दोस्तों आज मै आप सभी के लिए और आपके बच्चों के लिए के लिए दुनिया की सर्वश्रेष्ठ लघु कथाएँ हिंदी में-World Best Short Stories In Hindi को लेकर आई हूँ इन कथाओ को आपको और आपके बच्चों को पढ़ने में बहुत मजा आएगा | हम सभी जानतें है बच्चों का मन हर पल नई-नई चीजों को जानने और सीखने के लिए उत्साहित रहता है। यही नई चीजें अगर उन्हें मजेदार तरीके से सिखाई जाएं,तो वो और भी आसानी से इन्हें सीख सकते हैं और इस काम में कहानियां आपकी मदद कर सकती हैं।ये कहानियां ही होती हैं, जो बच्चों की कल्पनाओं की दुनिया को खूबसूरत बनाने में मदद करती है| ये कहानियां न सिर्फ बच्चों के मनोरंजन का माध्यम है, बल्कि खेल-खेल में उनके जीवन को बेहतर बनाने का एक आसान तरीका भी हैं।
मित्रों मेरी एक ये छोटी सी कोशिश है ये की ये लघु कथाएं आप तक पंहुचा सकूँ, ये लघु कथाएं न सिर्फ मजेदार हैं, बल्कि शिक्षाप्रद भी हैं। ये लघु कहानियां न सिर्फ छोटे बच्चों को खुश करेंगी, बल्कि बड़ों को भी उनके बचपन की यादें ताजा करने का मौका मिलेगा।
ये रही कुछ दुनिया की सर्वश्रेष्ठ लघु कथाएँ हिंदी में-
1.लालची बिल्ली और बंदर की कहानी:The Story of the Greedy Cat and the Monkey
एक था जंगल, जहां सभी जानवर मिलजुल कर रहा करते थे। सभी जानवर जंगल के नियम का पालन करते और हर त्योहार साथ में मनाते थे। उन्हीं जानवरों में चीनी और मिनी नाम की दो बिल्लियां भी थीं। वे दोनों बहुत अच्छी सहेलियां थीं और एक दूसरे का साथ कभी नहीं छोड़ती थीं। बीमारी में एक दूसरे का ख्याल रखना, बाहर साथ जाना, यहां तक कि वो दोनों खाना भी साथ ही खाती थीं। जंगल में रहने वाले सभी जानवर उनकी दोस्ती की सभी तारीफ किया करते थे।
एक बार की बात है। मिनी को किसी काम से बाजार जाना पड़ा, लेकिन किसी कारण से चीनी उसके साथ नहीं जा सकी। चीनी का अकेले मन नहीं लग रहा था, तो उसने सोचा कि क्यों न वो भी बाजार घूम कर आए।
रास्ते में चलते हुए उसे एक रोटी का टुकड़ा मिला। उसके मन में अकेले रोटी खाने का लालच आ गया और वो उसे लेकर घर आ गई। जैसे ही वह रोटी के टुकड़े को खाने वाली थी, तभी अचानक मिनी आ गई। मिनी ने उसके हाथ में रोटी देखी, तो उससे पूछने लगी कि चीनी हम तो सब कुछ बांटकर खाते हैं और तुम तो मेरे साथ ही खाना खाती थी। क्या आज तुम मुझे रोटी नहीं दोगी?
चीनी ने मिनी काे देखा तो डर गई और मन ही मन मिनी को कोसने लगी। इस पर चीनी ने हड़बड़ाहट में कहा कि अरे नहीं बहन मैं तो रोटी को आधा-आधा कर रही थी, ताकि हम दोनों को बराबर रोटी मिल सके।
मिनी सब समझ गई थी और उसके मन में भी लालच आ गया था, लेकिन कुछ बोली नहीं। जैसे ही रोटी के टुकड़े हुए, मिनी चीख पड़ी कि मेरे हिस्से में कम राटी आई है। रोटी चीनी को मिली थी इसलिए, वो उसे कम देना चाहती थी। फिर भी वो बोली कि रोटी तो बराबर ही दी है
इस बात को लेकर दोनों में झगड़ा हो गया और धीरे-धीरे यह बात पूरे जंगल में फैल गई। सभी जानवर उन दोनों को लड़ते हुए देख रहे थे। उसी समय वहां एक बंदर आया और उसने कहा कि मैं दोनों के बीच में बराबर रोटी बांट दूंगा। सभी जानवर बंदर की हां में हां मिलाने लगे।
न चाहते हुए भी दोनों ने बंदर को रोटी दे दी। बंदर कहीं से तराजू लेकर आया और दोनों ओर रोटी के टुकड़े रख दिए। जिस तरफ वजन ज्यादा होता, वो उस तरफ की थोड़ी-सी रोटी यह बोलकर खा लेता कि इस रोटी को दूसरी तरफ रखी रोटी के वजन के बराबर कर रहा हूं। वो जानबूझकर ज्यादा रोटी का टुकड़ा खा लेता, जिससे दूसरी तरफ की रोटी वजन में ज्यादा हो जाती।
