराज तक भी पहुंची। वो इस बात को लेकर बहुत चिंतित हुआ। उसके मंत्रियों ने मूषकराज को कहा, “महाराज आपको जाकर गजराज से इस बारे में बात करनी चाहिए।” उनकी बात सुनकर मूषकराज, गजराज के जंगल उससे बात करने गया। एक बड़े से पेड़ के नीचे गजराज खड़ा था। मूषकराज वहां सामने पड़े एक बड़े से पत्थर पर चढ़ गया और कहने लगा, “गजराज को मेरा नमस्कार! मैं मूषकराज हूं। मैं उस खंडहर बने शहर में अपनी प्रजा के साथ रहता हूं।”

हाथी को मूषकराज की बात ठीक से सुनाई नहीं दे रही थी। वो थोड़ा नीचे झुका और चूहे की तरफ अपने कान करके बोला, “हे नन्हें प्राणी आप कुछ कह रहे थे, क्या आप फिर से कहेंगे?” यह सुनकर मूषकराज ने फिर से अपनी बात दोहराई, “मैं मूषकराज हूं। मैं उस खंडहर बने शहर में अपनी प्रजा के साथ रहता हूं। आप और आपके अन्य हाथी मित्र जब भी तालाब की ओर जाते हैं, तो कई चूहे आपके पैरों तले दबकर मर जाते हैं। कृपया करके ऐसा न करें वरना बहुत जल्दी हम में से कोई नहीं बचेगा।”

यह सुनने के बाद गजराज दुखी होकर बोला, “मुझे पता ही नहीं था कि हम इतना बुरा कर रहे थे। हम तालाब तक जाने के लिए कोई और रास्ता ढूंढेंगे।”

यह सुनते ही चूहा बहुत खुश हुआ और बोला, “गजराज आपने मुझ जैसे छोटे से प्राणी की बात सुनी, मैं आपका आभारी हूं।” भविष्य में कभी भी अगर आपको किसी मदद की जरूरत हो तो मुझे जरूर बताएं।”

गजराज ने मन में सोचा कि यह इतना छोटा सा जीव मेरे किस काम आएगा। इसलिए, उसने चूहे को मुस्कुराकर विदा किया। कुछ दिनों तक सब कुछ ठीक चल रहा था कि एक बार पड़ोसी देश के राजा ने अपनी सेना को मजबूत करने के लिए हाथी रखने का फैसला किया। राजा के मंत्री और उनकी सेना ने जंगल में कई हाथी पकड़े। हाथियों के पकड़े जाने की चिंता गजराज को सताने लगी। एक रात गजराज इसी चिंता में जंगल में टहल रहा था कि अचानक उसका पैर सूखी पत्तियों में छिपाए जाल पर पड़ा और वो जाल में फंस गया।

हाथी जोर-जोर से चिंघाड़ने लगा, लेकिन कोई उसकी मदद के लिए नहीं आया। इसी बीच एक भैंस ने हाथी की आवाज सुनी, वो गजराज का बहुत आदर-सम्मान करता था, क्योंकि एक बार गजराज ने भैंस को गड्डे से निकालकर उसकी जान बचाई थी। गजराज को जाल में फंसा देख वो बहुत चिंतित हुआ और बोलने लगा, “गजराज मैं आपकी मदद के लिए क्या करूं? अपनी जान देकर भी मैं आपकी मदद करूंगा गजराज।” गजराज ने कहा, “तुम जल्दी से जाकर उस खंडहर शहर में रहने वाले मूषकराज को मेरी खबर दो।” गजराज की बात सुनकर भैंस दौड़ता हुआ मूषकराज के पास गया और उसे सारा हाल बताया।

मूषकराज ने जैसे ही यह बात सुनी वो अपने कई सैनिकों को लेकर भैंस की पीठ पर बैठ गया और गजराज के पास पहुंचा। फिर चूहों ने मिलकर जाल को काटा और गजराज आजाद हो गया।

इसके बाद गजराज ने मूषकराज को धन्यवाद कहा। सभी खुशी-खुशी रहने लगे। गजराज और मूषकराज की दोस्ती भी गहरी हो गई।

कहानी से सीख:

