दोस्तों आज मै आप सभी के लिए बहुत ज्ञान से भरी सबसे अलग Best 8 जातक कथा हिंदी में लेकर आई हूँ |
ये कहानियाँ ज्ञान से भरी तो है हीं साथ ही साथ आपको ये अच्छी सीख भी देंगी|
मित्रों ये हम सब जानतें है की गौतम बुद्ध का जीवन सभी के लिए प्रेरणा का स्रोत रहा है। माना जाता है कि सिर्फ एक जन्म में ही नहीं, बल्कि पिछले जन्मों में भी उनका जीवन प्रेरणादायक रहा था। उनके पिछले जन्म से जुड़े किस्से-कहानियों के संग्रह को ही जातक कथाएं कहा जाता है।
ये हैं कुछ 8 Best जातक कथाएँ हिंदी मे जो आपके जीवन ज्ञान से भर देंगी और आपके जीवन कोसफल बनाने में मदद करेंगी|
दोस्तों ये तो हम सभी जानतें हैं की स्कूल में बच्चों को शिक्षा देने के लिए भी जातक कथा शामिल की जाती हैं। इन कथाओं में बुद्ध को कभी मनुष्य, तो कभी पशु के रूप में दिखाया गया है। कहानियों के इस भाग में हम लाए हैं कुछ रोचक जातक कथाएं, जिनकी मदद से बच्चों को मार्गदर्शन मिल सकता है और वे बेहतर तरीके से समझ पाएंगे कि जातक कथाएं क्या हैं| इसके द्वारा बच्चे गौतम बुद्ध के जीवन के उपदेशों को भी बेहतर तरीके से समझ पाएंगे।
1.जातक कथा: गौतम बुद्ध और अंगुलिमाल की कथा |
मगध देश के जंगलों में एक खूंखार डाकू का राज हुआ करता था। वह डाकू जितने भी लोगों की हत्या करता था, उनकी एक-एक उंगली काटकर माला की तरह गले में पहन लेता। इसी वजह से डाकू को सभी अंगुलिमाल के नाम से जानते थे।
मगध देश के आसपास के सभी गांवों में अंगुलिमाल का आतंक था। एक दिन उसी जंगल के पास के ही एक गांव में महात्मा बुद्ध पहुंचे। साधु के रूप में उन्हें देखकर हर किसी ने उनका अच्छी तरह स्वागत किया। कुछ देर उस गांव में रुकते ही महात्मा बुद्ध को थोड़ा अजीब-सा लगा। तभी उन्होंने लोगों से पूछा, ‘आप सभी लोग इतने डरे और सहमे-सहमे से क्यों लग रहे हैं?’
सबने एक-एक करके अंगुलिमाल डाकू द्वारा की जा रही हत्याओं और उंगुली काटने के बारे में बताया। सभी दुखी होकर बोले कि जो भी उस जंगल की तरफ जाता है, उसे पकड़कर वो डाकू मार देता है। अब तक वो 99 लोगों को मार चुका है और उनकी उंगुली को काटकर उन्हें गले में माला की तरह पहनकर घूमता है। अंगुलीमाल के आतंक की वजह से हर कोई अब उस जंगल के पास से गुजरने से डरता है।
इन सभी बातों को सुनने के बाद भगवान बुद्ध ने उसी जंगल के पास जाने का फैसला ले लिया। जैसे ही भगवान बुद्ध जंगल की ओर जाने लगे, तो लोगों ने कहा कि वहां जाना खतरनाक हो सकता है। वो डाकू किसी को भी नहीं छोड़ता। आप बिना जंगल गए ही हमें किसी तरह से उस डाकू से छुटकारा दिला दीजिए।
भगवान बुद्ध सारी बातें सुनने के बाद भी जंगल की ओर बढ़ते रहे। कुछ ही देर में बुद्ध भगवान जंगल पहुंच गए। जंगल में महात्मा के भेष में एक अकेले व्यक्ति को देखकर अंगुलिमाल को बड़ी हैरानी हुई। उसने सोचा कि इस जंगल में लोग आने से पहले कई बार सोचते हैं। आ भी जाते हैं, तो अकेले नहीं आते और डरे हुए होते हैं। ये महात्मा तो बिना किसी डर के अकेले ही जंगल में घूम रहा है। अंगुलिमाल के मन में हुआ कि अभी इसे भी खत्म करके इसकी उंगली काट लेता हूं।