ऐसा करने से दोनों ओर रोटी के बहुत छोटे-छोटे टुकड़े बचे। बिल्लियों ने जब इतनी कम रोटी देखी तो बोलने लगीं कि हमारी रोटी के टुकड़े वापस दे दो। हम बची हुई रोटी को आपस में बांट लेंगे।
तब बंदर बोला कि अरे वाह, तुम दोनों बहुत चालाक हो। मुझे मेरी मेहनत का फल नहीं दोगी क्या। ऐसा बाेलकर बंदर दोनों पलड़ों में बची हुई रोटी के टुकड़ों को खाकर चला गया और दोनों बिल्लियां एक दूसरे का मुंह तांकती रह गईं।
कहानी से सीख:
हमें कभी भी लालच नहीं करना चाहिए। जो कुछ भी हमारे पास है, हमें उससे ही संतोष करना चाहिए और आपस में मिलजुल कर रहना चाहिए। लालच करने से जो हमारे पास है, उससे भी हाथ धोना पड़ सकता है।
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2.कबूतर और बहेलिया की कहानी: Story of Dove and Fowler
पुराने समय की बात है, एक जंगल में बहुत बड़ा बरगद का पेड़ था। उस पेड़ पर बहुत सारे कबूतर रहते थे। वो जंगल में घूम-घूमकर भोजन की तलाश करते और अपना पेट भरते थे। उन सभी कबूतरों में एक बूढ़ा कबूतर भी था। बूढ़ा कबूतर बहुत ही समझदार था। इसलिए, सभी कबूतर उसकी बात माना करते थे।
एक दिन उस जंगल में कहीं से घूमता हुआ एक बहेलिया आया। उसकी नजर उन कबूतरों पर पड़ी। कबूतरों को देखकर उसकी आंखों में चमक आ गई और उसने अपने मन में कुछ सोचा, और वहां से चला गया, लेकिन बूढ़े कबूतर ने उस बहेलिए को देख लिया था।
दूसरे दिन भरी दोपहर में सभी कबूतर पेड़ पर आराम कर रहे थे। उस दिन वह बहेलिया फिर आया और उसने देखा कि गर्मी की वजह से सभी कबूतर पेड़ पर आराम कर रहे हैं। उसने बरगद के नीचे जाल बिछा कर उस पर कुछ दाने बिखेर दिए और दूसरे पेड़ के पीछे छुप गया।
कबूतरों में से एक कबूतर की नजर उन दानों पर पड़ी। दानों को देखते ही उसने सभी कबूतरों से कहा कि- देखो भाइयों! आज तो किस्मत ही खुल गई। हमें आज भोजन की तलाश में कहीं जाना नहीं पड़ा, उल्टा भोजन ही हमारे पास आ गया। चलो चलकर मजे से भोजन करते हैं।
गर्मी से बेहाल और भूख से परेशान कबूतर जैसे ही नीचे उतरने लगे, बूढ़े कबूतर ने उन्हें रोका, लेकिन किसी ने भी उसकी बात नहीं मानी और नीचे जाकर दाना चुगने लगे।
बूढ़े कबूतर की नजर अचानक पेड़ के पीछे छिपे बहेलिया पर गई और उसे माजरा समझते देर नहीं लगी, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। दाना चुग कर कबूतर उड़ने की कोशिश करने लगे, लेकिन सभी जाल में फंस चुके थे। कबूतर उड़ने की जितनी कोशिश करते उतने ही जाल में उलझ जाते।
कबूतरों को जाल में फंसा देखकर, बहेलिया पेड़ के पीछे से निकल आया और उनको पकड़ने के लिए उनकी ओर बढ़ा। यह देखकर सभी कबूतर डर गए और बूढ़े कबूतर से मदद की गुहार करने लगे।
तब बूढ़ा कबूतर कुछ सोचने लगा और बोला कि जब मैं कहूं तब सभी एक साथ उड़ने की कोशिक करेंगे और उड़कर सभी मेरे पीछे चलेंगे। कबूतर कहने लगे कि हम जाल में फंसे हैं, कैसे उड़ पाएंगे। इस पर बूढ़े कबूतर ने कहा कि सभी एक साथ कोशिश करेंगे, तो उड़ पाएंगे।
सभी ने उसकी बात मानी और उसके कहने पर सभी एक साथ उड़ने की कोशिश करने लगे। उनके इस प्रयास से वो जाल सहित उड़ गए और बूढ़े कबूतर के पीछे-पीछे उड़ने लगे।