कोई भी प्राणी छोटा नहीं होता है, जरूरत होती है तो बस प्यार और विश्वास की। आपसी प्यार हर तरह के दुखों को दूर कर सकता है।

4.ब्राह्मण और सांप की रोचक कहानी (लालच बुरी बला है) -

एक बार की बात है किसी नगर में हरिदत्त नाम का ब्राह्मण रहता था। उसके पास खेत थे, लेकिन उनमें ज्यादा पैदावार नहीं होती थी। एक दिन हरिदत्त अपने खेत में एक पेड़ के नीचे सोया हुआ था। जैसे ही हरिदत्त की आंख खुली उसने देखा कि एक सांप अपना फन फैलाए बैठा हुआ है। ब्राह्मण को अहसास हुआ कि यह कोई साधारण सांप नहीं है, बल्कि कोई देवता है। ब्राह्मण ने निर्णय लिया कि वह आज से इस देवता की पूजा करेगा। हरिदत्त उठा और कहीं से जाकर दूध ले आया। उसने मिट्टी के बर्तन में सांप को दूध पिलाया।

दूध पिलाते समय हरिदत्त ने सांप से क्षमा मांगते हुए कहा कि हे देव! मैं आज तक आपको साधारण सांप समझता रहा मुझे माफ कर दीजिए। अपनी कृपा दृष्टि से मुझे बहुत सारा धन-धान्य प्रदान करें प्रभु। ऐसा कहकर हरिदत्त अपने घर वापस आ गया।

अगले दिन जब वह अपने खेत पहुंचा, तो उसने देखा कि जिस बर्तन में उसने कल सांप को दूध पिलाया था, उसमें एक सोने का सिक्का पड़ा हुआ है। हरिदत्त ने वो सिक्का उठा लिया। अब हरिदत्त रोज सांप की पूजा करने लगा और सांप रोज उसे एक सोने का सिक्का देने लगा।

कुछ दिन बाद हरिदत्त को दूर किसी देश जाना पड़ा, तो उसने अपने बेटे से कहा कि तुम खेत में जाकर सांप देवता को दूध पिला आना। अपने पिता की आज्ञा से हरिदत्त का बेटा खेत में गया और सांप के बर्तन में दूध रख आया। अगली सुबह जब वह सांप को दूध पिलाने गया, तो उसने देखा कि वहां सोने का सिक्का रखा हुआ है।

हरिदत्त के बेटे ने वो सोने का सिक्का उठा लिया और मन ही मन सोचने लगा कि जरूर इस सांप के बिल में सोने का भंडार है। उसने सांप के बिल को खोदने का फैसला किया, लेकिन उसे सांप का बहुत डर था। हरिदत्त के बेटे ने योजना बनाई कि जैसे ही सांप दूध पीने आएगा, तो वह उसके सिर पर लाठी से वार करेगा, जिससे सांप मर जाएगा। सांप के मरने के बाद मैं तसल्ली से बिल खोदूंगा और उसमें से सोना निकाल कर अमीर आदमी बन जाऊंगा।

लड़के ने अगले दिन ऐसा ही किया, लेकिन जैसे ही उसने सांप के सिर पर लाठी मारी, तो वो मरा नहीं बल्कि गुस्से से भर उठा। सांप ने क्रोध में लड़के के पैर में अपने विष भरे दांतों से काटा और लड़के की उसी समय मौत हो गई। हरिदत्त जब वापस लौटा, तो उसे यह जानकर बहुत दुःख हुआ।

कहानी से सीख:
बच्चों, लालच का फल हमेशा बुरा होता है, इसीलिए कहते है कि कभी लालच नहीं करना चाहिए। हमारे पास जो भी हमें उसी से संतोष करना चाहिए और हमेशा परिश्रम करते रहना चाहिए।