तभी अंगुलिमाल ने कहा, ‘अरे! आगे कि ओर बढ़ते हुए कहां जा रहा है। ठहर भी जा अब।’ भगवान बुद्ध ने उसकी बातों को अनसुना कर दिया। फिर गुस्से में डाकू बोला, ‘मैंने कहा रुक जाओ।’ तब भगवान ने उसे पलटकर देखा कि लंबा-चौड़ा, बड़ी-बड़ी आंखों वाला आदमी जिसके गले में उंगलियों की माला थी, वो उन्हें घूर रहा था।
उसकी तरफ देखने के बाद बुद्ध दोबारा से चलने लगे। गुस्से में तमतमाते हुए अंगुलिमाल डाकू उनके पीछे अपनी तलवार लेकर दौड़ने लगा। डाकू जितना भी दौड़ता, लेकिन उन्हें पकड़ नहीं पाता। दौड़-दौड़कर वो थक गया। उसने दोबारा कहा, ‘रुक जाओ, वरना मैं तुम्हें मार दूंगा और तुम्हारी उंगली काटकर मैं 100 लोगों को मारने की अपनी प्रतीज्ञा पूरी कर लूंगा।’
भगवान बुद्ध बोले कि तुम अपने आप को बहुत शक्तिशाली समझते हो न, तो पेड़ से कुछ पत्तियां और टहनियां तोड़कर ले आओ। अंगुलिमाल ने उनका साहस देखकर सोचा कि जैसा ये कह रहा है कर ही लेता हूं। वो थोड़ी देर में पत्तियां और टहनियां तोड़कर ले आया और कहा, ले आया मैं इन्हें।
फिर बुद्ध जी कहने लगे, ‘अब इन्हें दोबारा पेड़ से जोड़ दे।’
यह सुनकर अंगुलिमाल बोला, ‘तुम कैसे महात्मा हो, तुम्हें नहीं पता कि तोड़ी हुई चीज को दोबारा नहीं जोड़ सकते हैं।’
भगवान बुद्ध ने कहा कि मैं यही तो तुम्हें समझाना चाहता हूं कि जब तुम्हारे पास किसी चीज को जोड़ने की ताकत नहीं है, तो तुम्हें किसी वस्तु को तोड़ने का अधिकार भी नहीं है। किसी को जीवन देने की क्षमता नहीं, तो मारने का हक भी नहीं।’
यह सब सुनकर अंगुलिमाल के हाथों से हथियार छूट गया। भगवान आगे बोले, ‘तू मुझे रुक जा-रुक जा कह रहा था, मैं तो कबसे स्थिर हूं। वो तू ही है जो स्थिर नहीं है।’
अंगुलिमाल बोला, ‘मैं तो एक जगह पर खड़ा हूं, तो कैसे अस्थिर हुआ और आप तब से चल रहे हैं।’ बुद्ध भगवान बोले, ‘मैं लोगों को क्षमा करके स्थिर हूं और तू हर किसी के पीछे उसकी हत्या करते हुए भागने की वजह से अस्थिर है।’
यह सबकुछ सुनकर अंगुलिमाल डाकू की आंखें खुल गईं और उसने कहा, ’आज के बाद से मैं कोई अधर्म वाला कार्य नहीं करूंगा।’
रोते हुए अंगुलिमाल डाकू भगवान बुद्ध के चरणों पर गिर गया। उसी दिन अंगुलिमाल ने बुराई का रास्ता छोड़ा और वो बहुत बड़ा संन्यासी बन गया।
कहानी से सीख:
सही मार्गदर्शन मिलने पर व्यक्ति बुराई की राह को छोड़कर अच्छाई को चुन लेता है।
2. जातक कथा: बिना अकल के नक़ल की कहानी
एक समय की बात है, किसी देश में सूखे की वजह से अकाल पड़ गया। सभी लोगों की फसलें सूखकर बर्बाद हो गई। उस देश के लोग खाने-पीने के लिए तरसने लगे। ऐसी मुश्किल घड़ी में बेचारे कौवों और अन्य पशु-पक्षियों को भी रोटी या खाने के टुकड़े नहीं मिल रहे थे। जब कौवों को काफी दिनों से कुछ खाने के लिए नहीं मिला, तो वे भोजन की खोज में जंगल ढूंढने लगें।