कबूतरों को जाल सहित उड़ता देख बहेलिया हैरान रह गया, क्योंकि उसने पहली बार कबूतरों को जाल लेकर उड़ते देखा था। वह कबूतरों के पीछे पीछे भागा, लेकिन कबूतर नदी और पर्वतों को पार करते हुए निकल गए। इससे बहेलिया उनका पीछा नहीं कर पाया।
इधर बूढ़ा कबूतर जाल में फंसे कबूतरों को एक पहाड़ी पर ले गया, जहां उसका एक चूहा मित्र रहता था। बूढ़े कबूतर को आता देख उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा, लेकिन जब बूढ़े कबूतर ने सारा किस्सा सुनाया, तो उसे दुख भी हुआ। उसने कहा कि मित्र चिंता मत करो, मैं अभी अपने दांतों से जाल को काट देता हूं।
उसने अपने दांतों से जाल को काट कर सभी कबूतरों को आजाद कर दिया। कबूतरों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। सभी ने चूहे को धन्यवाद दिया और बूढ़े कबूतर से क्षमा मांगी।
कहानी से सीख:
इस कहानी से यह सीख मिलती है कि एकता में ही ताकत होती है और हमें हमेशा बड़ों की बात माननी चाहिए।
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3.मूर्ख ऊंट की कहानी:The story of the foolish Camel
एक घना जंगल था, जहां एक खतरनाक शेर रहता था। कौआ, सियार और चीता उसके सेवक के रूप में हमेशा उसके साथ रहते थे। शेर रोज शिकार करके भोजन करता और ये तीनों उस बचे हुए शिकार से अपना पेट भरते थे।
एक दिन उस जंगल में एक ऊंट आ गया, जो अपने साथियों से बिछड़ गया था। शेर ने कभी ऊंट नहीं देखा था। कौवे ने शेर को बताया कि यह ऊंट है और यह जंगल में नहीं रहता। शायद पास के गांव से यह यहां आ गया होगा। आप इसका शिकार करके अपना पेट भर सकते हो। चीता और सियार को भी कौवे की बात अच्छी लगी।
तीनों की बात सुनकर शेर ने कहा कि नहीं यह हमारा मेहमान है। मैं इसका शिकार नहीं करूंगा। शेर, ऊंट के पास गया और ऊंट ने उसे सारी बात बताई कि वो किस प्रकार अपने साथियों से बिछड़कर जंगल में पहुंचा। शेर को उस कमजोर ऊंट पर दया आई और उससे कहा कि आप हमारे मेहमान हैं, आप इस जंगल में ही रहेंगे। कौआ, चीता और सियार इस बात को सुनकर मन ही मन ऊंट को कोसने लगे।
ऊंट ने शेर की बात मान ली और जंगल में ही रहने लगा। जल्दी ही जंगल की घास और हरी पत्तियां खाकर वह तंदुरुस्त हाे गया।
इस बीच एक दिन शेर की जंगली हाथी से लड़ाई हो गई और शेर बुरी तरह से घायल हो गया। वह कई दिन तक शिकार पर नहीं जा सका। शिकार न करने पर शेर और उस पर निर्भर कौआ, चीता व सियार कमजोर होने लगे।
जब कई दिनों तक उन्हें कुछ भी खाने को नहीं मिला, तो सियार ने शेर से कहा कि महाराज आप बहुत कमजोर हाे गए हैं और अगर आपने शिकार नहीं किया, तो हालत और ज्यादा खराब हो सकती है। इस पर शेर ने कहा कि मैं इतना कमजोर हो गया हूं कि अब कहीं भी जाकर शिकार नहीं कर सकता। अगर तुम लोग किसी जानवर को यहां लेकर आओ, तो उसका शिकार करके मैं अपना और तुम तीनों का पेट भर सकता हूं।
इतना सुनते ही सियार ने तपाक से कहा कि महाराज अगर आप चाहें तो हम ऊंट को यहां लेकर आ सकते हैं, आप उसका शिकार कर लीजिए। शेर को यह सुनकर गुस्सा आ गया और बोला कि वह हमारा मेहमान है, उसका शिकार मैं कभी नहीं करूंगा।
सियार ने पूछा कि महाराज अगर वो स्वयं आपके सामने खुद को समर्पित कर दे तो? शेर ने कहा तब तो मैं उसे खा सकता हूं।
फिर सियार ने कौवे और चीते के साथ मिलकर एक योजना बनाई और ऊंट के पास जाकर बोलने लगा कि हमारे महाराज बहुत कमजोर हो गए हैं। उन्होंने कितने दिनों से कुछ नहीं खाया है। अगर महाराज हमें भी खाना चाहें, तो मैं खुद को उनके सामने समर्पित कर दूंगा। सियार की बात सुनकर कौआ, चीता और ऊंट भी बोलने लगे कि मैं भी महाराज का भोजन बनने के लिए तैयार हूं।