5.दो सांपों की  रोचक कहानी -
बहुत समय पहले की बात है, एक नगर में देवशक्ति नामक राजा रहा करता था। उसके पुत्र के पेट में एक सांप ने अपना डेरा जमा लिया था। पेट में सांप के होने से राजकुमार दिन प्रतिदिन कमजोर होता जा रहा था। यह देख राजा ने कई प्रसिद्ध वैद से उसका उपचार कराया, लेकिन राजकुमार के स्वास्थ्य में किसी तरह का सुधार नजर नहीं आ रहा था। राजकुमार के स्वास्थ्य के कारण राजा हमेशा परेशान रहता। यह देखकर एक दिन राजकुमार अपने राज्य से दूर दूसरे राज्य में चला गया और मंदिर में भिखारी की तरह रहने लगा।
राजकुमार जिस राज्य में गया था, वहां बलि नामक राजा राज करता था। उसकी दो जवान बेटियां थीं। दोनों रोज सुबह अपने पिता का आशीर्वाद लेने जाती थीं। एक सुबह दोनों में एक बेटी ने राजा को प्रणाम करते हुए कहा “महाराज की जय हो, आपकी कृपा से ही संसार में सब सुखी हैं।” वहीं दूसरी बेटी ने कहा “महाराजा, ईश्‍वर आपको आपके कर्मों का फल दे।” यह सुनकर राजा क्रोधित हो जाता है और मंत्रियों को आदेश देता है “कठोर शब्द बोलने वाली इस लड़की की शादी किसी गरीब लड़के के साथ कर दो, ताकि ये अपने कर्मों का फल स्वयं चख ले।”

राजा के आदेश के चलते मंत्री मंदिर के पास बैठे भिखारी से उसकी शादी कर देते हैं। वह भिखारी वही राजकुमार था, जिसके पेट में सांप ने डेरा बना रखा था। राजकुमारी उसे ही अपना पति मानकर सेवा करने लगती है। कुछ दिन बाद दोनों मंदिर छोड़कर दूसरे देश की यात्रा पर निकल जाते हैं, क्योंकि दोनों मंदिर में रहना सही नहीं समझते।

सफर के दौरान रास्ते में राजकुमार थक जाता है और एक पेड़ के नीचे विश्राम करने लगता है। राजकुमारी पास के गांव से भोजन लाने के लिए चली जाती है। जब वह वापस आती है, तो सोए हुए पति के मुंह से एक सांप को निकलते देखती है। साथ ही पास के एक बिल से भी सांप निकलता है। दोनों सांप बात करने लगते हैं, जिसे छिपकर राजकुमारी सुन लेती है।

एक सांप कहता है “तुम इस राजकुमार के पेट में रहकर इसे तकलीफ क्यों दे रहे हो। साथ ही तुम खुद के जीवन को भी खतरे में डाल रहे हो। अगर किसी ने राजकुमार को जीरा और सरसों का सूप पिला दिया, तो तुम्हारी मृत्यु हो जाएगी।” फिर राजकुमार के मुंह से निकला सांप कहता है “तुम इस बिल में रखे सोने के घड़ों की रक्षा क्यों करते हैं, जो तुम्हारे किसी काम के नहीं हैं। अगर किसी को इन घड़ों के बारे में पता चल गया, तो वो बिल में गर्म पानी या गर्म तेल डालकर तुम्हारी जान ले लेगा।”

थोड़ी देर बाद दोनों सांप अपनी-अपनी जगह वापस चले जाते हैं, लेकिन राजकुमारी दोनों सांपों के रहस्य को जा चुकी थी। इसलिए, राजकुमारी पहले राजकुमार को भोजन के साथ जीरा और सरसों का सूप पिला देती है। इसके कुछ समय बाद राजकुमार ठीक होने लगा। फिर उसके बाद बिल में गर्म पानी और तेल डाल देती है, जिससे दूसरे सांप की भी मृत्यु हो जाती है। इसके बाद बिल में रखे सोने से भरे घड़े को बाहर निकालकर दोनों अपने शहर लौट जाते हैं। राजा देवशक्ति अपने बेटे और उसकी पत्नी का धूमधाम से स्वागत करता है।

कहानी से सीख : इस कहानी से यह सीख मिलती है कि अगर कोई किसी का बुरा सोचता है, तो उसका भी बुरा होना तय है। सांप ने राजकुमार का बुरा सोचा, तो उल्टा उसका बुरा हुआ।