जंगल पहुंचने पर एक कौवा-कौवी की जोड़ी एक पेड़ पर रूके और वहीं पर अपना बसेरा बना लिया। उसी पेड़ के नीचे एक तालाब था। उस तालाब में पानी में रहने वाला एक कौवा रहता था। वह दिन भर पानी में रहता और ढेर सारी मछलियां पकड़कर अपना पेट भरता रहता था। जब पेट भर जाता था, तब वह पानी में खेलता भी था।
वहीं, पेड़ की डाल पर बैठा कौवा, जब पानी वाले कौवे को देखता, तो उसका भी मन उसी की तरह बनने का करता। उसने सोचा कि अगर वह पानी वाले कौवे से दोस्ती कर ले, तो उसे भी दिन भर खाने के लिए मछलियां मिलेंगी और उसके भी दिन अच्छे से गुजरने लगेंगे।
वह तलाब के किनारे गया और पानी वाले कौवे से मीठे स्वर में बात करने लगा। उसने कहा – “मित्र सुनो, तुम बहुत ही स्वस्थ हो। पलक झपकते ही मछलियां पकड़ लेते हो। क्या मुझे भी अपना यह गुण सिखा दोगे?”
यह सुनकर पानी वाले कौवे न कहा – “मित्र, तुम यह सीखकर क्या ही करोगे, जब भी तुम्हें भूख लगे, तो मुझे बता दिया करो। मैं तुम्हें पानी में से मछलियां पकड़कर दे दूंगा और तुम खा लिया करना।”
उस दिन के बाद से जब भी कौवे को भूख लगती, वह पानी वाले कौवे के पास जाता और उससे ढेर सारी मछलियां लेकर खाता।
एक दिन उस कौवे ने सोचा कि पानी में जाकर बस मछलियां ही तो पकड़नी हैं। यह काम वह खुद भी कर सकता है। आखिर कब तक वह उस पानी वाले कौवे का एहसान लेता रहेगा।
उसने मन में ठाना की वह तालाब में जाएगा और खुद अपने लिए मछलियां पकड़ेगा।
जब वह तालाब के पानी में जाने लगा, तो पानी वाले कौवे ने उससे फिर कहा – “मित्र, तुम ऐसा मत करो। तुम्हें पानी में मछली पकड़ना नहीं आता है, इस वजह से पानी में जाना तुम्हारे लिए जोखिम भरा हो सकता है।”
पानी वाले कौवे की बात सुनकर, पेड़ पर रहने वाले कौवे ने घमंड में कहा – “तुम ऐसा अपने अभिमान की वजह से बोल रहे हो। मैं भी तुम्हारे जैसा पानी में जाकर मछलियां पकड़ सकता हूं और आज मैं ऐसा करके साबित भी कर दूंगा।”
इतना कहकर उस कौवे ने तालाब के पानी में छपाक से छलांग लगा दी। अब तालाब के पानी में काई जमी हुई थी, जिसमें वह फंस गया। उस कौवे को काई हटाने या उससे बाहर निकलने का कोई अनुभव नहीं था। उसने काई में अपनी चोंच मारकर उसमें छेंद करना चाहा। इसके लिए जैसे ही उसने अपनी चोंच काई में धंसाई उसकी चोंच भी काई में फंस गई।
काफी प्रयास करने के बाद भी वह उस काई से बाहर न निकल सका और कुछ देर बाद पानी में दम घुटने की वजह से उसकी मृत्यु हो गई।
बाद में कौवे को ढूंढते हुए कौवी भी तालाब के पास आई। वहां आकार उसने पानी वाले कौवे से अपने कौवे के बारे में पूछा। पानी वाले कौवे ने सारी बात बताते हुए कहा – “मेरी नकल करने के चक्कर में, उस कौवे ने अपने ही हाथों से अपने प्राण धो लिए।”
कहानी से सीख:
किसी के जैसा बनने का दिखावा करने के लिए भी मेहनत करने की जरूरत होती है। साथ ही अहंकार इंसान के लिए बहुत बुरा होता है।
3.जातक कथा: चांद पर खरगोश
बहुत समय पहले गंगा किनारे एक जंगल में चार दोस्त रहते थे, खरगोश, सियार, बंदर और ऊदबिलाव। इन सभी दोस्तों की एक ही चाहत थी, सबसे बड़ा दानवीर बनना। एक दिन चारों ने एक साथ फैसला लिया कि वो कुछ-न-कुछ ऐसा ढूंढकर लाएंगे, जिसे वो दान कर सकें। परम दान करने के लिए चारों मित्र अपने-अपने घर से निकल गए।
ऊदबिलाव गंगा तट से लाल रंग की सात मछलियां लेकर आ गया। सियार दही से भरी हांडी और मांस का टुकड़ा लेकर आया। उसके बाद बंदर उछलता-कूदता बाग से आम के गुच्छे लेकर आया। दिन ढलने को था, लेकिन खरगोश को कुछ नहीं समझ आया। उसने सोचा अगर वो घास का दान करेगा, तो उसे दान का कोई लाभ नहीं मिलेगा। यह सोचते-सोचते खरगोश खाली हाथ वापस चला गया।
खरगोश को खाली हाथ लौटते देख उससे तीनों मित्रों ने पूछा, “अरें! तुम क्या दान करोगे? आज ही के दिन दान करने से महादान का लाभ मिलेगा, पता है न तुम्हें।” खरगोश ने कहा, “हां, मुझे पता है, इसलिए आज मैंने खुद को दान करने का फैसला लिया है।” यह सुनकर खरगोश के सारे दोस्त हैरान हो गए। जैसे ही इस बात की खबर इंद्र देवता तक पहुंची, तो वो सीधे धरती पर आ गए।
इंद्र साधु का भेष बनाकर चारों मित्रों के पास पहुंचे। पहले सियार, बंदर और ऊदबिलाव ने दान दिया। फिर खरगोश के पास इंद्र देवता पहुंचे और कहा तुम क्या दान दोगे। खरगोश ने बताया कि वो खुद को दान कर रहा है। इतना सुनते ही इंद्र देव ने वहां अपनी शक्ति से आग जलाई और खरगोश को उसके अंदर समाने के लिए कहा।
खरगोश हिम्मत करके आग के अंदर घुस गया। इंद्र यह देखकर हैरान रह गए। उनके मन में हुआ कि खरगोश सही में बहुत बड़ा दानी है और इंद्र देव यह देख बहुत खुश हुए। उधर, खरगोश आग में भी सही सलामत खड़ा था। तब इंद्र देव ने कहा, “मैं तुम्हारी परीक्षा ले रहा था। यह आग मायावी है, इसलिए इससे तुम्हें कोई नुकसान नहीं पहुंचेगा।”
इतना कहने के बाद इंद्र देव ने खरगोश को आशीर्वाद देते हुए कहा, “तुम्हारे इस दान को पूरी दुनिया हमेशा याद करेगी। मैं तुम्हारे शरीर का निशान चांद पर बनाऊंगा।” इतना कहते ही इंद्र देव ने चांद में एक पर्वत को मसलकर खरगोश का निशान बना दिया। तब से ही मान्यता है कि चांद पर खरगोश के निशान हैं और इसी तरह चांद तक पहुंचे बिना ही, चांद पर खरगोश की छाप पहुंच गई।
कहानी से सीख:
किसी भी काम को करने के लिए दृढ़ शक्ति का होना जरूरी है।
4.जातक कथा: रुरु मृग
एक समय की बात है, जब एक रुरु मृग हुआ करते थे। इस मृग का रंग सोने की तरह, बाल रेशमी मखमल से भी अधिक मुलायम और आंखें आसमानी रंग की होती थीं। रुरु मृग किसी के भी मन को मोह लेता था। यह मृग अधिक सुंदर और विवेकशील था और मनुष्य की तरह बात कर सकता था। रुरु मृग अच्छी तरह जानता था कि मनुष्य एक लोभी प्राणी है। फिर भी वह मनुष्य के प्रति करुणा भाव रखता था।