चारों शेर के पास गए और सबसे पहले कौवे ने कहा कि महाराज आप मुझे अपना भोजन बना लीजिए, सियार बोला कि तुम बहुत छोटे हो, तुम भोजन क्या नाश्ते के लिए भी ठीक नहीं हो। फिर चीता बोला कि महाराज आप मुझे खा जाइए, तब सियार ने कहा कि अगर तुम मर जाओगे तो शेर का सेनापती कौन होगा? फिर सियार ने खुद को समर्पित कर दिया, तब कौआ और चीता बोले कि तुम्हारे बाद महाराज का सलाहकार कौन बनेगा।
जब तीनों को शेर ने नहीं खाया, तब ऊंट ने भी सोचा कि महाराज मुझे भी नहीं खाएंगे, क्योंकि मैं तो उनका मेहमान हूं। यह सोचकर वाे भी बोलने लगा कि महाराज आप मुझे अपना भोजन बना लो।
इतना सुनते ही शेर, चीता और सियार उस पर झपट पड़े। इससे पहले कि ऊंट कुछ समझ पाता, उसके प्राण शरीर से निकल चुके थे और चारों उसे अपना भोजन बना चुके थे।
कहानी से सीख:
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमें बिना सोचे किसी की बातों में नहीं आना चाहिए। साथ ही चालाक व धूर्त लोगों की मीठी-मीठी बातों पर कभी भरोसा नहीं करना चाहिए
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4.हंस और मूर्ख कछुआ की कहानी:The story of the Swan and the foolish Tortoise
एक जंगल के बीचों-बीच एक तलाब था, जहां जानवर आकर अपनी प्यास बुझाया करते थे। उसी तालाब में एक कछुआ भी रहता था। वह फालतू की बातें बहुत करता था, इसलिए सभी जानवरों ने उसका नाम बातूनी कछुआ रखा हुआ था, लेकिन दो हंस उसके बहुत अच्छे दोस्त थे, जो हमेशा उसका भला चाहते थे।
एक बार गर्मी के मौसम में तालाब का पानी धीरे-धीरे सूखने लगा। जानवर पानी पीने के लिए तरसने लगे। यह देखकर हंसों ने कछुए से कहा कि इस तालाब का पानी कम हो रहा है और हो सकता है कि यह बहुत जल्दी सूख जाए। तुम्हें यह तालाब छोड़कर कहीं और चले जाना चाहिए।
इस पर कछुए ने कहा कि मैं यह तालाब छोड़कर कैसे जा सकता हूं और यहां आसपास कोई तालाब भी नहीं है, लेकिन हंस अपने दोस्त का भला चाहते थे। उन्होंने अपने दोस्त की मदद कर के लिए खूब सोचा और एक तरकीब निकाली।
दोनों हंसों ने कहा कि हम एक लकड़ी लेकर आते हैं, तुम अपने मुंह से उसे बीच में से पकड़ लेना और लकड़ी का एक-एक सिरा हम दोनों पकड़कर तुम्हें यहां से दूर एक बड़े तालाब में ले जाएंगे। उस तलाब में बहुत सारा पानी है और वो कभी नहीं सूखता।
कछुआ उनकी बात मान गया और हंसों के साथ जाने के लिए तैयार हो गया। उड़ने से पहले हंसों ने उसे चेतावनी दी कि वह रास्ते में कुछ भी न बोले। जब हम बड़े तालाब पर पहुंच जाएंगे, तब ही उसे जो बोलना है बोल सकता है।
कछुए ने हां में उत्तर दिया और लकड़ी को पकड़ लिया। वो दोनों हंस लकड़ी को पकड़कर उड़ चले। वो उड़ते हुए एक गांव के ऊपर से निकले। गांव वालों ने ऐसा पहली बार देखा था। सभी तालियां बजाने लगे। यह देखकर कछुए से रहा नहीं गया और बाेला कि नीचे क्या हो रहा है?
जैसे ही उसने बाेलने के लिए मुंह खोला उसके मुंह से लकड़ी छूट गई और वो नीचे गिर गया। ऊंचाई से नीचे गिरने की वजह से कछुआ मर गया और हंस अफसोस करते हुए वहां से चले गए।
कहानी से सीख:
हमें बिना वजह और बिना मतलब के कुछ भी नहीं बोलना चाहिए। ऐसा करने से हमारा ही नुकसान होता है।
7.कौवा और कोयल की कहानी:The story of the Crow and the Cuckoo.