6.कौवा और दुष्ट सांप की रोचक कहानी -
एक बार की बात है। एक जंगल में किसी पेड़ पर कौवे का एक जोड़ा रहा करता था। वो दोनों खुशी-खुशी उस पेड़ पर जीवन बसर कर रहे थे। एक दिन उनकी इस खुशी को एक सांप की नजर लग गई। जिस पेड़ पर कौवों का घोंसला था, उसी पेड़ के नीचे बने बिल में सांप रहने लगा था। जब भी कौवों का जोड़ा दाना चुगने के लिए जाता, सांप उनके अंडों को खा जाता था और जब वो वापस आते, तो उन्हें घोंसला खाली मिलता था, लेकिन उन्हें पता नहीं चल पा रहा था कि अंडे कौन ले जाता है।

इस प्रकार से कई दिन निकल गए। एक दिन कौवे का जोड़ा दाना चुग कर जल्दी आ गया, तो उन्होंने देखा की उनके अंडों को बिल में रहले वाला एक सांप खा रहा है। इसके बाद उन्होंने पेड़ पर किसी ऊंचे स्थान पर छुपकर अपना घोंसला बना लिया। सांप ने देखा कि कौवों का जोड़ा पहले वाले स्थान को छाेड़कर चला गया है, लेकिन शाम होते ही दोनों वापस पेड़ पर आ जाते हैं।

इस प्रकार कई दिन निकल गए। कौवा के अंडों में से बच्चे निकल आए और वो बड़े होने लगे। एक दिन सांप को उनके नए घोंसले का पता चल गया और वह कौवों के जाने का इंतजार करने लगा। जैसे कौवे घोंसला छोड़ कर गए, सांप उनके घोंसले की ओर बड़ने लगा, लेकिन किसी कारण से कौवों का जोड़ा वापस पेड़ की ओर लौटने लगा। उन्होंने दूर से ही सांप को उनके घोंसले की ओर जाता देख लिया और जल्दी से वहां पहुंच कर अपने बच्चों को पेड़ की ओट में छुपा दिया।

सांप ने देखा की घोंसला खाली है, तो वह कौवों की चाल समझ गया और वापस बिल में जाकर सही मौके का इंतजार करने लगा। इसी बीच कौवे ने सांप से पीछा छुड़ाने के लिए एक योजना बनाई। कौवा उड़कर जंगल के बाहर बने एक राज्य में चला गया। वहां एक सुंदर महल था। महल में राजकुमारी अपनी सहेलियों के साथ खेल रही थी। कौवा उसके गले में से मोतियों का हार लेकर उड़ गया। सभी ने शोर मचाया, तो पहरेदार हार लेने के लिए कौवे का पीछा करने लगे।

कौवे ने जंगल में पहुंचकर हारा को सांप के बिल में डाल दिया, जिसे पीछे कर रहे सैनिकों ने देख लिया। जैसे ही सैनिकों ने हार निकालने के लिए बिल में हाथ डाला, तो सांप फुंकारता हुआ बाहर निकल आया। सांप को देखकर सैनिकों ने तलवार से उस पर हमला कर दिया, जिससे सांप घायल हो गया और अपनी जान बचाकर वहां से भाग गया। सांप के जाने के बाद कौवा अपने परिवार के साथ खुशी-खुशी रहने लगा।

कहानी से सीख:
हमें इस कहानी से यह सीख मिलती है कि कभी भी निर्बल का फायदा नहीं उठाना चाहिए। साथ ही मुसीबत में समझदारी से काम लेना चाहिए।

7.साधु और चूहे की रोचक कहानी -
बहुत समय पहले की बात है। एक गांव में एक साधु मंदिर में रहा करता था। उनकी दिनचर्या रोजाना प्रभु की भक्ति कराना और आने-जाने वाले लोगों को धर्म का उपदेश देना थी। गांव वाले भी जब भी मंदिर आते, तो साधु को कुछ न कुछ दान में दे जाते थे। इसलिए, साधु को भोजन और वस्त्र की कोई कमी नहीं होती थी। रोज भोजन करने के बाद साधु बचा हुआ खाना छींके में रखकर छत से टांग देता था।