एक दिन रुरु मृग जंगल में सैर कर रहा था, लेकिन तभी वह किसी मनुष्य के चिल्लाने की आवाज सुनता है। जब वह मौके पर पहुंचता है, तो उसे नदी की धारा में एक आदमी बहता हुआ नजर आता है। यह देखकर मृग उसे बचाने के लिए नदी में कूद पड़ता है और डूबते व्यक्ति को उसके पैर पकड़ने की सलाह देता है, लेकिन वह व्यक्ति उसके पैर पकड़कर मृग के ऊपर ही बैठ जाता है। अगर मृग चाहता, तो उसे गिराकर पानी से बाहर आ सकता था, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। वह स्वयं तकलीफ सहकर उस व्यक्ति को किनारे तक ले आता है।
बाहर आते ही व्यक्ति मृग को धन्यवाद कहता है, तो इस पर मृग कहता है “अगर तुम मुझे सच में धन्यवाद करना चाहते हो, तो किसी को यह मत बताना कि तुम्हें एक स्वर्ण मृग ने डूबने से बताया है।” मृग ने उसे कहा “अगर मनुष्य मेरे बारे में जानेंगे, तो वे मेरा शिकार करने की कोशिश करेंगे।” यह कहकर रुरु मृग जंगल में चला जाता है।
कुछ समय बाद उस राज्य की रानी एक सपना देखती है, जिसमें उसे रुरु मृग दिखाई देता है। रुरु मृग की सुंदरता को देखने के बाद रानी उसे अपने पास रखने की लालसा करने लगती है। इसके बाद रानी, राजा को रुरु मृग को ढूंढकर लाने के लिए कहती है। राजा बिना देरी किए नगर में ढिंढोरा पिटवा देता है कि जो कोई भी रुर मृग को ढूंढने में मदद करेगा, उसे एक गांव और 10 सुंदर युवतियां इनाम में दी जाएंगी।
राजा की यह सूचना उस व्यक्ति तक भी पहुंचती है, जिसे मृग ने बचाया था। वह व्यक्ति बिना समय गंवाए राजा के दरबार में पहुंच जाता है और रुरु मृग के बारे में राजा को बताता है। राजा और सिपाही सहित वह व्यक्ति जंगल की ओर चल पड़ता है। जंगल में पहुंचने के बाद राजा के सिपाही मृग के निवास स्थान को चारों तरफ से घेर लेते हैं।
जब राजा मृग को देखता है, तो खुशी से फूले नहीं समाता, क्योंकि वह मृग बिल्कुल वैसा ही था जैसा रानी ने बताया था। मृग चारों ओर से सिपाही से घिरा हुआ था और राजा उस पर बाण साधे हुए था, लेकिन तभी मृग राजा से मनुष्य की भाषा में कहता है “हे राजन तुम मुझे मार देना, लेकिन पहले मैं यह जानना चाहता हूं कि तुम्हें मेरी जगह का रास्ता किसने बताया।” इस पर राज ने उस व्यक्ति की ओर इशारा किया जिसकी जान मृग ने बचाई थी। उस व्यक्ति को देख कर मृग कहता है –
“निकाल लो लकड़ी के कुन्दे को पानी से,
न निकालना कभी एक अकृतज्ञ इंसान को।”
जब राजा ने मृग से इन शब्दों का मतलब पूछा, तो मृग ने बताया कि उसने इस व्यक्ति को डूबने से बचाया था। मृग की बातें सुनकर राजा के अंदर की इंसानियत जाग गई। उसे खुद पर शर्म आने लगी और क्रोध में उस व्यक्ति की ओर तीर का निशान कर दिया। यह देखकर मृग ने राजा से उस व्यक्ति को न मारने की प्रार्थना की। मृग की दया भावना देखकर राजा ने उसे अपने राज्य में आने का निमंत्रण दिया। मृग राजा के निमंत्रण पर कुछ दिन राजमहल में रहा और फिर वापस जंगल लौट गया।