सालों पहले चाँदनगर के पास एक जंगल था। वहाँ एक बड़ा-सा बरगद का पेड़ था, जिसपर एक कौवा और एक कोयल दोनों अपने-अपने घोंसले में रहते थे। एक रात उस जंगल में तेज़ आँधी चलने लगी। देखते-ही-देखते बारिश शुरू हो गई। कुछ ही देर में जंगल का जो भी था सब बर्बाद हो गया।
अगले दिन कौवे और कोयल को अपनी भूख मिटाने के लिए कुछ भी नहीं मिला। तभी कोयल ने कौवे से कहा, “हम इतने प्यार से इस जंगल में रहते हैं, लेकिन अब हमारे पास खाने के लिए कुछ नहीं है। तो क्यों न जब मैं अंडा दूँ, तो तुम उसे खाकर अपनी भूख मिटाना और जब तुम अंडा दोगे, तो उसे खाकर मैं अपनी भूख मिटा लूंगी?”
कौवे ने कोयल की बात पर सहमती जताई। संयोग से सबसे पहले कौवे ने अंडा दिया और कोयल ने उसे खाकर अपनी भूख मिटा ली। फिर कोयल ने अंडा दिया। कौवा जैसे ही कोयल का अंडा खाने लगा तो कोयल ने उसे रोक दिया।
कोयल ने कहा, “तुम्हारी चोंच साफ नहीं है। तुम इसे धोकर आओ। फिर अंडा खाना।”
भागकर कौवा नदी के किनारे गया। उसने नदी से कहा, “तुम मुझे पानी दो। मैं अपनी चोंच धोकर कोयल का अंडा खाऊँगा।”
नदी बोली, “ठीक है! पानी के लिए तुम एक बर्तन लेकर आओ।”
अब कौवा जल्दी से कुम्हार के पास पहुँचा। उसने कुम्हार से कहा, “मुझे घड़ा दे दो। उसमें मैं पानी भर कर अपनी चोंच धोऊंगा और फिर कोयल का अंडा खाऊंगा।”
कुम्हार ने कहा, “तुम मुझे मिट्टी लाकर दो, मैं तुम्हें बर्तन बनाकर दे देता हूँ।”
यह सुनते ही कौवा, धरती माँ से मिट्टी माँगने लगा। वो बोला, “माँ मुझे मिट्टी दे दो। उससे मैं बर्तन बनवाऊंगा और उस बर्तन में पानी भरकर अपनी चोंच साफ करूंगा। फिर अपनी भूख मिटाने के लिए कोयल का अंडा खाऊंगा।”
धरती माँ बोली, “मैं मिट्टी दे दूंगी, लेकिन तुम्हें खुरपी लानी होगी। उसी से खोदकर मिट्टी निकलेगी।”
दौड़ते हुए कौवा लोहार के पास पहुँचा। उसने लोहार से कहा, “मुझे खुरपी दे दो। उससे मैं मिट्टी निकालकर कुम्हार को दूंगा और बर्तन लूंगा। फिर बर्तन में पानी भरूंगा और उस पानी से अपनी चोंच धोकर कोयल का अंडा खाऊंगा।”
लोहार ने गर्म-गर्म खुरपी कौवे को दे दी। जैसे ही कौवे ने उसे पकड़ा उसकी चोंच जल गई और कौवा तड़पते हुए मर गया।
इस तरह चतुराई से कोयल ने अपने अंडे कौवे से बचा लिए।
कहानी से सीख:
कौवे और कोयल की कहानी यह सीख देती है कि दूसरों पर आँख बंद करके भरोसा नहीं करना चाहिए। इससे नुकसान खुद का ही होता है।
8.हाथी और दर्ज़ी की कहानी:The story of the Elephant and the Tailor
सालों पहले एक गाँव रत्नापुर में एक जाना-माना मंदिर था। उस मंदिर में रोज़ एक पुजारी पूजा-पाठ करता था। उस पुजारी के पास अपना एक हाथी था, जिसे वो अपने साथ रोज़ मंदिर लेकर जाता था। सभी गाँव के लोग हाथी को बहुत पसंद करते थे। हाथी भी मंदिर में आने वाले सभी श्रद्धालुओं का खूब स्वागत-सत्कार किया करता था।
सुबह पूजा-पाठ ख़त्म करने के बाद पुजारी अपने हाथी को नहलाने के लिए तालाब में लेकर जाता था। रोज़ हाथी तालाब में नहाने के बाद घर लौटते समय दर्ज़ी की दुकान पर रुकता था। दर्ज़ी भी रोज हाथी को प्यार से एक केला खाने को देता। हाथी केला खाने के बाद अपनी सूँड से दर्ज़ी को नमस्ते करके पुजारी के साथ घर चला जाता था।
ये सब हाथी और पुजारी की रोज़मर्रा की ज़िन्दगी का एक हिस्सा था। एक दिन हाथी जब दर्ज़ी की दुकान पर केला खाने के लिए रुका, तो दर्ज़ी को शरारत करने का दिल हुआ। उसने हाथी को केला देने के बाद अपने हाथ में सुई रख ली। जैसे ही हाथी ने उसे नमस्ते किया, दर्ज़ी ने उसकी सूँड पर सुई चुभा दी।