समय ऐसे ही आराम से निकल रहा था, लेकिन अब साधु के साथ एक अजीब-सी घटना होने लगी थी। वह जो खाना छींके में रखता था, गायब हो जाता था। साधु ने परेशान होकर इस बारे में पता लगाने का निर्णय किया। उसने रात को दरवाजे के पीछे से छिपकर देखा कि एक छोटा-सा चूहा उसका भोजन निकालकर ले जाता है। दूसरे दिन उन्होंने छींके को और ऊपर कर दिया, ताकि चूहा उस तक न पहुंच सके, लेकिन यह उपाय भी काम नहीं आया। उन्होंने देखा की चूहा और ऊंची छलांग लगाकर छींके पर चढ़ जाता और भोजन निकाल लेता था। अब साधु चूहे से परेशान रहने लगा था।

एक दिन उस मंदिर में एक भिक्षुक आया। उसने साधु को परेशान देखा और उसकी परेशानी का कारण पूछा, तो साधु ने भिक्षुक को पूरा किस्सा सुना दिया। भिक्षुक ने साधु से कहा कि सबसे पहले यह पता लगाना चाहिए कि चूहे में इतना ऊंचा उछलने की शक्ति कहां से आती है।

उसी रात भिक्षुक और साधु दोनों ने मिलकर पता लगाना चाहा कि आखिर चूहा भोजन कहां ले जाता है।

दोनों ने चुपके से चूहे का पीछा किया और देखा कि मंदिर के पीछे चूहे ने अपना बिल बनाया हुआ है। चूहे के जाने के बाद उन्होंने बिल को खोदा, तो देखा कि चूहे के बिल में खाने-पीने के सामान का बहुत बड़ा भण्डार है। तब भिक्षुक ने कहा कि इसी वजह से ही चूहे में इतना ऊपर उछलने की शक्ति आती है। उन्होंने उस सामग्री काे निकाल लिया और गरीबों में बांटा दिया।

जब चूहा वापस आया, तो उसने वहां पर सब कुछ खाली पाया, तो उसका पूरा आत्मविश्वास समाप्त हो गया। उसने साेचा कि वह फिर से खाने-पीने का सामान इकट्ठा कर लेगा। यह सोचकर उसने रात को छींके के पास जाकर छलांग लगाई, लेकिन आत्मविश्वास की कमी के कारण वह नहीं पहुंच पाया और साधु ने उसे वहां से भगा दिया।

कहानी से सीख:
संसाधनों के अभाव में आत्मविश्वास की कमी हो जाती है। इसलिए, जो भी संसाधन आपके पास हों, उसका ध्यान रखना चाहिए।

8.सांप की सवारी करने वाले मेंढक की रोचक कहानी -
सालों पहले वरुण पर्वत के पास एक राज्य बसा हुआ था। उस राज्य में एक बड़ा सा सांप मंदविष भी रहता था। बूढ़ा होने की वजह से वह आसानी से अपना शिकार ढूंढ नहीं पाता था। एक दिन उसने तरकीब सोची। वो तुरंत मेंढकों से भरे हुए एक तालाब के पास पहुंच गया।

वहां वह दुखी सा होकर एक पत्थर के ऊपर बैठ गया। तभी पास के पत्थर पर बैठे एक मेंढक ने उसे देखा। उस मेंढक ने थोड़ी देर बाद सांप से पूछा, “चाचा, क्या बात है, आज आप खाने की तलाश नहीं कर रहे हैं। अपने लिए भोजन नहीं जुटाएंगे।” इतना सुनते ही सांप ने रोनी सी सूरत बनाकर मेंढक को कहानी सुनाई।

सांप ने कहा, “मैं आज भोजन की तलाश में किसी मेंढक के पीछे-पीछे जा रहा था। अचानक से मेंढक ब्राह्मणों के झुंड में जाकर छुप गया। मेंढक को भोजन बनाने के चक्कर मैंने गलती से एक ब्राह्मण की बेटी को काट दिया, जिससे उसकी मौत हो गई। इससे नाराज होकर ब्राह्मण ने मुझे श्राप दे दिया। उन्होंने मुझे श्राप देते हुए कहा कि तुझे अपना पेट भरने के लिए मेंढकों की सवारी बनना पड़ेगा। इसी वजह से मैं इस तालाब के पास आया हूं।