कहानी से सीख:
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमें किसी का अहसान कभी नहीं भूलना चाहिए। चाहे वह इंसान हो या जानवर।
5.जातक कथा: महाकपि का बलिदान
हिमालय के जंगल में ऐसे कई पेड़-पौधे हैं, जो अपने आप में अनोखे हैं। ऐसे पेड़-पौधे और कही नहीं पाए जाते। इन पर लगने वाले फल और फूल सबसे अलग होते हैं। इन पर लगने वाले फल इतने मीठे और खुशबूदार होते हैं कि कोई भी इन्हें खाए बिना रह नहीं सकता। ऐसा ही एक पेड़ नदी किनारे था, जिस पर सारे बंदर अपने राजा के साथ रहा करते थे। बंदरों के राजा का नाम महाकपि था। महाकपि बहुत ही समझदार और ज्ञानवान था।
महाकपि का आदेश था कि उस पेड़ पर कभी कोई फल न छोड़ा जाए। जैसे ही फल पकने को होता, वैसे ही वानर उसे खा लेते थे। महाकपि का मानना था कि अगर कोई पका फल टूटकर नदी के रास्ते किसी मनुष्य तक पहुंचा, तो ये उनके लिए बहुत हानिकारक हो सकता है। सभी वानर महाकपि की इस बात से सहमत थे और उनकी आज्ञा का पालन करते थे, लेकिन एक दिन एक पका फल नदी में जा गिरा, जो पत्तियों के बीच छुपा हुआ था।
वह फल नदी में बहकर एक जगह पहुंच गया, जहां एक राजा अपनी रानियों के साथ घूम रहा था। फल की खुशबू इतनी अच्छी थी कि आनंदित होकर रानियों ने अपनी आंखें बंद कर ली। राजा भी इस खुशबू पर मोहित हो गया। राजा ने अपने आसपास निहारा, तो उसे नदी में बहता हुआ फल दिखाई दिया। राजा ने उसे उठाकर अपने सिपाहियों को दिया और कहा कि कोई इसे खाकर देखे कि यह फल कैसा है। एक सिपाही ने उस फल को खाया और कहा कि ये तो बहुत मीठा है।
इसके बाद राजा ने भी उस फल को खाया और आनंदित हो उठा। उसने अपने सिपाहियों को उस पेड़ को खोज निकालने का आदेश दिया, जहां से ये फल आया था। काफी मेहनत के बाद राजा के सिपाहियों ने पेड़ को खोज निकाला। उन्हें नदी किनारे वो सुंदर पेड़ नजर आ गया। उस पर बहुत सारे वानर बैठे हुए थे। सिपाहियों को ये बात पसंद नहीं आई और उन्होंने वानरों को एक-एक करके मारना शुरू कर दिया। वानरों को घायल देखकर महाकपि ने समझदारी से काम लिया। उसने एक बांस का डंडा पेड़ और पहाड़ी के बीच पुल की तरह लगा दिया। महाकपि ने सभी वानरों को उस पेड़ को छोड़कर पहाड़ी की दूसरी तरफ जाने का आदेश दिया।
वानरों ने महाकपि की आज्ञा का पालन किया और वो सभी बांस के सहारे पहाड़ी के दूसरी ओर पहुंच गए, लेकिन इस दौरान डरे-सहमे बंदरों ने महाकपि को बुरी तरह से कुचल दिया। सिपाहियों ने तुरंत राजा के पास जाकर सारी बात बताई। राजा, महाकपि की वीरता से बहुत प्रसन्न हुए और सिपाहियों को आदेश दिया कि महाकपि को तुरंत महल लेकर आएं और उसका इलाज करवाएं। सिपाहियों ने ऐसा ही किया, लेकिन जब महाकपि को महल लाया गया, तब तक वह मर चुका था।
कहानी से सीख:
वीरता और समझदारी हमें इतिहास के पन्नों में जगह देती है। साथ ही इस कहानी से यह भी सीख मिलती है कि हर मुश्किल घड़ी में समझदारी से काम लेना चाहिए।