सुई चुभते ही हाथी ज़ोर से चिंघाड़ते हुए करहाने लगा। दर्ज़ी ने हाथी के दर्द का खूब मज़ाक़ उड़ाया और ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगा।
पुजारी को पता नहीं चला कि क्या हुआ। वो हाथी को सहलाते हुए अपने घर लेकर चला गया। अगले दिन फिर पुजारी और हाथी तालाब से लौटकर आ रहे थे। पुजारी कुछ दूर रुककर लोगों से बात करने लगा। हाथी रोज़ की तरह दर्ज़ी की दुकान पर रुक गया। आज हाथी ने अपने सूँड में कीचड़ भर लिया था।
दर्ज़ी अपनी दुकान में बैठकर कपड़ों की सिलाई कर रहा था। जैसे ही हाथी ने दर्ज़ी को देखा, वैसे ही हाथी ने उसकी पूरी दुकान पर कीचड़ फेंक दिया। उस कीचड़ में दर्ज़ी तो भीगा ही, बल्कि उसकी दुकान के सीले हुए कपड़े भी ख़राब हो गए।
इस सबसे दर्ज़ी समझ गया कि मैंने कल जो किया था, उसी का दण्ड हाथी ने मुझे आज दिया है। दर्ज़ी को अपनी ग़लती का एहसास हुआ और वो हाथी के पास भागकर गया। उसने हाथी से माफ़ी माँगने की कोशिश की। उसने कहा, “हे गजराज, आपने बिल्कुल सही किया। मैंने जो कल किया था, उसका नतीजा यही होना चाहिए।”
हाथी ने दर्ज़ी की तरफ देखा और अपनी सूँड को हवा में लहराते हुए वहाँ से चला गया। दर्ज़ी को मन-ही-मन बहुत बुरा लग रहा था। उसने अपने मज़ाक़-मस्ती के चक्कर में एक अच्छा दोस्त हाथी खो दिया था। उस दिन से दर्ज़ी ने ठान ली कि वो किसी को भी मज़ाक़ में भी नुक़सान नहीं पहुँचाएगा।
कहानी से सीख:
दर्ज़ी और हाथी की कहानी से यह सीख मिलती है कि किसी के साथ भी बुरा व्यवहार नहीं करना चाहिए। मज़ाक़ में भी नहीं।
9.एक घमंडी हाथी और चींटी की कहानी:The story of a proud Elephant and an Ant
एक बार की बात है। किसी जंगल में एक हाथी रहता था। उसे अपने शरीर और अपनी ताकत का बहुत घमंड था। उसे रास्ते में जो भी जानवर मिलता, वो उसे परेशान करता और डरा कर भगा देता।
एक दिन वह कहीं जा रहा था। रास्ते में उसने एक पेड़ पर एक तोते को बैठा देखा और उससे अपने सामने झुकने के लिए बोला।
तोते ने झुकने से मना कर दिया, तो गुस्से में आकर हाथी ने वो पेड़ ही उखाड़ दिया, जिस पर तोता बैठा था। तोता उड़ गया और हाथी उसे देख कर हंसने लगा।
फिर एक दिन हाथी नदी के किनारे पानी पीने के लिए गया। वहीं पर चींटियों का छोटा-सा घर था।
एक चींटी बड़ी मेहनत से अपने लिए खाना इकट्ठा कर रही थी। यह देख हाथी ने पूछा कि तुम क्या कर रही हो, तो चींटी ने कहा कि बरसात का मौसम आने से पहले अपने लिए भोजन जमा कर रहीं हूं, ताकि बारिश का मौसम बिना किसी परेशानी से निकल जाए। यह सुन कर हाथी के मन में शरारत सूझी और उसने अपनी सूंड़ में पानी भर कर चींटी के ऊपर डाल दिया।
पानी से चींटी का भोजन खराब हो गया और वो पूरी भीग गई। यह देखकर चींटी को बहुत गुस्सा आया और उसने घमंडी हाथी को सबक सिखाने का सोचा। फिर एक दिन चींटी को मौका मिल ही गया कि वो हाथी को सबक सिखा सके। हाथी भोजन करके हरी घास पर सो रहा था।
चींटी सोते हुए हाथी की सूंड़ में घुस गई और अंदर से उसे काटने लगी। जैसे ही चींटी ने हाथी को काटा, हाथी दर्द के मारे जोर जोर से रोने लगा और मदद के लिए पुकारने लगा।
चींटी ने हाथी के रोने की आवाज सुनी और सूंड़ से बाहर निकल आई। हाथी उसे देख कर डर गया और अपने किए की माफी मांगी। जब चींटी को महसूस हुआ कि हाथी को अपनी गलती का अहसास हो गया है, तो उसने हाथी को माफ कर दिया। हाथी अब बिलकुल बदल गया और उसने वादा किया कि अब वो किसी को नहीं सताएगा और दूसरों की मदद करेगा।
कहानी से सीख:
हमें अपनी ताकत पर कभी घमंड नहीं करना चाहिए। अपनी ताकत के जोर पर दूसरों को परेशान करने की जगह उनकी मदद करनी चाहिए।
10.दो मछलियों और एक मेंढक की कहानी:The Tale of Two Fishes and a Frog.