यह बात सुनते ही वह मेंढक तुरंत तालाब के अंदर गया और अपने राजा को सारी बातें बताई। राजा कहानी सुनकर हैरान हुआ, पहले तो उसे बिलकुल भी यकीन नहीं हुआ, लेकिन कुछ देर सोच विचार करने के बाद मेंढकों का राजा जलपाक, तालाब से बाहर निकलकर एकदम कूदते हुए सांप के फन पर जाकर बैठ गया। राजा को ऐसा करते हुए देखकर अन्य मेंढकों ने भी ऐसा ही किया।

सांप समझ गया था कि मेंढक अभी मेरी परीक्षा ले रहे हैं। सांप भी बिना विचलित हुए आराम से सबको अपने फन पर कूदने दे रहा था और उन्हें घुमा रहा था। इसके बाद मेंढकों के राजा ने कहा, “जितना मजा मुझे सांप की सवारी करके आया, उतना मुझे आज तक किसी की सवारी करके नहीं आया।” मेंढकों का भरोसा जीतने के बाद अब धीरे-धीरे सांप रोज मेंढकों की सवारी बनने लगा। कुछ दिन बाद चतुर सांप ने अपने चलने की गति थोड़ी धीमी कर दी।

यह देखकर मेंढकों के राजा जलपाक ने पूछा, “हे! सर्प तुम्हारी चाल इतनी धीमी क्यों है?” इसके जवाब में सांप ने कहा, “एक तो मैं बूढ़ा हूं और ब्राह्मण के श्राप की वजह से बहुत दिनों से भूखा भी हूं। इसी वजह से मेरी गति कम हो गई है।” इतना सुनते ही राजा ने कहा तुम छोटे-छोटे मेंढक को खा लो। यह सुनकर मन ही मन सांप बहुत प्रसन्न हुआ। उसने कहा, “राजन मुझे ब्राह्मण का श्राप है। मैं मेंढक खा नहीं सकता हूं, लेकिन अगर आप कहते हैं तो मैं खा लेता हूं।” ऐसा करते-करते वह रोज छोटे-छोटे मेंढक खाने लगा और वह तंदुरुस्त हो गया।

अब सांप को रोज बिना किसी मेहनत के खाना मिल रहा था। सांप काफी प्रसन्न था। मेंढक सांप की चाल अब तक नहीं समझ पाए थे। मेंढक के राजा को भी सांप की इस साजिश की भनक नहीं लगी। होते-होते एक दिन सांप ने मेंढक के राजा जलपाक को भी खा लिया और तालाब में रहने वाले सारे मेंढकों के वंश का नाश कर दिया।

कहानी से सीख : किसी भी शत्रु की बात का जल्दी से भरोसा नहीं करना चाहिए। इससे खुद की और अपने लोगों की हानि होना निश्चित है।

9.बुद्धिमान बंदर और मगरमच्छ की रोचक कहानी -
एक था घना जंगल, जहां जानवर एक दूसरे के साथ बहुत प्यार से रहा करते थे। उस जंगल के बीच एक बहुत सुंदर और बड़ा तालाब था। उस तालाब में एक मगरमच्छ रहता था। तालाब के चारों ओर बहुत सारे फलों के पेड़ लगे हुए थे। उनमें से एक पेड़ पर बंदर रहता था। बंदर और मगरमच्छ एक दूसरे के बहुत अच्छे दोस्त थे।

बंदर पेड़ से मीठे और स्वादिष्ट फल खाता था और साथ ही अपने दोस्त मगर को भी देता था। बंदर अपने दोस्त मगर का खास ख्याल रखता और मगर भी उसे अपनी पीठ पर बैठाकर पूरे तालाब में घुमाता था।

दिन निकलते गए और दोनों की दोस्ती गहरी होती गई। बंदर जो फल मगरमच्छ को देता था, मगरमच्छ उनमें से कुछ फल अपनी पत्नी को भी खिलाता था। दोनों फलों को बड़े ही चाव से खाते थे।