6. जातक कथा:लड़ती बकरियां और सियार
बहुत समय पहले की बात है। एक जंगल में किसी बात को लेकर दो बकरियों के बीच झगड़ा हो गया। इस झगड़े को वहां से गुजर रहा एक साधु देख रहा था। देखते ही देखते दो बकरियों में झगड़ा इतना बड़ गया कि दोनों आपस में लड़ने लगीं।
उसी समय वहां से एक सियार भी गुजरा। वह बहुत भूखा था। जब उसने दोनों बकरियों को झगड़ते देखा, तो उसके मुंह में पानी आ गया।
बकरियों की लड़ाई इतनी बड़ गई थी कि दोनों ने एक-दूसरे को लहूलुहान कर दिया था, लेकिन फिर भी लड़ना नहीं छोड़ रही थीं। दोनों बकरियों के शरीर खून निकलने लगा था। भूखे सियार ने जब जमीन पर फैले खून की तरफ देखा, तो उसे चाटने लगा और धीरे-धीरे उनके करीब जाने लगा। उसकी भूख और ज्यादा बढ़ गई थी। उसके मन में आया कि क्यों न दोनों बकरियों को मारकर अपनी भूख मिटाई जाए।
वहीं, दूर खड़ा साधु यह सब देख रहा था। जब उसने सियार को दोनों बकरियों के बीच जाते हुए देखा, तो सोचा कि अगर सियार इन दोनों बकरियों के और करीब गया, तो उसे चोट लग सकती है। यहां तक कि उसकी जान भी जा सकती है।
साधु अभी यह सोच ही रहा था कि सियार दोनों बकरियों के बीच पहुंच गया। बकरियों ने जैसे ही उसे अपने पास आते देखा, तो दोनों ने लड़ना छोड़कर उस पर हमला कर दिया। अचानक हुए हमले से सियार अपने आप को संभाल नहीं सका और चोटिल हो गया। वह किसी तरह से अपनी जान बचाकर वहां से भागा।
सियार को भागता देख बकरियां ने भी लड़ना छोड़ दिया और अपने घर लौट गईं। वहीं, साधु भी अपने घर की ओर चल दिया।
कहानी से सीख: हमें इस कहानी से यह सीख मिलती है कि कभी भी लालच नहीं करना चाहिए। साथ ही दूसरों की लड़ाई में नहीं कूदना चाहिए, इससे हमारा ही नुकसान होता है।
7.जातक कथा:बैल और शेर की कहानी
एक जंगल में तीन बैल रहा करते थे। तीनों आपस में अच्छे मित्र थे। वो घास चरने के लिए जंगल में एक साथ ही जाया करते थे। उसी जंगल में एक खूंखार शेर भी रहता था। इस शेर की कई दिनों से इन तीनों बैल पर नजर थी। वह इन तीनों को मारकर खा जाना चाहता था। उसने कई बार बैलों पर आक्रमण भी किया, लेकिन बैलों की आपसी मित्रता के कारण वो कभी सफल नहीं हो पाया। जब शेर उन पर हमला करता था, तो तीनों बैल त्रिकोण बनाकर अपने नुकीले सींगों से अपनी रक्षा करते थे।
तीनों बैल साथ मिलकर कई बार शेर को भगा चुके थे, लेकिन शेर कैसे भी करके उन तीनों को खाना चाहता था। शेर यह समझ गया था कि जब तक ये तीनों साथ रहेंगे, इन्हें मारा नहीं जा सकता है। इसलिए, उसने एक दिन इन तीनों को अलग करने के लिए एक चाल चली।
शेर ने बैलों को अलग करने के लिए जंगल में एक अफवाह उड़ा दी। अफवाह यह थी कि इन तीनों बैलों में से एक बैल अपने साथियों को धोखा दे रहा है। बस फिर क्या था, बैलों के बीच इस बात को लेकर शक बैठ गया कि आखिर वो कौन है, जो हमें धोखा दे रहा है?