एक बार की बात है, एक तालाब में दो मछलियां और एक मेंढक साथ रहा करते थे। एक मछली का नाम शतबुद्धि और दूसरी का नाम सहस्त्रबुद्धि था। वहीं, मेंढक का नाम एकबुद्धि था। मछलियों को अपनी बुद्धि पर बड़ा घमंड था, लेकिन मेंढक अपनी बुद्धि पर कभी घमंड नहीं करता था। फिर भी तीनों आपस में बहुत अच्छे दोस्त थे। तीनों इकट्ठे तालाब में एकसाथ घूमा करते थे और हमेशा साथ रहते थे।
जब भी कोई समस्या आती, तो तीनों साथ मिलकर उससे निपटते थे। एक दिन नदी के किनारे से मछुआरे जा रहे थे। उन्होंने देखा कि तालाब मछलियों में भरा हुआ है। मछुआरों ने कहा “हम कल सुबह यहां आएंगे और बहुत सारी मछलियां पकड़कर ले जाएंगे।” मेंढक ने मछुआरों की सारी बातें सुन ली थी।
वह तालाब में मौजूद सभी की जान बचाने के लिए अपने दोस्तों के पास गया। उसने शतबुद्धि और सहस्त्रबुद्धि को मछुआरों की सारी बात बताई। एकबुद्धि मेंढक ने कहा “उन्हें अपनी जान बचाने के लिए कुछ करना चाहिए।” दोनों मछलियां कहने लगीं – “हम मछुआरों के डर से अपने पूर्वजों की जगह छोड़कर नहीं जा सकते हैं।” दोनों ने फिर कहा – “हमें डरने की जरूरत नहीं है, हमारे पास इतनी बुद्धि है कि हम अपना बचाव कर सकती हैं।” वहीं, एकबुद्धि मेंढक ने कहा – “मुझे पास में मौजूद एक तालाब के बारे में पता है, जो इसी तालाब से जुड़ा है।” उसने तालाब के अन्य जीवों को भी साथ चलने को कहा, लेकिन कोई भी एकबुद्धि मेंढक के साथ जाने को तैयार नहीं था, क्योंकि सभी को शतबुद्धि और सहस्त्रबुद्धि पर भरोसा था कि वो उन सबकी जान बचा लेंगी।
मेंढक ने कहा – “तुम सब मेरे साथ चलो। मछुआरे सुबह तक आ जाएंगे।” इस पर सहस्त्रबुद्धि ने कहा – “उसे तालाब में छिपने की एक जगह पता है।” शतबुद्धि ने भी कहा – “उसे भी तालाब में छिपने की जगह मालूम है।” इस पर मेंढक ने कहा – “मछुआरों के पास बड़ा जाल है। तुम उनसे नहीं बच सकते हो”, लेकिन मछलियों को अपनी बुद्धि पर बहुत गुमान था। उन्होंने मेंढक की एक न सुनी, लेकिन मेंढक उसी रात अपनी पत्नी के साथ दूसरे तालाब में चला गया।
शतबुद्धि और सहस्त्रबुद्धि ने एकबुद्धि का मजाक उड़ाया। अब अगली सुबह मछुआरे अपना जाल लेकर वहां आ पहुंचे। उन्होंने तालाब में जाल डाला। तालाब के सभी जीव अपनी जान बचाने के लिए भागने लगे, लेकिन मछुआरों के पास बड़ा जाल था, जिस कारण कोई भी बचकर नहीं जा सका। जाल में बहुत सारी मछलियां पकड़ी गईं। शतबुद्धि और सहस्त्रबुद्धि ने भी बहुत बचने की कोशिश की, लेकिन उन्हें भी मछुआरों ने पकड़ ही लिया।
जब उन्हें तालाब से बाहर लाया गया, तब तक दोनों की मौत हो चुकी थी। शतबुद्धि और सहस्त्रबुद्धि का आकार सबसे बड़ा था, इसलिए, मछुआरों ने उन्हें लग रखा था। उन्होंने बाकी मछलियों को एक टोकरी में डाला, जबकि शतबुद्धि और सहस्त्रबुद्धि को कंधे पर उठाकर चल दिए। जब वह दूसरे तालाब के सामने पहुंचे, तो एकबुद्धि मेंढक की नजर इन दोनों पर पड़ी। उसे अपने मित्रों की यह हालत देख बड़ा दुख हुआ। उसने अपनी पत्नी से कहा कि काश इन दोनों ने मेरी बात मान ली होती, तो आज ये जिंदा होती।
कहानी से सीख:
कभी भी अपनी बुद्धि पर घमंड नहीं करना चाहिए। एक दिन यही घमंड जानलेवा साबित हो सकता है।
11.शेर और बिल्ली की कहानी:The story of the lion and the Cat.