बहुत दिनों के बाद एक बार मगर की पत्नी ने कहा कि बंदर तो हमेशा ही स्वादिष्ट फल खाता रहता है। जरा सोचो उसका कलेजा कितना स्वादिष्ट होगा। वह मगर से जिद करने लगी कि उसे बंदर का कलेजा खाना है।

मगर ने उसे समझाने कि कोशिश की, लेकिन उसने नहीं माना और वो मगर से रूठ गई। अब मगर को न चाहते हुए भी हां बोलना पड़ा। उसने कहा कि वो दूसरे दिन बंदर को अपनी गुफा में लेकर आ जाएगा, तब उसका कलेजा निकालकर खा लेना। इसके बाद मगर की पत्नी मान गई।

हर दिन की तरह स्वादिष्ट फलों के साथ बंदर मगर का इंतजार करने लगा। कुछ ही देर में मगर भी आ गया और दोनों ने मिलकर फल खाए। मगरमच्छ बोला कि दोस्त आज तुम्हारी भाभी तुमसे मिलना चाहती है। चलो तालाब की दूसरी ओर मेरा घर है, आज वहां चलते हैं।

बंदर झट से मान गया और उछलकर मगर की पीठ पर बैठ गया। मगर उसे लेकर अपनी गुफा की ओर बढ़ने लगा। जैसे ही दोनों तालाब के बीच पहुंचे, मगर ने कहा कि मित्र आज तुम्हारी भाभी की इच्छा है कि वो तुम्हारा कलेजा खाये। ऐसा कहकर उसने पूरी बात बताई।

बात सुनकर बंदर कुछ सोचने लगा और बोला मित्र तुमने मुझे यह पहले क्यों नहीं बताया। मगर ने पूछा क्यों मित्र क्या हाे गया। बंदर बोला कि मैं अपना कलेजा तो पेड़ पर ही छोड़ आ हूं। तुम मुझे वापस ले चलो तो मैं अपना कलेजा साथ में ले आऊंगा।

मगर बंदर की बातों में आ गया और वापस किनारे पर आ गया। वो दोनों जैसे ही किनारे पर पहुंचे बंदर झट से पेड़ पर चढ़ गया और बोला कि मूर्ख तुझे पता नहीं कि कलेजा हमारे अंदर ही होता है। मैं हमेशा ही तुम्हारा भला सोचता रहा और तुम मुझे ही खाने चले थे। कैसी मित्रता है यह तुम्हारी। चले जाओ यहां से।

मगर अपनी करनी पर बहुत शर्मिंदा हुआ और उसने बंदर से माफी मांगी, लेकिन अब बंदर उसकी बातों में नहीं आने वाला था।

कहानी से सीख:
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि संकट के समय हमें घबराना नहीं चाहिए। मुसीबत के समय अपनी बुद्धि का उपयोग कर उसे दूर करने का उपाय सोचना चाहिए।

10.बंदर और टोपीवाले की रोचक कहानी -
एक समय की बात है। एक गांव में एक व्यापारी रहता था। वह अपना पेट भरने के लिए गांव-गांव जाकर टोपियां बेचा करता था। वह रोज सुबह एक बड़ी-सी टोकरी में टोपियां लेकर निकलता था। उन्हें बेचकर वह शाम तक अपने घर वापस आ जाता था। एक सुबह वह अपनी टोकरी में रंग-बिरंगी टोपियां लेकर निकला। एक गांव में टोपियां बेचने के बाद वह दूसरे गांव की ओर जा रहा था।

चलते-चलते वह बहुत थक गया था। उस रास्ते से गुजरते समय एक जंगल भी पड़ता था। जंगल में उसे एक बरगद का पेड़ दिखाई दिया। उसने सोचा क्यों न पेड़ के नीचे बैठकर आराम कर लिया जाए! व्यापारी बहुत थका हुआ था। उसने टोपियों से भरी टोकरी को नीचे रख दिया। फिर सिर से टोपी को उतारकर नीचे रखा और गले से गमछे को उतारकर जमीन पर बिछा दिया और उस पर लेट गया। उसके बाद व्यापारी गहरी नींद में सो गया।