एक दिन इसी बात को लेकर तीनों बैलों में झगड़ा हो गया। शेर ने जो सोचा था, वो हो गया था। अब तीनों बैल अलग-अलग रहने लगे थे। उनकी दोस्ती टूट चुकी थी। अब वो अलग-अलग होकर जंगल में चरने जाने लगे थे। बस शेर को इसी मौके का इंतजार था।
शेर ने एक दिन उन तीनों बैलों में से एक पर हमला बोल दिया। अकेले पड़ जाने की वजह से वह बैल शेर का मुकाबला नहीं कर पाया और शेर ने उसे मार डाला। कुछ दिनों के बाद शेर ने दूसरे बैल पर भी हमला कर दिया और उसे मारकर खा गया। अब सिर्फ एक बैल बचा था। वह समझ गया था कि शेर अब उसको भी मार डालेगा। उसके पास बचने की कोई उम्मीद नहीं थी। वह अकेले शेर का मुकाबला नहीं कर सकता था। एक दिन जब वह जंगल में घास चरने गया था, तो शेर ने उसे भी अपना शिकार बना लिया। शेर की चाल पूरी तरह कामयाब हुई और उसने तीनों बैलों की दोस्ती तोड़कर उन्हें अपना शिकार बना लिया था।
कहानी से सीख : एकता में बड़ी ताकत होती है। हमें हमेशा आपस में मिलकर रहना चाहिए और दूसरों की बातों में नहीं आना चाहिए।
8.जातक कथा:चतुर मुर्गे की कहानी
एक घने जंगल में एक पेड़ पर मुर्गा रहा करता था। वह रोज सुबह सूरज निकलने से पहले उठ जाता था। उठने के बाद वह जंगल में दाना-पानी चुगने के लिए चला जाता था और शाम होने से पहले वापस लौट आता था। उसी जंगल में एक चालाक लोमड़ी भी रहती थी। वह रोज मुर्गे को देखती और सोचती, “कितना बड़ा और बढ़िया मुर्गा है। अगर यह मेरे हाथ लग जाए, तो कितना स्वादिष्ट भोजन बन सकता है”, लेकिन मुर्गा कभी भी उस लोमड़ी के हाथ नहीं आता था।
एक दिन मुर्गे को पकड़ने के लिए लोमड़ी ने एक तरकीब निकाली। वह उस पेड़ के पास गई, जहां मुर्गा रहता था और कहने लगी, “अरे ओ मुर्गे भाई! क्या तुम्हें खुशखबरी मिली? जंगल के राजा और हमारे बड़ों ने मिलकर सारे लड़ाई-झगड़े खत्म करने का फैसला किया है। आज से कोई जानवर किसी दूसरे जानवर को नुकसान नहीं पहुंचाएगा। इसी बात पर आओ, नीचे आओ। हम गले लगकर एक दूसरे को बधाई दें।”
लोमड़ी की यह बात सुनकर मुर्गे ने मुस्कुराते हुए उसकी तरफ देखा और कहा, “अरे वाह लोमड़ी बहन, ये तो बहुतबुद्ध अच्छी खबर है। पीछे देखो, शायद इसलिए हमसे मिलने हमारे कुछ और दोस्त भी आ रहे हैं।”
लोमड़ी ने हैरान हो कर पूछा, “दोस्त? कौन दोस्त?” मुर्गे ने कहा, “अरे वो शिकारी कुत्ते, वो भी अब हमारे दोस्त हैं न?” कुत्तों का नाम सुनते ही, लोमड़ी ने न आव देखा न ताव और उनके आने की उल्टी दिशा में दौड़ पड़ी।
मुर्गे ने हंसते हुए लोमड़ी से कहा, “अरे-अरे लोमड़ी बहन, कहां भाग रही हो? अब तो हम सब दोस्त हैं न?” “हां-हां दोस्त तो हैं, लेकिन शायद शिकारी कुत्तों को अभी तक यह खबर नहीं मिली है”, यह कहते हुए लोमड़ी वहां से भाग निकली और मुर्गे की सूझबूझ की वजह से उसकी जान बच गई।
कहानी से सीख:
बच्चों, चतुर मुर्गा और चालक लोमड़ी की कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि किसी भी बात पर आसानी से विश्वास नहीं करना चाहिए और चालाक लोगों से हमेशा सावधान रहना चाहिए।
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