सालों पहले नील नामक जंगल में एक बड़ी होशियार बिल्ली रहती थी। हर कोई उससे ज्ञान प्राप्त करना चाहता था। जंगल के सारे जानवर उस बिल्ली को मौसी कहकर पुकारते थे। कुछ जानवर उस बिल्ली मौसी से पढ़ने के लिए भी जाते थे।
एक दिन बिल्ली मौसी के पास एक शेर आया। उसने कहा, “मुझे भी आपसे शिक्षा चाहिए। मैं आपका छात्र बनकर आपसे सबकुछ सीखना चाहता हूँ, ताकि जीवन में आगे मुझे कोई दिक्कत ना हो।”
कुछ देर सोचने के बाद बिल्ली बोली, “ठीक है, तुम कल से पढ़ने के लिए आ जाना।”
अगले दिन से रोज़ाना शेर बिल्ली मौसी के यहाँ पढ़ने के लिए आने लगा। एक महीने में शेर इतना समझदार हो गया कि बिल्ली ने उससे कहा, “अब तुम मुझसे सब कुछ सीख चुके हो। तुम्हें कल से पढ़ाई के लिए आने की ज़रूरत नहीं है। तुम मेरे द्वारा प्राप्त की गई शिक्षा की मदद से अपने जीवन को आसानी से जी सकते हो।”
शेर ने पूछा, “आप सच कह रही हैं? मुझे अब सब कुछ आ गया है, क्या?”
बिल्ली ने जवाब दिया, “हाँ, मैं जो कुछ भी जानती थी, मैंने सब कुछ तुम्हें सीखा दिया है।”
शेर ने दहाड़ते हुए कहा, “चलो फिर क्यों ना आज इस विद्या को तुम पर ही आज़मा कर देख लिया जाए। इससे मुझे पता चल जाएगा कि मुझे कितना ज्ञान मिला है।”
डर के मारे सहमी हुई बिल्ली मौसी ने कहा, “बेवकूफ, मैं तुम्हारी गुरु हूँ। मैंने तुम्हें शिक्षा दी है, तुम इस तरह मेरे ऊपर प्रहार नहीं कर सकते हो।”
शेर ने बिल्ली की एक न सुनी और उसपर झपट पड़ा। अपनी जान बचाने के लिए तेज़ी से बिल्ली दौड़ने लगी। दौड़ते-दौड़ते वह पेड़ पर चढ़ गई।
बिल्ली को पेड़ पर चढ़ा हुआ देखकर शेर ने कहा, “तुमने मुझे पेड़ पर चढ़ना नहीं सिखाया। तुमने मुझे पूरा ज्ञान नहीं दिया।”
पेड़ पर चढ़ने के बाद राहत की साँस लेते हुए बिल्ली ने जवाब दिया, “मुझे तुम पर पहले दिन से ही विश्वास नहीं था। मैं जानती थी कि तुम मुझसे सीखने के लिए तो आए हो, लेकिन मेरे ही जीवन के लिए आफ़त बन सकते हो। यही कारण है कि मैंने तुम्हें पेड़ पर चढ़ना नहीं सिखाया। अगर मैंने तुम्हें यह ज्ञान भी दिया होता, तो तुम आज मुझे मार डालते।”
गुस्से में बिल्ली आगे बोली, “तुम आज के बाद मेरे सामने कभी मत आना। मेरी नज़रों से दूर हो जाओ। ऐसा शिष्य जो अपने गुरु का सम्मान नहीं कर सकता, वो किसी क़ाबिल नहीं।”
बिल्ली मौसी की बात सुनकर शेर को भी गुस्सा आया, लेकिन वो कुछ नहीं कर सकता था, क्योंकि बिल्ली पेड़ पर थी। गुस्से को मन में लेकर शेर वहाँ से दहाड़ते हुए चला गया।
कहानी से सीख:
शेर बिल्ली की कहानी से यह सीख मिलती है कि किसी पर भी आँखें मूँदकर भरोसा नहीं करना चाहिए। जीवन में हर किसी से सतर्क रहने पर ही आप खुद को सुरक्षित रख सकते हैं।
Conclusion: तो दोस्तों ये थी कुछ कहानियाँ जिसे मैंने आप तक पंहुचाने की कोशिश की इन कहानियाँ द्वारा आपके और आपके बच्चों अच्छी शिक्षा मिलेगी और आके बच्चे नैतिकता की और बढ़ेंगे और अपने जीवन में सफल बनेंगे|
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