जिस पेड़ के नीचे व्यापारी सो रहा था, उसी पेड़ पर बहुत सारे बंदर रहते थे। व्यापारी के सोते ही बंदरों ने उसकी टोकरी पर हमला बोल दिया। बंदरों ने रंग-बिरंगी टोपियों को लेकर खेलना शुरू कर दिया। कई बंदरों ने टोपियों को हाथ में भी पकड़ रखा था। बंदरों की उछल-कूद से वहां शोर हुआ, तो व्यापारी की नींद खुल गई। नींद खुलते ही व्यापारी के होश उड़ गए। उसकी टोकरी से सारी टोपियां गायब हो चुकी थीं। सभी बंदर हाथ में टोपी लिए हुए व्यापारी की ओर देख रहे थे। व्यापारी ने ऊपर बंदरों की ओर देखा तो उसे सब समझ आ गया। व्यापारी परेशान हो गया। वह सोच में पड़ गया कि अब टोपियां न बेच पाने के कारण उसका कितना नुकसान हो जाएगा।

यही सब सोचते हुए वह अपना सिर खुजाने लगा। उसे ऐसा करता देख बंदर भी अपना सिर खुजलाने लगे। व्यापारी को यह देख गुस्सा आ गया। उसने गुस्से में अपने सिर पर अपना हाथ तेजी से मारा। बंदरों ने भी अपने हाथ से अपने सिर पर तेजी से मारा। बंदरों को ऐसा करता देखा व्यापारी को समझ आ गया कि बंदर उसकी नकल उतार रहे हैं। अब व्यापारी को एक तरकीब सूझी, जिससे वह अपनी टोपियां वापिस ले सकता था।

अब उसने जिस टोपी को सोते वक्त, सिर के नीचे रखा था, उसको सिर पर पहन लिया। बंदरों ने भी झट से हाथों में पकड़ी हुई टोपियां सिर पर पहन ली। अब व्यापारी ने सिर पर पहनी टोपी को जमीन पर फेंक दिया। बंदरों ने भी व्यापारी की नकल उतारते हुए, अपने सिर पर पहनी हुई टोपियां जमीन पर फेंक दी। व्यापारी की तरकीब काम कर गई थी। उसने जल्दी-जल्दी सारी टोपियां इकट्ठी की। टोकरी में सभी टोपियां को रखने के बाद व्यापारी वहां से तुरंत उन्हें बेचने के लिए दूसरे गांव की ओर चल दिया।

कहानी से सीख : इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि परिस्थिति चाहे जैसी भी हो, हमें घबराना नहीं चाहिए। हर हाल में हमें समझदारी से काम लेना चाहिए।

11.मुर्ख की दोस्ती की रोचक कहानी-
एक समय की बात थी एक राजा ने के पालतू बन्दर को अपने सेवक के रूप में रखना शुरू कर दिया। जहां भी राजा जाता, बन्दर भी उसके साथ जाता। राजा के दरबार में उस बन्दर को राजा का पालतू होने के कारण कोई रोक-टोक नहीं थी।

गर्मी के मौसम के एक दिन राजा अपने शयन कक्ष में विश्राम कर रहा था। बन्दर भी शयन कक्ष के पास बैठकर राजा को एक पंखे से हवा कर रहा था। तभी एक मक्खी आई और राजा के सीने पर आकर बैठ गई।

जब बन्दर ने उस मक्खी को बैठे देखा तो उसने उसे उड़ाने का प्रयास किया। हर बार वो मक्खी उड़ती और थोड़ी देर बाद फिर राजा के सीने पर आकर बैठ जाती।

यह देखकर बन्दर गुस्से से लाल हो गया। गुस्से में उसने मक्खी को मारने की ठानी। वह बन्दर मक्खी को मारने के लिए हथियार ढूंढ़ने लगा।

कुछ दूर ही उसे राजा की तलवार दिखाई दी। उसने वह तलवार उठाई और गुस्से में मक्खी को मारने के लिए पूरे बल से राजा के सीने पर मार दी।

इससे पहले कि तलवार मक्खी को लगती, मक्खी वहां से उड़ गई। बन्दर के बल से किए गए वार से मक्खी तो नहीं मरी मगर उससे राजा की मृत्यु अवश्य हो गई।

कहानी से शिक्षा: मुर्ख से दोस्ती करना ठीक नहीं हैं|


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